अकबर बीरबल कहानी : भगवान का अवतार
एक बार भगवान की धरती पर अवतरित होने की कथा सुनने के बाद अकबर ने दरबार भरकर सभी से यह सवाल पूछा कि भगवान सर्व शक्तिशाली है, वह बिना कहीं जाए सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति से किसी से भी कुछ भी करवा सकते हैं। फिर वह अवतार लेकर इस धरती पर क्यों आते हैं?
दरबार का कोई भी व्यक्ति इस सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया तो अकबर ने बीरबल की तरफ देखा।
बीरबल ने अकबर से इस सवाल का संतोष कारक उत्तर दे पाए इसलिए थोड़ा समय मांगा। अकबर भी इस बात के लिए राजी हो गया।
दरबार खत्म होने के बाद बीरबल सीधा उस नौकरानी के पास गया जो अकबर के बच्चे के देखनभाल का काम करती थी।
बीरबल ने अकबर द्वारा पूछे गए सवाल के बारे में उसे नौकरानी को बताया और उसे उस सवाल का उत्तर देने में उसकी सहायता की जरूरत होगी ऐसा उसे समझाकर उसकी सहायता मांगी।
नौकरानी जानती थी कि बीरबल उसे कभी मुसीबत में नहीं डालेगा इसलिए वह बीरबल की सहायता करने के लिए सहमत हो गई और उसे क्या करना है वह पूछा।
बीरबल ने उसको बताया कि जब शाम को हमेशा तरह अकबर जब अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए आएगा तब तुम्हे किसी बहाने से बच्चे की जगह उसके जैसे दिखनेवाले खिलोने को तालाब में गिरा देना है।
अगलें दिन शाम को जब अकबर टहलने के बाद जब तालाब के पास आया तो उसने नौकरानी से अपने बच्चे को लेकर आने के लिए कहा। नौकरानी बीरबल के समझाइए अनुसार बच्चों का खिलौना कपड़े में लपेटकर लेकर आई और लड़खड़ाने का नाटक करते हुए उसे तालाब के पानी में गिरा दिया।
अकबर बिना एक सेकंड की देरी किए तुरंत उसे बचाने के लिए तालाब में कूद पड़ा। लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि यह सारा नाटक बीरबल के कहने से किया गया है तो उसने तुरंत बीरबल को कैद करने का हुक्म दिया।
बीरबल ने भी एक मिनट की भी देरी न करते हुए अकबर से कहा कि यह आपके उसी सवाल का जवाब है जो आपने मुझे कल पूछा था। बीरबल बोला कि अगर मैं सिर्फ आपको बोलकर समझता तो शायद आप नहीं मानते इसलिए मुझे यह सारा नाटक करना पड़ा। जैसे आपके पास इतने सारे नौकर होते हुए भी आपने अपने चहेते बच्चे के लिए खुद ही पानी में कूदना बेहतर समझा। बस इसी तरह भगवान भी अपने चहेते लोगों के लिए, उन्हे मुसीबत बचाने के लिए खुद ही धरती पर अवतरित होते हैं, फिर चाहे वह अपनी एक इच्छा मात्र से उनकी सहायता कर सकते हैं लेकिन यह उनका प्यार ही है जो उन्हें धरती पर खींच लाता है।
बीरबल की बातें सुनकर अकबर का गुस्सा शांत हो गया और उसके जवाब से अकबर पूरी तरह संतुष्ट हुआ।
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