दो तोतो की रोचक कहानी | Rochak Kahani
एक समय की बात है, एक राजा शिकार करने की इच्छा से अपने समूह के साथ किसी घने जंगल से गुजर रहा था। उन्हें काफी देर तक तलाश करने पर भी कोई शिकार नजर नहीं आया। वे धीरे-धीरे उस घनघोर जंगल के अंदर जाते गये। वहा उन्हें एक जगह डाकुओं के छिपने की जगह नजर आई।
जैसे ही वे उसके पास पहुचे ही थे कि वहा के एक पेड़ पर बैठा तोता बोलने लगा..‘पकड़ो-पकड़ो एक राजा आ रहा है! राजा के पास बहुत सारा कीमती सामान है। जल्दी आओ जल्दी आओ , इन्हे जाने मत दो। लूट लो।
तोते की आवाज कानों पर पड़ते ही सभी डाकू राजा की ओर दौड़ने लगे। डाकुओं को अपनी तरफ तेजी से आते देख कर राजा और उसके सैनिक भी अपनी जान बचाकर कर भागे। वे तब तक नहीं रुके जबतक भागते-भागते डाकुओं से कई कोस दूर निकल नहीं गये।
सामने एक बड़ा सा पेड़ देखकर सब वहां रुके। कुछ देर आराम का सोचकर उस पेड़ के नीचे पहुंचे।जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे कि उस पेड़ पर बैठा एक दूसरा तोता बोल पड़ा- पधारिए राजन, हमारे साधु महात्मा की कुटिया में आपका स्वागत करता हूं! अंदर आइये,जलपान कीजिए और थोड़ा आराम कर लीजिये। तोते की इस बात को सुनकर राजा और उनके लोगो को बड़ी हैरानी हुई और वो सोचने लगे की एक ही जाति के होने के बावजूद दोनो तोतो का व्यवहार इतना ज्यादा भिन्न कैसे हो सकता है? राजा बिल्कुल भी इस बात को समझ नही पाया।
राजा तोते की बात मानकर अंदर साधु महात्मा की उस सुंदर कुटिया की ओर चला गया। साधु-महात्मा को प्रणाम कर उनके पास बैठ गया और अबतक उसके साथ घटी सारी घटना सुनायी और फिर धीरे से पूछा, गुरुवर उन दोनों तोतों के व्यवहार में भला इतना अंतर क्यों है?साधुबाबा ने राजा की सारी बातें सुनी और बोले, राजन ये सिर्फ संगति का असर है बस और कुछ भी नही!
डाकुओं के साथ रहते रहते पहला तोता भी उन्ही की तरह हो गया और उन्ही को भाषा बोलने लगा है। दूसरा तोता कई सालो से मेरे साथ है इसलिए उसकी भाषा और व्यवहार उस तोते से बिल्कुल विपरित है अर्थात जो जिस माहोल में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है।
कहने का अर्थ है कि मूर्ख भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वानों जैसा बर्ताव करने लगता है और अगर विद्वान भी मूर्खों के संगत में ज्यादा समय बिताता है तो उसके अंदर भी मुर्खिवाले गुण आ ही जाते है। इसलिए हमेंसंगती और माहोल का चयन सोच समझ कर करनी चाहिए।
