सच्चे देशभक्त की कहानी | Deshbhakt ki kahani

सच्चे देशभक्त की कहानी | Deshbhakt ki kahani 


 दोस्तों हमारे देश में हमेशा देशभक्ति को धर्म से ज्यादा महान माना गया है। आज मैं आपको एक ऐसे देश भक्त की कहानी बताने जा रहा हूं जिसे पढ़कर आपको उस पर जरूर गर्व होगा और अपने हिंदुस्तानी होने पर भी।


सच्चे देशभक्त की कहानी | Deshbhakt ki kahani


यह बात तब की है जब देश आजाद नहीं हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश के लोगों से अपील की थी कि उनके घर से एक आदमी उनकी सेना में भर्ती हो और देश के लिए लड़ाई में अपना योगदान दें।


इस अपील को सुनकर पहाड़ी प्रदेश में रहने वाली एक बूढ़ी मां बहुत खुश हो गई क्योंकि वह अपने देश से बहुत प्यार करती थी और वह चाहती थी कि उसका बेटा भी सुभाष जी के सेना में भर्ती होकर देश के लिए लड़े।


जब बूढी मां के बेटे को उनकी इच्छा पता चली तो वह भी खुशी-खुशी सेना में जाने के लिए तैयार हो गया और अपने माता का आशीर्वाद लेकर सेना में भर्ती होने के लिए पहुंच गया। इस सेना में भर्ती होने के लिए कर्नल जब सबसे पूछताछ कर रहा था तब कर्नल ने लड़के से पूछा कि वह कितने साल का है? और उसके घर में कौन-कौन है?


कर्नल के सवालों का जवाब देते हुए लड़के ने कहा कि वह 21 साल का है और उसके घर में वह इकलौता बेटा है और उसकी बूढ़ी मां है। लड़के की बातें सुनकर कर्नल ने उसे सेना में भर्ती करने के लिए मना कर दिया क्योंकि नेताजी सुभाष चंद्र का आदेश था कि घर के इकलौते बेटे को सेना में भर्ती ना किया जाए जिससे परिवार का सहारा कहीं छीन ना जाए।


हालाकि लड़के ने कर्नल की बहुत बिनती की और उसे सेना में भर्ती कर लेने के लिए कहा लेकिन कर्नल ने उसकी एक न सुनी और उसे घर वापस लौट जाने के लिए कहा।


 निराश होकर लड़का घर लौट गया और सारी घटना अपनी मां को बताई। इस दुख को उसकी मां सहन नहीं कर पाई और उसे आखिरी कुछ शब्द बोलकर वह अपना देह त्याग गई।


मां का अंतिम संस्कार करके लड़का फिर से सेना में भर्ती होने के लिए वहीं पर वापस लौट आया। और वापस लौट कर उसने कहा कि अब उसके पास कोई परिवार नहीं है उसके परिवार में एक सदस्य जो उसकी मां थी वह भी उसे यह कह कर चली गई कि वह आज से उसकी मां नहीं है क्योंकि वह उसकी देशभक्ति के रास्ते में रोड़ा बन रही है इसलिए उसे उसकी मां कहलाने का हक नहीं है और उसकी असली मां भारत माता है।


इन सारी बातों का नेताजी को जब पता चला तो उन्होंने इस देशभक्त माता को श्रद्धांजलि दी और उनके बेटे को सेना में भर्ती कर लिया और उन्हें कप्तान की पोस्ट पर नियुक्त कर दिया।


दोस्तों यह होती है सच्ची देशभक्ति और यह होता है देश के लिए बलिदान। घरों पर झंडे लगाने से या स्पीकर पर देश भक्ति के गाने बजाने से देशभक्ति साबित नहीं होती। देशभक्त के दिलो-दिमाग सब जगह देश छाया रहता है। भारत में ऐसे देश भक्तों की कोई कमी नहीं है। ऐसे देश भक्तों को सलाम। भारत माता को सलाम।

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