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कहानी: 'मै' नहीं 'हम' बनो

दोस्तों यह कहानी है उस दौर की जब महामारी के कारण पूरी दुनिया अपने अपने घरों में रहने के लिए विवश थी या कहिए उनको ऐसा करने के लिए सरकारों द्वारा दबाव था, वो घरों से बाहर निकल भी रहे थे तो केवल अतिआवश्यक मूलभूत चीजों के लिए जो उनकी ही अच्छाई के लिए ही था.

हर देश की सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि कोई भी व्यक्ति भूख से या जरूरी चीजों के अभाव से ना मरे. इसके लिए कई नियम कानून भी बनाए गए थे ताकि चीजों की संग्रह खोरी रोकी जा सके और जरूरतमंद लोगों तक वह पहले की तरह ही पहुंच सके.

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मगर यह समय था ही ऐसा चाहे जितने प्रयास किए गए कुछ लोग ऐसे निकल ही आए जिन्होंने चीजों को संग्रह करना शुरू कर दिया था जिसके परिणाम स्वरूप दवाइयों के दुकानों में और राशन दुकानों में जरूरी चीजों की किल्लत होने लगी थी. वे लोग जो इन्हें संग्रह कर रहे थे वह अपनी मुहमांगी कीमत लोगों से वसूल रहे थे.

काम धंधे बंद, घर से बाहर निकलना बंद, किसी भी तरह की इनकम बंद ,और ऊपर से बेसिक चीजों के लिए कई गुना कीमत चुकाना; महामारी के दौर ने जैसे दुनिया का रुप ही बदल दिया था. लोगों में हम की बजाय मै की भावना ने अग्रिम पंक्ति में स्थान ले लिया था.

ऐसे में अंजना नाम की 52 वर्षीय महिला जिसे डायबिटीज़ की बीमारी थी वो इस बीमारी से लडने में बेहद जरूरी सीरिंज के ख़त्म होने के कारण मजबूरन दवाइयों की दुकानों के चक्कर काटने पड़े रहे थे. मगर वह जहां भी जाती वहां पर उन्हें सिरिंज नहीं मिलती और यही सुनना पड़ता कि सारी सीरीज खत्म हो गई है और नया स्टोक आने में अभी समय लगेगा. वह तकरीबन 20 से 25 दुकानें घूम चुकी थी और अब जिस दुकान पर वह पहुंची थी वहां पर कोई नौजवान लड़का पहले ही सीरीज का एक आखरी पैकेट और साथ में कई सारी चीजें खरीद कर अपने साथ ले जा रहा था. जब अंजना को पता चला कि आखरी सीरीज का पैकेट भी बिक गया है तो वह बहुत निराश हो गई.

अभी वह लड़का वहां से गया नहीं था तो अंजना ने सोचा कि इस नौजवान लड़के से रिक्वेस्ट करके अपने लिए कुछ सीरीज मांग लेती हूं ताकि उसका काम चल जाए. अंजना उस लड़के से कहने लगी,"बेटा अगर तुम्हें इस सीरिंज (सुई) की ज्यादा जरूरत ना हो तो क्या तुम इसे मुझे दे सकते हो, क्योंकि मैं एक डायबिटिस की पेशेंट हूं और मुझे इस की सख्त जरूरत है मैं बहुत दुकाने घूमी, मगर मुझे कहीं पर भी सीरिंज नहीं मिल पाई है तो कृपया तुम मुझे दे दो." नौजवान लड़का बोला,"मुझे इस सीरीज की इतनी आवश्यकता नहीं है मगर मैं आपको यह सीरीज जिस कीमत में मैंने भी है उस कीमत में नहीं दे सकता अगर आपको सच में यह चाहिए तो आपको मुझे 5 गुना कीमत देनी होगी, क्योंकि आजकल मैं यही काम कर रहा हूं जरूरी चीजें खरीद कर ज्यादा दामों में बेचकर मैं अपने लिए पैसे बना रहा हूं." अंजना यह सुनकर दुख हुआ उसने उस नौजवान लड़के को समझाते हुए कहा,"बेटे यह दौर ऐसा है जहां हर इंसान को खुद के बारे में ना सोच कर सब के बारे में सोचना चाहिए तभी यह दुनिया और इंसानियत बच पायेगी, प्लीज तुम ज्यादा स्वार्थी मत बनो." वह जवान लड़का बोला,"प्लीज आपको लेना है तो लीजिए मेरे पास इन सब बातों के लिए समय नहीं है, वैसे भी मेरे पास कोई नौकरी नहीं है इसलिए मुझे दूसरों से पहले अपने बारे में सोचना पड़ेगा."

मजबूरन अंजना ने 5 गुना कीमत देकर अपने लिए वह सीरिंज खरीद ली. अंजना अपने घर चली गई. कुछ घंटों बाद उस जवान लड़के की फोन की घंटी बजी, उसने फोन उठाया तो सामने उसकी मां थी.आवाज से बहुत बीमार लग रही थी, लड़के ने पूछा क्या हुआ तो उसकी मां ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है,तुम जल्दी से जल्दी मेरे पास आ जाओ. लड़के तुरंत अपना सामान समेटा और दौड़ा दौड़ा अपने मां के पास पहुंचा.

मां के पास पहुंच कर उसे सारी बात का पता चला कि कैसे उसकी मां जो खुद भी डायबिटीज से पीड़ित थी उसके पास रखा सिरिंज का स्टॉक भी खत्म हो गया था. उसकी मां ने भी घर के बाहर जाकर कई लोकल स्टोर्सऔर दवाइयों के दुकानों में सिरिंज खरीदने की कोशिश की मगर कहीं पर भी उसे सिरिंज ना मिल पाने की वजह से उसकी हालत और भी ज्यादा खराब होती गई. तब लड़के को बहुत पछतावा हुआ उसने कहा," मेरे पास एक सिरिंज का पैकेट था मगर मैंने वह ज्यादा दाम में बेच दिया मुझे पता होता तो मैं आपके लिए रख लेता."

लड़का अपनी मां की बिगड़ती हुई तबीयत को देखकर परेशान हुए जा रहा था कि तभी वहां पर एक औरत उसके घर में आई और उसकी मां को पुकारने लगी, लड़के की मां ने उस औरत को पहचान लिया और बोली," अरे अंजना तुम! तुम यहां क्या कर रही हो."

लड़के ने जब उस औरत को देखा तो यह वही औरत थी जिसे थोड़ी देर पहले उसने कई गुना कीमत पर सिरिंज बेची थी. अंजना के हाथ में सीरीज का वही पैकेट था वह लड़के की मां को देख कर बोली,"हां लता, मैं ही हूं मैं तुम्हें देखने आई हूं .मुझे पता है तुम भी मेरी तरह डायबिटीज से पीड़ित हो और जैसे मुझे सिरिंज तलाशने में दिक्कतें आई मैंने सोचा तुम्हें भी इस परेशानी का सामना करना पड़ा होगा इसलिए मैं तुम्हें देखने आई हूं, मेरे पास यह कुछ सिरिंज है अगर तुम्हें जरूरत है तो तुम इसमें से ले सकती हो."

लड़का बोला हां जी बिल्कुल जरूरत है प्लीज दीजिए उसमें से एक सीरीज लेकर अपनी मां को दवाई देकर थोड़ी देर बाद स्वस्थ देखकर लड़के की जान में जान आई. लड़का अंजना की आंखों में आंखें नहीं मिला पा रहा था तब अंजना ने कहा बेटा कोई बात नहीं कभी-कभी हम ऐसी गलती कर देते हैं मगर हमें सही रास्ते पर आने का नया मौका जरूर मिलता है समझो तुम्हारे लिए यही वह मौका है, उम्मीद करती हूं अब से तुम सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि सबके बारे में सोचोगे. उस लड़के ने अंजना को बहुत-बहुत धन्यवाद कहते हुए कहा कि आपकी यह बात मैं जिंदगी भर याद रखूंगा और अपना सामान उठाकर बाहर चला गया.

अपनी सहेली की हालत में सुधार देखकर अंजना को भी खुशी हुई अब काफी देर होने की वजह से अंजना भी अपने घर के लिए निकल पड़ी. जब वह घर से बाहर तो उसकी सहेली का लड़का अपनी छोटी-सी दुकान बाहर लगाए बैठा था उसके पास एक बुजुर्ग कुछ खरीदने के लिए आया तो उसने उस बुजुर्ग को वह सामान उसी में ही दे दिया यह देखकर अंजना का मन भी खुशी से भर गया!

Moral of the story|कहानी का सारांश

दोस्तों, हमें अपने बारे में सोचना चाहिए मगर हमेशा नहीं कभी-कभी हमें अपने आप को भूलकर लोगों के लिए अपनों के लिए, अपने देश के लिए भी जीना चाहिए. सबसे बढ़कर हमें इंसानियत को कभी नहीं भूलना चाहिए.

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