स्वाभिमानी बूढ़ा.. एक दिलचस्प कहानी | interesting Hindi story
"वह देखो देखने में ही गुंडा लगता है।"," कपड़ों को देखकर ही लगता है गवार होगा।"," उसकी भाषा तो देखो मुंहफट होगा।" ऐसे ही हम लोग या हमारे आसपास के लोग दूसरे लोगों के प्रति पहली बार में ही कोई राय बना लेते हैं। आज की कहानी आपको इसी बुरी आदत से दूर रहने की सीख देगी।
"सर वह देखो वह जो सबसे आखरी वाले टेबल पर बैठकर खाना खा रहा है ना.. वह बुड्ढा आज पहली बार नहीं आया है! वह इससे पहले भी दो बार अपने होटल में खाना खाकर जा चुका है। लेकिन उसने अब तक अपने उधार के पैसे नहीं चुकाए हैं और आज फिर आ गया है खाना खाने।"
होटल के एक वेटर ने अपने मालिक हीराचंद के कानों में धीरे से यह बात बताई।
हीराचंद ने उस बूढ़े की तरफ एक नजर दौड़ाई.. उसे ध्यान से देखा और अपने कर्मचारी से पूछा आज कितने का ओर्डर दिया है उसने? सर वो भले ही उधार का खाता है, फिर भी वो कंजूस कभी ज्यादा का आर्डर नहीं करता है आज भी उसने बाकी दिनों की तरह ही सब्जी रोटी मंगाई है, ₹50 बिल होगा उसका। वेटर ने जवाब के साथ उस बूढ़े के प्रति अपने विचार भी व्यक्त किए।
बूढ़े के साधारण से खाने का ओर्डर देख कर सोचते हुए हीराचंद ने कहा,"कुछ मजबूरी होगी उनकी इसलिए बिचारे पैसे दे नहीं पाए होंगे।"
"नहीं सर! ऐसे लोगों को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं, फोकट का खाने की आदत होती है उनको और जब पैसे देने की बारी आती है तो आनाकानी करते हैं।" बूढ़े की तरफ वैटर ने तिरस्कार भरी नजरों से देखते हुए कहां।
हीराचंद को अपने कर्मचारी के विचार जानकर थोड़ा बुरा लगा। उन्होंने कहा," अच्छा! ठीक है, तुम जाओ, मैं देखता हूं क्या करना है?"हीराचंद ने एक बार फिर उस बूढ़े की तरफ गौर से देखा। बुढ़ापे की वजह से चेहरे से जा चुकी चमक हीराचंद इतनी दूर से भी महसूस कर पा रहा था। बड़े ही साधारण कपड़े पहने थे उसने कुर्ता,पजामा और कंधे पर गमछा डाल रखा था।
अपना खाना खत्म कर वह बूढ़ा सीधे काउंटर की तरफ हीराचंद के पास आकर खड़ा हो गया और बोला,"साहब कितना बिल हुआ मेरा? पहले का उधार जोड़कर बताइए।"
हीराचंद ने उसका पहले का और आज का बिल पहले से तैयार करके रखा था। बिल उसके हाथों में देते हुए हीराचंद बोला "150 रूपये।"
बिना किसी सवाल के उसने अपने कुर्ते के जेब से ₹200 की नोट निकाली और हीराचंद के सामने काउंटर पर रख दी।
हीराचंद ने पैसे उठाते हुए बूढ़े से पूछा,"अंकल आप यहीं कहीं पास में रहते हैं क्या?" "नहीं बेटा मेरा घर यहां से बहुत दूर है।"उसने कहा। "फिर आप अक्सर इतने दूर खाना खाने कैसे आते हो?" हीराचंद ने फिर से पूछा ।
"मैं यहां पास के एक शॉप में लेखपाल का काम करता हूं। जब जब मैं टिफिन नहीं लाता तब तब खाना खाने तुम्हारे यहां आ जाया करता हूं। अब हमेशा तो जेब में पैसे रहते नहीं है इसलिए कभी-कभी उधार ही खाना खाकर जाता हूं। लेकिन आज मेरा पगार हुआ है इसलिए आज मैं जानबूझकर यहां आया हूं, सोचा, खाना भी खा लूंगा और पहले की उधारी भी चुका दूंगा।" थोड़ा सा हंसते हुए बूढ़े ने कहां।
बूढ़े की उम्र देखकर हीराचंद अपने आपको एक और सवाल पूछने से रोक नहीं पाया,"आपका परिवार नहीं है क्या?" बूढा बोला" है ना! बेटा, बहू, पोता-पोती सब है और कई सारे रिश्तेदार भी लेकिन जब तक मेरे हाथ पाव सलामत है, मुझे यह पसंद नहीं कि मैं बिना कुछ किए रोटी खाऊं! हां शरीर में पहले जैसी ताकत नहीं रही अब।पहले जितनी मेहनत नहीं कर पाता हूं इसलिए लेखपाल का काम करता हूं।"
बूढ़े आदमी की इमानदारी और इतना कठिन परिश्रम देख कर एक बार तो हीराचंद के मन में ख्याल आया कि उससे खाने के पैसे ना लिए जाए लेकिन उसके साथ हुई इस 2 मिनट की बातचीत में हीराचंद यह तो जान गया था कि वह बुजुर्ग कितना स्वाभिमानी है!
उसके स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचे यह सोच कर हीराचंद ने 150 रूपये काटकर पचास का नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया। बूढ़े ने होटल में इधर-उधर देखा और उसी(जो कुछ देर पहले उसकी शिकायत हीराचंद से कर रहा था) वेटर की तरफ इशारा करते हुए हीराचंद से बोला," यह ₹50 टिप के तौर पर उस वेटर को दे देना क्योंकि उसने हर बार बहुत प्यार से और अपनेपन से मेरी सेवा की है,मुझे खाना परोसा है।" इतना बोल कर वो वहां से चला गया।
₹50 हाथों में लिए हीराचंद अपने कर्मचारी के उस बूढ़े के प्रति दृष्टिकोण और उस बूढ़े आदमी के उस कर्मचारी द्वारा दिए गए खाने के प्रति प्यार और आदर देखकर अचंभित हो गया। उसके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था।
तो दोस्तों, आप अमीर है या गरीब आपके पास जो पैसा है वह कभी भी यह तय नहीं करता। हमारा दूसरे लोगों के तरफ कैसा दृष्टिकोण है या हमारे विचार कैसे हैं? यही हमें गरीब या अमीर, अच्छा या बुरा बनाते हैं।
सोचिए अगर किसी बूढ़े आदमी को उम्र के इस पड़ाव में भी बैठकर खाना अच्छा नहीं लगता हो और उन्हें अपने बच्चों पर बोझ ना बनना हो तो उनका स्वाभिमान कितना पक्का होगा! इसीलिए ऐसे लोगों को देखकर उनके खिलाफ कोई राय मत बनाईये। पहले उन को जानने की कोशिश कीजिए। अगर उनका व्यवहार कुछ अलग लगे तो सोचिए कि जरूर उनकी कोई मजबूरी होगी? इससे उनका तो कोई फायदा या नुकसान नहीं होगा लेकिन हमें और लोगों को हमारे विचारों के बारे में पता चलेगा। इसीलिए किसी के भी प्रति अपनी राय देने से पहले अपने विचारों पर विचार करना जरूरी है। दूसरों को जज करने से पहले अपने विचारों को जज करना आवश्यक है कि कहीं हम गलत विचारों के आधीन होकर गलत व्यवहार तो नहीं कर रहे?

Very beautiful story
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