जब जब सच्ची मित्रता के बारे में बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण सुदामा की कहानी याद आती हैं। लेकिन ये कलयुग हैं दोस्तों क्या वैसी दोस्ती आजकल के जमाने में संभव है? मैं कहूंगा हा, मै जय वीरू की फिल्मी दोस्ती की बात नहीं कर रहा में जिस पक्की वाली दोस्ती की बात कर रहा हूं जो Best friendship Story Hindi | दोस्ती की कहानी आज आप पढ़ेंगे।
Best friendship Story Hindi | दोस्ती की कहानी
गंभीर रूप से बीमार दो आदमी एक ही अस्पताल के एक ही कमरे में रहते थे। इनमें से एक आदमी को जिसके फेफड़ों में तरल जमा हुआ था ट्रीटमेंट के रूप में प्रत्येक दोपहर एक घंटे के लिए अपने बिस्तर पर बैठने की अनुमति दी जाती थी।
उसका बिस्तर कमरे की इकलौती खिड़की के पास था। दूसरे आदमी को अपना सारा समय अपनी पीठ के बल फ्लैट लेटे लेटे में बिताना उसी बेड पर बिताना पड़ता था। ये दोनों व्यक्ति जो अब कई समय से एक साथ थे उन्होंने अब आपस मै घंटो तक बाते करना शुरू कर दी।
उन्होंने अपनी पत्नियों और परिवारों, अपने घरों, अपनी नौकरी, सैन्य सेवा में अपनी बिताए जीवन के बारे में बाते की, उन्होंने बाते की की वो कहा कहा घूमे है? और जीवन में क्या क्या अचीव किया है।
हर दोपहर जब खिड़की के पास बिस्तर पर बैठा आदमी एक घंटा अपने बिस्तर पर बैठ कर खिड़की से बाहरी दुनिया के नज़ारे देखता था तो वह अपने रूममेट को उन सभी चीजों का वर्णन करके सुनता था और इस तरह वे दोनों ही बाहरी दुनिया से जुड़ा हुआ महसूस करते।
दूसरे बिस्तर पर बैठा आदमी जो चाहकर भी ज्यादा हिल्डुल नहीं सकता था वो अब उस एक घंटे की अवधि के लिए अपने आप को जीवित महसूस करने लगा। इसी एक घंटे के दौरान उसकी अस्पताल की बेबस दुनिया बाहर की दुनिया की सभी गतिविधियों और रंगों से विस्तृत और जीवंत हो जाया करती।
खिड़की से एक सुंदर झील वाला पार्क दिखाई देता था। बत्तख और हंस पानी पर खेलते थे जबकि बच्चे अपनी खिलोनवाली नावों को चलाते थे।
रंग बिरंगी फूलों के बीच युवा प्रेमी हाथों में हाथ डाले चलते थे और दूर से शहर के क्षितिज का एक अच्छा दृश्य देखा जा सकता था।
जैसे ही खिड़की के पास वाला आदमी ने यह सब विस्तार से बताया, कमरे के दूसरी तरफ का आदमी अपनी आँखें बंद कर लेता और सुरम्य दृश्य की मन ही मन कल्पना करता।
एक गर्म दोपहर को खिड़की के पास वाले आदमी ने वहां से गुजरने वाली परेड का वर्णन किया।
हालांकि दूसरे आदमी को किसी तरह की कोई ध्वनि या बैंड की आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी फिर भी जैसा उसका वर्णन खिड़की के पास वाले आदमी द्वारा किया जा रहा था - दूसरा आदमी इसे आंखे बंद कर देख सकता था,अपनी कल्पना में,अपनी मन की आंखो से।
कई दिन और सप्ताह बीत गए। एक दिन सुबह, नर्स स्नान के लिए पानी लेकर आई तब उसने खिड़की के पास वाले आदमी के निर्जीव शरीर को देखा, जो उस दिन नींद में ही शांति से मर गया था।
वह दुखी हुई और शव को ले जाने के लिए अस्पताल के परिचारकों को बुलाया।
अपने इस मुश्किल सफर का एकमात्र हमसफ़र के जाने से पहले से अधमरे शरीर वाला दूसरा आदमी जैसे मन से भी अधमरा सा हो गया। कुछ दिन बड़ी पीड़ा और बोरियत में बिताने के बाद उचित समय देखकर, आदमी ने नर्स को उसको पहले आदमी के बेड यानी खिड़की के पास वाले बेड पर शिफ्ट करने के लिए कहां।
नर्स को कोई ऐतराज नहीं था। उसे शिफ्ट करके और यह सुनिश्चित करने के बाद कि वह सहज है, नर्स ने उसे अकेला छोड़ दिया।
धीरे-धीरे, दर्द के साथ, कई महीनों के बाद बाहर की वास्तविक दुनिया को पहली बार देखने की लालसा में उस ने अपने आपको किसी तरह को एक कोहनी पर खड़ा कर लिया। और वह बिस्तर के पास की खिड़की से बाहर देखने के लिए धीरे-धीरे मुड़ा।
उसके आचार्य का ठिकाना न रहा जब उसने खिड़की के बाहर एक उचि दीवार को देखा जिसके पार कुछ भी देख पाना असम्भव था!
वो सोचता रहा पर कुछ भी समझ ना पाया तब उस आदमी ने नर्स से पूछा कि उसका मृतक रूममेट कैसे
इस बड़ी दीवाल के बावजूद खिड़की के बाहर ऐसी अद्भुत चीजों का वर्णन किया करता था?
नर्स ने जवाब दिया कि वह आदमी अंधा था और दीवार भी नहीं देख सकता था।
नर्स ने कहा, "शायद वह सिर्फ आपको प्रोत्साहित करना चाहता था।"
