बूढ़े भक्त और भगवान की अनोखी कहानी | Bhakt ki Kahani
में दो तरह के लोग होते है एक भगवान में आस्था रखने वाले और यानी की आस्तिक और आस्था नहीं रखनेवाले यानी की नास्तिक। ये कहानी आस्था रखनेवाले लोगो को ज्यादा पसंद आएगी। हो सकता है इस कहानी को पढ़ने के बाद उनकी आस्था और ज्यादा पक्की हो जाए।
एक आदमी जो जीवनभर राम नाम जपता रहा अब वो बूढ़ा हो गया था। बूढ़ा ही नहीं हुआ था बल्कि इतना कमजोर हो चुका था की अपनी जगह से बिना किसी सहारे के उठ भी नहीं पाता था। ऐसी स्थिति में भी उसने कभी राम नाम को अपने से अलग नहीं होने दिया। वो पूरा दिन मन में राम नाम लेता रहता। राम नाम की वजह से उसे अपनी तकलीफों को सहन करने की शक्ति मिलती।
बूढ़े हो चुके इस आदमी को दो बेटे थे जो उसे नित्यकर्म करने में मदद करते। शुरू में वो बिना कहे ही खुद अपने बूढ़े बाप की सहायता कर दिया करते फिर धीरे धीरे जब बाप खुद बुलाता तब आते लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतता गया तो वो दो-तीन बार पुकारने के बाद भी मुश्किल से आते और कभी-कभी रात को ना भी आते।
अब हालत ऐसी हो चली थी कि अक्सर बूढ़ा बिस्तर गंदा कर दिया करता और जब तक उसके बेटो से सहायता ना मिलती ऐसे ही गंदे बिस्तर में पड़ा रहता। बुढ़ापा बढ़ता जा रहा था उसकी नजरें कमजोर हो चुकी थी। इतनी बदहाली में भी उस आदमी ने राम नाम का साथ नहीं छोड़ा था।
एक बार बूढ़े को नित्यक्रम करना था। उसने आवाज लगाई और अगले ही पल किसी ने उसका हाथ बड़ी कोमलता से पकड़ा और उसे नित्यक्रम करवा कर उसके बिस्तर पर लिटा दिया। यह अब रोजाना होने लगा जब भी बूढ़ा आवाज देता अगले ही पल उसकी मदद करने के लिए कोई आता और उसे उसके सारे काम करा कर वहां से चला जाता।
नजर कमजोर हो चुकी थी देखकर बूढ़ा उसे पहचान नहीं पाता था लेकिन बूढ़ा जानता था कि यह उसके बेटे नहीं हो सकते और वह स्पर्श भी उनके बेटों का नहीं था।
एक दिन जब बूढ़े आदमी ने अपने नित्य क्रिया करने के लिए अपने बेटों से मदद मांगी तब अगले ही पल उसे फिर से वही मुलायम वाला स्पर्श महसूस हुआ। सारा काम खत्म करने के बाद बूढ़े आदमी ने उस व्यक्ति का हाथ पकड़ लिया और उससे पूछा सच-सच बताओ आखिर तुम हो कौन? तुम मेरे बेटे तो नहीं हो सकते!
बूढ़े के सवाल के साथ उसके कमरे में बहुत तेज रोशनी हुई और प्रभु ने अपने दिव्य अवतार में वहां पर दर्शन दिए। किसी भी वस्तु को बड़ी मुश्किल से देख पाता था वही बूढ़ा भगवान के दिव्य रूप को स्पष्ट रूप से देखने में समर्थ हो गया।
जिस भगवान का नाम वह पूरा जीवन लेता रहा उसे अपने पास पाकर बूढ़ा उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला भगवान में धन्य हो गया जो आपने मुझे साक्षात दर्शन दिए। लेकिन भगवान मैं बहुत शर्मिंदा हूं क्योंकि मैंने आपसे मेरे नित्यक्रम करवाएं।
भगवान ने कहा मेरे लिए सारे काम एक जैसे हैं अगर वह काम मुझे अपने भक्तों के लिए करना पड़े तो मुझे सभी कामों में खुशी मिलती है।
बूढ़े ने हाथ जोड़ते हुए भगवान से कहा लेकिन भगवान आप यह सब करने के बजाय मुझे मुक्त ही क्यों नहीं कर देते? क्या आपके दर्शन मात्र से मेरी मुक्ति संभव नहीं है!
यह सब प्रारब्ध की वजह से है। तुम्हारा प्रारब्ध बहुत कठिन है । अगर मंद होता तो मेरे दर्शन मात्र से तुम मुक्त हो जाते। मैं चाहूं तो तुम्हें अभी मुक्त कर सकता हूं लेकिन फिर अगले जन्म में तुम्हें प्रारब्ध को भोगने के लिए आना पड़ेगा इसलिए मैं तुम्हें खुद तुम्हारा प्रारब्ध काटकर मुक्त करवाने के लिए सहायता कर रहा हूं। भगवान ने कहा।
इतना बोलकर भगवान वहां से अंतर्धान हो गए। कुछ महीने और काफी तकलीफ भोगने के बाद आखिरकार उस बूढ़े आदमी को मुक्ति मिली।

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