कहानी : चोर की मां | Hindi Kahani
एक युवक को बहोत बड़ी चोरी के एक दुस्साहास के अपराध में पकड़ा गया था और इसके लिए उसे फाँसी की सजा दी गई थी।फांसी की सजा इसलिए क्योंकि इस चोरी से पहले उसे 99 बार चोरी के लिए छोटी मोटी सजाए हो चुकी थी और उसे कहा गया था कि अगर अब वो चोरी नहीं छोड़ता है तो उसे मौत की सजा दि जाएगी।
इतना सब होने के बाद भी उसने चोरी करना नहीं छोड़ा! ये उसकी 100 वी चोरी थी जिसमे वो रंगे हाथों पकड़ा गया था और उसे दी गई वार्निंग के हिसाब से उसे सजा दि जा रही थी।
मरने से पहले जब चोर से उसकी आखरी इच्छा पूछी गई तब उसने अपनी माँ को देखने की इच्छा व्यक्त की, और उसे फाँसी देने से पहले उसके साथ बात करने की इच्छा व्यक्त की।
निश्चित रूप से उसकी आखरी इच्छा पूरी कि गई। जब उसकी माँ उसके पास आई तो उसने कहा: "मैं तुम्हारे कान में कुछ बताना चाहता हूँ," और जब उसकी मा ने अपना कान उसके पास लाया, तो करने लगभग उसे काट दिया।
सभी लोग वहा मौजूद थे सभी डर गए, और चोर से पूछा कि इस तरह के क्रूर और अमानवीय आचरण का क्या कारण हो सकता है। "मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि में उसे सजा देना चाहता था,"
उसने कहा। “आज मेरी जो भी हालत है उसके लिए जितना में जिम्मेदार हूं उतनी ही मेरी मा। मैं छोटा था तो मैंने छोटी-छोटी चीज़ें चुराना शुरू किया और उन्हें माँ के पास ले आया। मुझे डांटने और दंड देने के बजाय, वह हँसी और बोली: "कोई बात नहीं इन छोटी चीजों की चोरी पर कोई भी ध्यान नहीं देगा।" उन्हीं की वजह से मैं आज यहां हूं।"
सभी को चोर की बात सही लगी लेकिन अब देर हो चुकी थी और चोर और उसकी मा दोनों को अपने किए की सजा मिली।
कहानी की सिख :
बच्चे आगे जाकर क्या बनेंगे यह उनके बचपन से ही हो जाता है। बच्चो को अच्छे बुरे का फर्क समझाना माता पिता और गुरु का परम कर्तव्य होता है अगर वह ऐसा नहीं करते तो बच्चों की आगे जाकर जो दुर्दशा होती है उसकी जिम्मेदारी भी उनकी होती है।
