ये कहानी ' हमारी लाड़ली बेटी..पारिवारिक कहानी" आपको अपनी सी लगेगी क्योंकि हर परिवार में इस कहानी की तरह थोड़े मन मुटाव थोड़ी अनबन होती ही है। लेकिन मै ये दिल से चाहूंगा की हर परिवार में होनेवाले मनमुटावों का अंत इस कहानी की तरह खुशियों से भरा हो।
हमारी लाड़ली बेटी..पारिवारिक कहानी | Parivarik kahani
"शाम को आते हुए राशन लेते आना और हा मुन्ना के स्कूल में फीस भरनी है उसके लिए पैसे देते जाओ"
बीवी की इस मांग पर जेबे उल्टी करके दिखाने के सिवा बड़े के पास कोई दूसरा उत्तर नही था। माथे पर चिंता की शिकनो के साथ सवेरे तो बड़ा भाई अपने काम पर निकल गया लेकिन उस शाम उसने पूरे परिवार के सामने इस आर्थिक संकट को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव रखा।,"क्यों न हम उस प्लॉट को बेच दे जिसे बाबूजी ने लक्ष्मी को शादी में देने के लिए खरीदा था?"
"बेटी को दी हुई चीज वापिस नही मांगते,पाप लगता है। लक्ष्मी का जन्म होते ही घर खुशियों से भर गया था तभी तुम्हारे बापने ये तय कर लिया था की ये प्लॉट लक्ष्मी का है जो उसे उसकी शादी में दे दिया जायेगा।" मां ने अपना विरोध जताते हुए कहा।
कौनसी बेटी? वो बेटी जो प्रेम विवाह कर घर की इज्जत को खाक में मिला गई और पिताजी की अंतिम यात्रा में भी न शामिल हुई!" बड़े ने टौंट मारते हुए कहा।
" मेरा मुंह मत खुलवा यहां
कोन नहीं जानता? की लक्ष्मी को उस दिन गली के नाके से ही लौटा दिया गया था और उससे अपने पिता से आंखरी बार मिलने का हक भी छीन लिया गया था!" मां ने बेटी का पक्ष लेते हुए कहा।
मां के इस वार से दोनो बेटे
चुप हो गए ना बड़ा बेटा कुछ बोल पाया ना छोटे बेटे के मुंह से कोई शब्द फूटा।
थोड़ी देर की शांति के बाद छोटा भाई बोला,"प्लॉट बेच तो देंगे पर क्या लक्ष्मी कागजात पर दस्तखत करेगी? मुझे नहीं लगता वो हमारा भला सोच भी सकती है!आखिर है तो औरत जात! पुरुषों की परिस्थिति कैसे समझ पाएगी?"
काफी वाद विवाद और सोच विचार के बाद सब इस बात पर सहमत हुए और पड़ोस के महोल्ले की लक्ष्मी की दोस्त को बोलकर लक्ष्मी को घर आने का न्योता दे दिया गया।
अगले दिन सुबह से गली के नाके पर खेल रहे बडे भाई के लड़के की "बुआ आ गई,बुआ आ गई" की आवाज सुन घरवाले चौकन्ने हो गए। दोनों भाई मन में द्वेष और नफरत के साथ उसको कैसे घर में आने के लिए कहे इसी दुविधा में थे। वो कहते है न "जरूरत के वक्त गधे को भी बाप बनाना पड़ता है" उसी कहावत के हिसाब से दोनो भाई बहने से बात करने के लिए तैयार हुए।
दरवाजे पर जब बेटी और दामाद ने पूरे 7 साल बाद कदम रक्खा तो मां की आंखे भर आई और दोनो को बड़े प्यार से घर के अंदर लेकर आई। बेटी और दामाद भी मां का इतना स्नेह देखकर भावविभोर हो गए।
शाम को साथ में बैठे बेटी दोनों बेटों और दामाद के आगे हिचकिचाते हुए मां ने ही प्लॉट का मुद्दा उठाया।
लक्ष्मी को थोड़ा अंदेसा था की कोई बड़ी बात होगी। लक्ष्मी उसी दिन से ये सोच रही थी की ऐसी क्या बात हो सकती है की जो खडूस भाई उसे बाप का मुंह भी दिखाने के खिलाफ थे वो अचानक इतने कैसे पिघल गए! लेकिन अब उसको सारी बात समझ में आ गई।
लक्ष्मी ने तिरछी नजर से पति की तरफ देखा तो वो बोल पड़ा," देखिए माजी शादी से पहले जो कुछ आपका था वो आपही का रहेगा, ना उसपर मेरा या लक्ष्मी का कोई हक था ना है नही भविष्य में हम मांगेंगे इसलिए आप निश्चित होकर उस प्लॉट के साथ जो करना है कीजिए आप जहां कहेंगे हम वहा साइन कर देंगे।"
सुबह से अपने जीजा से नजरे चुरा रहे दोनो भाईयो ने अब अपने जीजा को अच्छेसे देखा। सुबह प्लॉट के कागजात पर बहन के दस्तखत लेकर काम खत्म की किया जाए यह तय हुआ।
सब इस मीटिंग को खत्म कर उठ ही रहे थे कि टीवी पर अनाउंसमेंट हुआ कि आने वाले 21 दिनों तक देश में लोक डाउन लगाया जा रहा है। लक्ष्मी के पति ने फोन पर बात करने के बाद कहा," अब हम क्या करेंगे लक्ष्मी? कल की बस भी रद्द हो गई है और 21 दिनों तक कोई बस नहीं है हम तो फस गए।"
इस खबर से दोनों भाई बहुत निराश हो गए क्योंकि एक तो उनकी आमदनी कम थी और दो लोगों का और खाने पीने का बोझा बढ़ गया था। लेकिन मां अंदर ही अंदर खुश थी क्योंकि इतने बरसों बाद घर वापस लौटी बेटी इसी बहाने कुछ दिन आराम से उसके साथ रह पाएगी।
दोनों भाई छूटक सब्जी और फल बेचा करते थे। कुछ दिनों में ही लोक डाउन के चलते और कोरोनावायरस के चलते लोगों ने उनसे सब्जियां और फल खरीदने बंद कर दिए। पहले से खराब उनकी आर्थिक स्थिति और ज्यादा खराब होने लगी और वह मन ही मन लक्ष्मी के कदमों को अशुभ मानने लगे।
बहन और जीजा जी से उनकी यह हालत छुपी नहीं थी। लक्ष्मी के कहने पर उसके पति ने दोनों भाइयों की सब्जी और फल की रेडियो पर लोहे की रॉड और जालिया फिट कर दी। बाजार जाकर दोनों के लिए कैप हाथों के दस्ताने और थोक के भाव से सब्जी और फल खरीद लाए।
दोनों की रेडिया अच्छे से तैयार कर फल और सब्जियां ढक कर दोनों भाइयों को टोपी और दस्ताने देकर जीजा जी ने उनसे कहा," एक बार इस तरह से धंधा करके देखो शायद आप का मुनाफा बढ़ जाए।"
थोड़ी आनाकानी करने के बाद दोनों भाइयों ने जीजा जी के समझाए अनुसार धंधा शुरू किया। दो-तीन दिनों बाद ही कोरोना से घबराए लोग अब ढकी हुई फल और सब्जियां और दस्ताने और सेफ्टी का ध्यान रखते बेचने वालों से ही फल और सब्जियां खरीदने लगे।
इस तरह समझदार दामाद की वजह से धीरे-धीरे दोनों भाइयों का धंधा अच्छा चलने लगा और उनके घर का गल्ला जो पहले खाली हो रहा था अब धीरे-धीरे भरने लगा। मां जैसे अपने मरे हुए पति से मन ही मन संवाद साधने लगी," देखो जी आप की लक्ष्मी सच में लक्ष्मी है। उसके पांव घर में पढ़ते ही घर खुशियों से भर रहा है।"
दोनों भाइयों के आंखों में पहले जो गुस्सा था उसकी जगह अब शर्म ने ले ली थी वह मन ही मन सोचते थे," क्या गलत किया था बहन ने जो हमने उसके साथ इतना बुरा सुलूक किया? शादी ही तो की थी और शादी करने से पहले हमें बताया भी तो था। हम ही थे जो उसे स्वीकार नहीं कर पाए।"
दोनों, भाइयों के मन में द्वेष और नफरत धीरे-धीरे क्वायरेंटिन हो गए। 21 दिन बाद जब दीदी और जीजाजी प्लॉट के कागज पर साइन करने जानें लगे तब दोनो भाईयो ने उन्हें रोकलिया और उनकी माफी मांगते हुए वो पेपर्स उन्हे देते हुए बोले," शादी के वक्त हमने आपको कोई तोहफा तो दूर कि बात है ,आपका हक भी नही दिया। लेकिन अब इस प्लॉट को स्वीकार कर हमे प्रायच्छित करने का एक मौका दीजिए।"
सभी के आंखो में खुशी के आंसू आ गए और मां ऊपर देखर बोली देखा आपकी लाडकी ने आज फिर हमारा घर खुशियों से भर दिया!
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