अच्छे संस्कार की कहानी | Hindi Kahani | Moral Stories

 अच्छे संस्कार की कहानी | Hindi Kahani | Moral Stories


आज के इस लेख में हम आपके साथ साझा करेंगे बेटे के अच्छे संस्कार की कहानी | Hindi Moral Story ।


तो कहानी कुछ इस प्रकार है...


एक सोसाइटी में दो-तीन दिनों से घरों में पानी आ रहा नहीं था। इस सोसाइटी के बाहर नगरपालिका का नल था जिसमें पानी आ रहा था।


अच्छे संस्कार की कहानी , Hindi Kahani,Moral Stories


इस नल पर चार महिलाएं पानी भरने आई हुई थी। सभी बातों बातों में अपने बेटों की तारीफ किए जा रही थी। वैसे भी हर एक मा के लिए उसका अपना बेटा ही सर्वश्रेष्ठ होता है, इस लिए इस वार्तालाप में सभी अपने अपने बच्चो की तारीफों के पुल बना रही थी।


एक महिला बोली मेरा बेटा पढ़ लिख कर इतना बड़ा डॉक्टर बना है उसके बाद आने वाला हर मरीज एक होकर ही जाता है।


दूसरी महिला ने कहा मेरा बेटा तो पढ़लीखकर    वकील बन गया है और वह आज तक एक भी केस नहीं हारा है।


तीसरी महिला बोली मेरे बेटे को पढ़ाई करना इतना ज्यादा अच्छा लगता है कि वह पढ़ पढ़ कर एक शिक्षक बन चुका है और अब दूसरे बच्चों को पढ़ाता है।


Read More :हिंदी मोरल कहानी

Read More : हिंदी प्रेरक कहानी

Read more : हिंदी नैतिक कहानी


तब थोड़ी साधारण सी दिखने वाली चौथी महिला बोली मेरा बेटा वैसे तो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। वह एक किसान है और अपने खेतों में बहुत मेहनत करता है।


सारी महिलाएं आपस में बातें कर ही रही थी कि तब पहले महिला का बेटा जो एक बहुत बड़ा डॉक्टर है वहां से गुजरा।डॉक्टर साहब ने अपनी मां और दूसरी औरतों को देखकर प्रणाम किया और वहां से चले गए।


उसके बाद दूसरी और तीसरी महिला के भी बेटे एक के बाद एक वहां से गुजरे और सभी को नमस्कार करके वह भी वहां से चले गए।


सभी महिलाएं खुश थी कि उनके बेटों के संस्कार कितने अच्छे हैं कि तभी वहां से चौथी महिला का किसान बेटा आते हुए दिखा, जो अपनी मां के सिर पर पानी का घड़ा देखकर दौड़े-दौड़े उसके पास आया और घड़ा तुरंत अपने हाथों में ले लिया। बेटा बोला," मां भला तुम क्यों चली आई मुझे बोल दिया होता तो में ही पानी लेे आता।"


बाकी सभी तीनों महिलाओं की आंखें फटी की फटी रह गई इस किसान बेटे के संस्कार देख कर।


कहानी की गहरी सीख


 अच्छे संस्कार की कहानी | Hindi Kahani | Moral Stories  पढ़कर हम ये सीख सकते हैं कि सिर्फ पढ़ने लिखने से आदमी संस्कारी नहीं हो जाता वह संस्कारी तब होता है जब उसे यह सारे संस्कार व्यवहार में सिखाए जाते हैं।


बड़ो को में कहना चाहूंगा इस तरह के संस्कार व्यवहार में सिखाने के लिए आपको कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि बच्चे अक्सर वही दोहराते हैं जो घर में उनके बड़े या बुजुर्ग लोग करते हैं।


ये कहने कि जरूरत बिल्कुल नहीं है कि हर मा को अपने बच्चो के प्रति जो ज़िम्मेदारियां होती है वो कितनी बखूबी वो निभाती है। ये कहानी सभी बच्चो के लिए है की उनका ध्यान इस बात पर जाए की जब हमारे बड़े अपनी जिम्मेदारियां नहीं भूलते तो हमे भी अपने संस्कार नहीं भूलना चाहिए।


दोस्तों क्या आपकी भी मा या दादिमा आपके नाम तारीफों की झड़ी लगती है? ये कहानी कैसी लगी आप अपने विचार हमारे साथ साझा कर सकते है। और भी अच्छी अच्छी कहानी पढ़िए कहानियां पर क्लिक कीजिए।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने