एक बूढ़ी मां की दर्द भरी कहानी | Kahani budhi ma ka Dard
3 साल हो चुके थे बेटे को अपना घर छोड़कर विदेश में बसे हुए। इन 3 सालों में बूढ़ी मां और ज्यादा बूढ़ी हो गई थी।
75 वर्ष की उम्र में सुलोचना देवी की याददाश्त काफी कमजोर होती जा रही थी। उन्हें रोजमर्रा की चीजें याद ना रहती लेकिन जो उन्हें हमेशा याद रहता वह था उनका बेटा। दिन हो या रात एक पल भी ऐसा ना होता जब उन्हें अपने बेटे की याद ना आती।
दूसरी तरफ बेटा था जो साल भर में एक आध बार अपने मां को फोन कर लिया करता और एक 2 मिनट से ज्यादा बातें भी ना किया करता। फिर भी यह बूढ़ी मां टकटकी लगाए अपने बेटे का इंतजार करती रहती।
1 दिन बेटे का विदेश से फोन आया।," हेलो, हेलो सुन रही हो ना मां? अनिल बोल रहा हूं तुम्हारा बेटा। कैसी हो मां?"
"मैं.. मैं.. ठीक हूं बेटा तुम बहू और मेरा पोता कैसा है?" मां ने पूछा।
"सब अच्छे है मां। मैं अगले हफ्ते गांव आ रहा हूं मां, तुम्हें लेने। अब हम सब साथ में ही लंदन में रहेंगे मां। तुम्हारी बहू कह रही थी, मां को यहां पर लेकर आओ बेचारी अकेली वहां परेशान होती होगी।" बेटे ने कहा।
मां की बूढ़ी, सूखी आंखें आंसुओं से भीग गई। उसके कमजोर शरीर के नस नस में खुशी की लहर दौड़ गई। बेटे और बहू का अपने प्रति प्रेम देखकर मां का मन खुशी से भर आया।
बेटे ने आगे कहा ,"मां तैयार रहना मां। मुझे ज्यादा दिन छुट्टियां नहीं है। जिस जिस से जितने पैसे लेने हैं लेकर रखना तब तक मैं प्रॉपर्टी डीलर से बात कर लेता हूं, घर के लिए।"
"घर के लिए?" मां ने पूछा। "हां मां ,गांव का घर हमें बेच देना पड़ेगा। अब हम साथ में ही रहने वाले हैं तो वहां पर घर रखने का कोई मतलब नहीं है मां" बेटे ने कहा।
बुढ़ापे की वजह से ठीक से चलने में असक्षम मां ने पूरे मोहल्ले में घूम घूम कर अपनी इस खुशखबरी को सबको सुनाया। सभी को खुशी हुई सबको लगा माजी के आखरी दिन अपने परिवार के साथ खुशी से बीत जाएंगे।
घर वापिस आ कर मां ने अपने घर के कोने कोने को ऐसे देखा जैसे वह अपने दूसरे बेटे को देख रही हो। देखे भी क्यों ना उस घर को अपने बेटे से कम थोड़ी समझा था। अपने पति के साथ 40 साल यही तो बिताए थे।
लेकिन अब मजबूर थी बुढ़ापे के आखरी साल बेटे और बहू के साथ बिताना चाहती थी। दिल पर पत्थर रखकर घर बेचने के लिए मां तैयार हो गई।
आनन-फानन में बेटे ने घर को आधे दामों पर बेच दिया। मां ने ज्यादा नहीं लेकिन जिन चीजों से दिल लगा था उन चीजों को समेटा और बेटे के साथ टैक्सी में बैठकर एयरपोर्ट के लिए चली गई।
एयरपोर्ट पर आकर बेटे ने मां से कहां,"मां तुम यहां बेंच पर बैठो मैं सामान और बोर्डिंग पास की जांच करा कर आता हु।वहा वक्त लगता है और खड़ा रहना पड़ता है तुम्हें तकलीफ होगी। तुम यही आराम करो मैं यू गया और यू आया।"
मां बेंच पर बैठ गई और बेटा अंदर चला गया। काफी समय हो गया बेटा वापस नहीं लौटा। मां सोचने लगी," ज्यादा भीड़ होगी इसलिए देर लग रही होगी। "
अंधेरा होने को आया अब तो लोगों की चहलकदमी भी कम होने लगी। मां को अब चिंता होने लगी। एक कर्मचारी ने आकर पूछा," किससे मिलना है माजी आपको? यहां पर क्यों बैठी है?"
डरती हुई आवाज में सुलोचना देवी बोली,"मैं? मेरा बेटा अंदर सामान की जांच कराने गया है। लंदन जा रहे हैं हम।"
"क्या नाम है मा जी आपके बेटे का?" कर्मचारी ने पूछा।" अनिल नाम है मेरे बेटे का " सुलोचना देवी ने बताया।
कर्मचारी अंदर गया और थोड़ी देर बाद बाहर लौटा। उसने सुलोचनादेवी से कहा,"माजी लंदन जाने वाली फ्लाइट तो दोपहर में ही जा चुकी है और आपका बेटा भी उस फ्लाइट में बैठकर लंदन जा चुका है अब आपके यहां बैठने का कोई मतलब नहीं है। आप भी अपने घर चली जाइए।"
"क्या जा चुका है? और मैं घर जाऊं? घर?" मां की आंखों से आंसुओं के सैलाब उठने लगे।
जैसे तैसे मां घर पहुंची जो अब उसका था ही नहीं, बिक चुका था। वो वही बरामदे में तुलसी के पास सो गई। घर के नए मालिक को उस पर दया आई तो एक कमरा किराए से उसको दे दिया। पेंशन के पैसों से खाना और किराए का बंदोबस्त हो जाता था। दिन बीतने लगे।
कुछ दिनों बाद घर के नए मालिक ने सुलोचनादेवी से कहा," माजी आप अपने रिश्तेदारों के यहां पर जाकर क्यों नही रहती है? इस उमर में आपके लिए वही अच्छा होगा।"
"अच्छा तो होगा लेकिन अगर मेरा बेटा वापस आया तो उसका ख्याल कौन रखेगा? मेरा बेटा बहुत भोला है उसे अपना ख्याल रखना बिल्कुल नहीं आता! मैं कहीं नहीं जाऊंगी! क्या पता कब उसे मेरी जरूरत पड़ जाए!" मां ने कहां।
दोस्तों, सच बता रहा हूं मां की ऐसी बातें सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। किसी ने सच ही कहा है पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। दोस्तों आप सभी से हाथ जोड़कर विनती करता हूं अपने माता-पिता की जितनी हो सके सेवा करना। उनके साथ कभी बुरा बर्ताव मत करना।
