Achi achi khaniya - 3 new Hindi stories
Kahani 1 - दो भेड़ियों की कहानी
एक बूढ़ा किसान अपने पोते को जीवन के बारे में सिखा रहा है।
"मेरे अंदर एक लड़ाई चल रही है," उसने लड़के से कहा। "
एक भयानक लड़ाई है और यह दो भेड़ियों के बीच है।
एक है
बुराई - वह क्रोध, ईर्ष्या, दुःख, अफसोस, लालच,
अहंकार, आत्म दया, ग्लानि, आक्रोश, हीनता, झूठ
झूठी शान, श्रेष्ठता और अहंकार। ”
उन्होंने कहा, "दूसरा अच्छा है - वह आनंद, शांति है,
प्यार, आशा, शांति, विनम्रता, दया, परोपकार,
सहानुभूति, उदारता, सच्चाई, करुणा और विश्वास।
तुम्हारे भीतर - तुम्हारे भी भीतर वही लड़ाई चल रही है और हर एक अन्य व्यक्ति के भी। "
पोते ने एक मिनट के लिए इसके बारे में सोचा और फिर अपने दादा से पूछा, "कौन सा भेड़िया जीतेगा?"
किसान ने बस जवाब दिया, "आप जिसे भी अपने अंदर पनपने का ज्यादा मौक दोगे ।"
दोस्तों, ये कहानी जितनी छोटी है उतनी ही बड़ी सीख देती है । हर इंसान केअंदर अच्छी और बुरी दोनों गुण आदते होती है ।बस फर्क इतना सा है जो अपनी अच्छी आदतों को ज्यादा बढ़ाता है , एन्हांस करता है वो अच्छा बन जाता है और इससे विपरीत वो इंसान बुरा वन जाता है जो बुरी आदतों को ज्यादा अहमियत देता हैं।
Kahani 2 - पांच बंदरों की कहानी
एक जगल में पांच बदर रहते थे। एक दिन पांचों बदर घूमने निकले। घूमते-घूमते वे शहर में आ पहुंचे। शहर में बहुत भीड़ थी। इतनी भीड़ देखकर वे पाचौ घबरा गए।
उन्होंने एक-दूसरे के हाथ पकड़ लिए और घूमने लगे। उन्होंने बड़ी-बड़ी दुकाने देखी। सुदर बगीचे देखे। इतना घूमने के बाद उन्हें भूख लग गई। वो सब मिठाई की दुकान पर गए।
वहा जाकर उन्होंने पेट भरकर मिठाइयाँ खाई। रात होने से पहले उन्हे जगल वापिस पहुंचना था। एक बदर ने सुझाव दिया कि हमें अपने-आप को गिन लेना चाहिए, कही कोई गुम न हो गया हो।
जब उसने गिना तो चार बन्दर ही थे। वे सब रोने लगे।उन्हें रोता देख एक आदमी ने रोने का कारण पूछा। बदरों ने रोते-रोते सारी बात बता दी।
जब उस आदमी ने गिना तो पाँच बंदर निकले। साथ ही साथ उस आदमी ने उन्हें समझाया की जिस बन्दर ने गिनती की उसने खुद को तो गिना ही नहीं! बंदरों को अपनी गलती समझ आई, बंदर खुशी-खुशी जगल लौट गए।
Kahani 3 - कर्मों का फल
एक बार की कथा है।
देवऋषि नारद और ऋषि अन्गरा
कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी
नजर एक मिठाई की दुकान पर
पड़ी। दुकान के नजदीक ही झूठी
पतलों का ढेर लगा हुआ था। उस
झूठन को खाने के लिए जैसे ही
एक कुत्ता आता है, वैसे ही उस
दुकान का मालिक उसको जोर से
डन्डा मारता है। डन्डे की मार खा
कर कुत्ता चीखता हुआ वहां से
चला जाता है।
ये दृश्य देख कर, देवऋषि
को हंसी आ गयी। ऋषि अन्गरा ने
उन से हंसी का कारण पूछा, नारद
बोले: हे ऋषिवर । यह दुकान पहले एक कन्जूस व्यक्ति की थी। अपनी
जिंदगी में उसने बहुत सारा पैसा इकट्ठा किया। और इस जन्म में वो कुत्ता बन
कर पैदा हुआ और यह दुकान मालिक उसी का पुत्र है, देखें ! जिस के लिए
उस ने बेशुमार धन इकट्ठा किया। आज उसी के हाथों से, उसे जूठा भोजन भी
नहीं मिल सका। कर्मफल के इस खेल को देखकर मुझे हंसी आ गई।
मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल जरूर मिलता है।
बेशक इस लिए उसे जन्मों-जन्मों की यात्रा क्यों न करनी पड़े।
जय जय श्री राधे

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