मजेदार कहानी : राजा के नाम पर जुवा | Majedaar kahani
एक दिन एक राजा ने अपने महल के द्वार से बाहर कदम रखा और वहां एक व्यक्ति को खड़ा पाया।
उस आदमी के हाथ में एक हृष्टपुस्ट मुर्गा था।
राजा को देखकर उसने आदरपूर्वक प्रणाम किया और कहा: 'महाराज, मैंने आपके नाम पर जुआ खेला और इस मुर्गे को जीत लिया। इसलिए इस पर आप का ही हक है। कृपया इसे स्वीकार कर ले।"
“इसे मेरे मुर्गीपालक को दे दो,” राजा ने कहा।
कुछ दिनों बाद राजा ने देखा कि वह आदमी फिर से गेट के बाहर खड़ा है।
इस बार उसके साथ एक बकरी थी। "मैंने यह बकरी आपके नाम पर जीती है महाराज," उसने राजा को सलाम करते हुए कहा। "इसलिए ये आप की हुईं,इस ले लीजिए।"
राजा प्रसन्न हुआ।
"इसे मेरे बकरीपालक को दे दो," उसने कहा।
कुछ हफ्ते बाद वह आदमी एक बार फिर महल के द्वार पर था।
इस बार उसके साथ दो आदमी थे।
"महाराज, आपके नाम पर खेलते हुए मैंने इनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए 500 सोनामोहरे हार दिए," उस व्यक्ति ने कहा। "मेरे पास उन्हें भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं।"
राजा को एहसास हुआ कि उसने पिछले मौकों पर आदमी के उपहारों को स्वीकार करने में गलती की है।
अब वह उसकी मदद करने से इंकार नहीं कर सकता था। उसने दो आदमियों को भुगतान कर दिया और जुआरी को उसके नाम पर फिर कभी नहीं खेलने की चेतावनी दी।
कहानी की सिख
दोस्तो यही तरीका आजकल कई बड़ी बड़ी कंपनिया भी अपनाती है जो पहले हमे फ्री या पहले पहले एकदम सस्ते दामों पर चीजों या सेवाओं की आदत डाल देती है बाद में दाम बढ़ाकर पहले गुमाए पैसों के साथ साथ अच्छा खासा मुनाफा भी कमाते है। इसलिए दोस्तो जब भी कोई वस्तु फ्री या बिना मेहनत के मिले तो उसे लेने से पहले दो बार सोचिएगा जरूर।
