कहानी : मृत्यु अटल है | Best Hindi Kahani
कई सो सालों पहले की है कहानी है। एक गांव में रामानंद नाम का एक बड़ा ही विद्वान ब्राह्मण रहा करता था। रामानंद बचपन से ही ब्रम्हचारी था इसलिए उसका परिवार के नाम से कोई नहीं था हा उसका एक बचपन से हि हरिदास नाम का एक मित्र था। हरिदास जो रामानंद के गांव से तीन चार गांव दूर के गांव में रहा करता था वो जन्म से ही गूंगा और एक पैर से विकलांग था।
एक बार रामानंद को जब मानसिक अशांति सी होने लगी तब उसने सोचा अपने बचपन के मित्र से मुलाकात की जाए तो कुछ शांति मिले ऐसा सोच कर रामानंद हरिदास के गांव जाने के लिए निकल पड़ता है।
हरीदास के गांव जाने के रास्ते में 3-4 गांव और कुछ जंगल भी आते थे। रामानंद जब जंगल से होते हुए गुजर रहा था तब उसके साथ सफर में महाकाल नाम का एक आदमी जुड़ गया।
महाकाल का साथ पाकर रामानंद को भी अच्छा लगा और बातों बातों में उनका सफर अच्छा कटने लगा। चलते चलते रास्ते में जब पहला गांव आया तब महाकाल ने रामानंद से कहा कि, "तुम आगे बढ़ो मेरा इस गांव में कुछ काम है उसे खत्म करके में तुम्हे आगे मिलता हूं।"
रामानंद ने अपना सफर धीरे-धीरे जारी रक्खा। वह अपने सफर में थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उसे पता चला उस गांव में कोई फांसी लगाकर मर गया है। आगे महाकाल फिर उसके सफर में साथ हो गया! वह दोनों अपना सफर जारी रखते हुए आगे बढ़ते गए।
कई मिलो तक चलने के बाद फिर से 1 गांव रास्ते में पड़ा, जहां फिर से महाकाल ने रामानंद से कहा कि, "मेरा इस गांव में कुछ काम है जो पूरा कर मैं तुम्हें आगे मिलता हूं।" और वह उस गांव में चला गया।
रामानंद ने फिर धीरे-धीरे अपना सफर जारी रखा और थोड़ा आगे जाकर उसे खबर मिली कि उस गांव में एक आदमी को सांप काट गया और आदमी मरा गया! रामानंद सोच ही रहा था कि यह कैसा अजीब इत्तेफाक है कि जिस भी गांव में महाकाल जाता है, वहां कोई ना कोई बुरी खबर आ जाती है कि तभी महाकाल फिर से उसके साथ सफर में जुड़ गया।
हालांकि रामानंद पूछना चाहता था लेकिन वह महाकल से हिचकिचाहट के वजह से कोई सवाल नहीं पूछ पाया।
कुछ घंटों तक चलने के बाद फिर से 1 गांव आया और फिर से महाकाल उस गांव में चला गया और जब वह लौट के आया तब तक रामानंद को पहले से पता चल चुका था कि उस गांव में आग लगने की वजह से कई लोगों की जान जा चुकी है। क्योंकि रामानंद इस बार आगे नहीं बढ़ा था और उसी गांव के पास वाले मंदिर पर रुक कर यह सब देख रहा था।
जब महाकाल रामानंद के पास वापस आया तो इस बार रामानंद से रहा नहीं गया और उसने महाकाल से पूछा कि, "आखिर तुम कौन हो? और क्या राज है कि तुम जहां भी जाते हो वहां पर कोई ना कोई मर जाता है?"
रामानंद के पूछने पर महाकाल ने उसे सच-सच बता दिया कि वह असल में यमराजा का एक दूध है जिसका काम ही लोगों की जान निकालना है!
अब तक जो भी हुआ था वह सब देखते हुए रामानंद को उसकी बात तो सच लग रही थी लेकिन पूरी तरह से विश्वास नहीं हो रहा था इसलिए उसने महाकाल से पूछ लिया बताओ अब आगे कीसकी मृत्यु होने वाली है?
महाकाल जो कई समय से रामानंद के साथ चल रहा था उसे रामानंद का स्वभाव अच्छा लगा था इसलिए उसने कुछ भी नहीं छुपाया। उसने रामानंद को बताया कि, "आगे जिस व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है वो कोई और नहीं बल्कि जिसे तुम मिलने जा रहे हो वहीं है."
यानी कि आगे हरिदास जो कि खुद रामानंद का बचपन का मित्र है उसी की जान जाने वाली थी। यह सुनकर रामानंद को दुख हुआ लेकिन महाकाल ने उससे कहा था की हरिदास की मृत्यु का कारण रामानंद खुद बनेगा।
रामानंद ने सोचा कि मैं हरिदास से मिलूंगा ही नहीं तो उसकी मृत्यु भी नहीं होगी यह सोच कर उसने हरिदास के गांव जाने का मन बदल दिया लेकिन तब तक हरिदास हाफते हाफते उसी जगह आ पहुंचा जहां पर महाकाल और रामानंद रुक कर बातें कर रहे थे!
इससे पहले कि रामानंद हरिदास से कुछ पूछ पाता वह जमीन पर गिर पड़ा और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई! रामानंद को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे हो गया, लेकिन उसकी समझ में यह आ गया था कि महाकाल सच बोल रहा है।
रामानंद ने महाकाल से पूछा आपने तो कहा था कि हरिदास की मृत्यु का कारण मैं बनूंगा किंतु यह तो मुझे मिले बिना ही मर गया ऐसा कैसे हुआ?
महाकाल ने रामानंद से कहा," उसकी मृत्यु का कारण अब भी तुम ही हो क्योंकि यह 2 गांव पहले से ही तुम्हारा पीछा कर रहा था। इसने तुम्हें देख लिया था लेकिन गूंगा और एक पैर से अपंग होने की वजह से यह तुम्हारी जितनी तेजी से तुम्हारी तरफ बढ़ नहीं पाया और नहीं तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ खींच पाया। बेचारा लगातार तुम्हारा पीछा करता रहा। जब तुमने आगे बढ़ना रोककर एक जगह पर मेरा इंतजार किया तब यह अपनी गति से चलते हुए तुम तक पहुंच गया लेकिन इस बीच इसने थोड़ा सा भी आराम नहीं किया जिस वजह से इसे दिल का दौरा पड़ा और यह मर गया।"
अपने बचपन के मित्र की मृत्यु से दुखी और यह जानकर और भी ज्यादा दुखी कि उसकी मृत्यु का कारण भी वह खुद ही है रामानंद बहुत रोया। रामानंद ने खुद को संभाला और अपने मित्र की अंतिम क्रिया अच्छे से समाप्त की और अपने गांव की तरफ लौटने लगा।
जाते जाते रामानंद के मन में सवाल उठा कि उसकी मृत्यु कब होने वाली है यह पता किया जाए। कुतूहल वश रामानंद ने महाकाल से विनती की कि वह उसे खुद की मृत्यु का समय और कारण बताएं।
महाकाल को लगा ब्राह्मण काफी समझदार है और महाकाल ने खुद देखा था कैसे रामानंद अपने परम मित्र की मृत्यु को भी झेल गया था और कम समय में ही स्थिर हो गया था। इसलिए महाकाल ने रामानंद को बताया कि तुम्हारी मृत्यु आज से 3 महीने बाद पड़ोसी राज्य में फांसी लगने से होगी।
रामानंद अपने गांव लौट आया। आदमी कितना भी विद्वान और ज्ञानी क्यों ना हो अगर उसे अपने मृत्यु का समय पता हो तो उसे रोकने के लिए कुछ ना कुछ तो करेगा ही। रामानंद भी इस बात का पूरा ध्यान रखने लगा कि वह किसी भी कारण और अवस्था में अपने राज्य को छोड़कर कहीं पर ना जाए।
फिर भी उसे भूख नहीं लगती,नींद नहीं आती और वह बहुत परेशान रहने लगा। रामानंद विद्वान होने की वजह से उसकी ख्याति उसके राज्य के राजा तक पहुंची हुई थी। जल्दी ही उसकी इस अवस्था की बातमी राजा तक पहुंच गई और 1 दिन राजा ने उसे अपना दरबार में बुलाया।
रामानंद को जब राजा ने दरबार में पूछा कि क्यों वह इतना दुखी रहने लगा है तब रामानंद ने सारी बात राजा के आगे बता दी। राजा समेत सभी दरबारियों को इस बात से काफी आश्चर्य हुआ क्योंकि सब लोग जानते थे कि रामानंद कभी झूठ नहीं बोलता है इसलिए सभी ने विचार-विमर्श करके रामानंद को राजा के महल में ही सुरक्षित स्थान पर रखने का फैसला किया।
राजा ने अपने ही महल में रामानंद को रहने के लिए एक बहुत आलीशान कमरा दीया। राजा चाहता था कि रामानंद उसके महल में कैदी की तरह मेहसूस ना करे इसलिए सभी नौकरों को और सिपाहियों को आदेश दिया की रामानंद को कहीं भी आने जाने से रोका ना जाए।
राजा के महल में रामानंद अब अपने आप को थोड़ा सा सुरक्षित महसूस करने लगा। लेकिन कभी भी वह रात को गहरी नींद नहीं सो पाता था। उसे बचपन में नींद में चलने की बीमारी थी और यह बीमारी तब ज्यादा असर करती है जब आदमी चिंता में सोए या गहरी नींद ना ले पाए।
राजा के महल में रहकर उसकी यह बीमारी अब काफी बढ़ गई लेकिन इस बात का उसे पता नहीं था और उसे राजा के आदेश होने के वजह से कोई भी नौकर या सिपाही कहीं भी आने-जाने से नहीं रोकता था।
जल्दी ही वह दिन भी आ पहुंचा जब उसकी मृत्यु होने वाली थी। उस रात भी वो चिंता में सोया और नींद में उठकर चलने लगा। चलते चलते वह महल के अस्तबल में गया, एक घोड़े पर सवार हो गया। घोड़ा राजकुमार का था और राजकुमार अक्सर पड़ोस के राज्य की राजकुमारी को मिलने उसी घोड़े पर जाया करता था। जैसे ही रामानंद उस घोड़े पर सवार हुआ घोड़े ने उसे राजकुमार समझके दूसरे राज्य में जाने के लिए दौड़ लगा दी और कुछ ही समय में दूसरे राज्य के महल में जाकर रुका।
रामानंद घोड़े से उतर कर उसे अपने राज्य के राजा का महल समझकर महल के अंदर घुस गया और वहां पर नींद में चलते चलते रानी के शयन कक्ष में जाकर सो गया।
सुबह जब रानी उठी तो एक पराय पुरुष को अपने कक्ष में सोते हुए देख बहुत डर गई और तुरंत राजा को बुलाया। ये नजारा देख राजा को बहुत गुस्सा आया। राजा ने तुरंत दरबार बुलाया वहां पर रामानंद को हाजिर किया गया और उसे फांसी पर लटकाने की सजा सुनाई गई।
रामानंद ने राजा से अपने निर्दोष होने की सफाई देते हुए कहा, "महाराज मुझे नहीं पता कि मैं कैसे आपके महल में आ गया? आप ही सोचिए की किसी की भी इतनी हिम्मत हो सकती है कि आपके राज्य में आकर आप ही की रानी के बगल में सो जाएं? " और उसके साथ घटी 3 महीने पहले की घटना और महाकाल के बारे में सारी सच्चाई बता दी।
राजा को भी रामानंद की बात में कुछ तर्क लगा इसलिए राजा ने अपने पड़ोसी राज्य से रामानंद की कही बातों की पुष्टि करवाई तब उसे पता चला कि वह पिछले कई दिनों से पड़ोसी राजा के राज्य में मेहमान की तरह रह रहा था।
राजा ने फिर से दरबार बुलाया और अपनी दी गई सजा पर विचार विमर्श करने के लिए कहा। सभी चाहते थे की रामानंद को सजा नहीं होनी चाहिए लेकिन सब ये भी चाहते थे कि राजा की कही हुई बात का मान भी रखा जाए।
काफी सोच विचार करने के बाद सब इस बात पर सहमत हुए की एक कच्ची सुत की दोरी से रामानंद को फांसी दी जाए जिससे वह रस्सी टूट जाएगी रामानंद की मृत्यु भी नहीं होगी और राजा की बात भी रह जाएगी।
यह फैसला सुनकर रामानंद भी खुश हुआ और खुशी खुशी सुंत की डोरी से फांसी लगाने के लिए राजी हो गया। रामानंद को डोरी फांसी लगाई गई। वह डोरी रामानंद का वजन नहीं संभाल पाई और टूट गई लेकिन टूटने से पहले पतली होने के कारण डोरी से रामानंद के गले की एक नस कट गई और काफी खून बहने की वजह से रामानंद की वहीं पर मौत हो गई।
कहानी की गहरी बात
दोस्तों इसीलिए कहते हैं कि मृत्यु अटल हैं लेकिन मृत्यु से पहले के जीवन को हम अपने मृत्यु के बारे में सोच सोच कर व्यर्थ नहीं कर सकते। एक दिन तो सबको मरना है लेकिन मरने से पहले जितना जी सके हमें जी लेना चाहिए। इस कहानी से सबसे गहरी बात जो हमें सीखने को मिलती है वो यह है कि हमें ना भूतकाल में ना भविष्य काल में बल्कि हमें वर्तमान काल में जीना चाहिए।

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