दोस्तों, आपने कई बार लोगों को कहते सुना होगा कि मेरे नसीब में ही नहीं है। या नसीब में होता तो जरूर मिल जाता। या फिर यह कहावत की नसीब से ज्यादा किसी को नहीं मिलता जरूर सुनी होगी। आज मैं नसीब की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आज की कहानी "नसीब का लिखा.. एक रोचक कहानी" इसी विषय पर आधारित है। इस interesting Hindi story को पूरा जरूर पढ़िए।
नसीब का लिखा...एक रोचक कहानी | Very interesting Hindi Story
15 वीं सदी की यह कहानी है। किसी एक गांव में बहुत ज्ञानी पंडित रहा करता था। पंडित आजू बाजू के सारे ही गावों मैं बहुत प्रख्यात था और इसी वजह से धनवान भी।
पंडित का परिवार ज्यादा बड़ा नहीं था। पंडित अपनी पत्नी के साथ अपने बहुत बड़े घर में अकेला रहता था क्योंकि पंडित को कोई बेटा था नहीं और एक बेटी थी जिसका विवाह पास के गांव वाले एक श्रीमंत लड़के से हो चुका था।
पंडित ने शादिसे पहले अपने होनेवाले दामाद की अच्छे से जांच पड़ताल की थी और अपनी बेटी का भविष्य भी ठीक से पढ़ा था तब जाकर उसने बेटी की शादी की थी।लेकिन चंद सालो में ही पंडित का दामाद बुरी आदतों के चंगुल में फंस गया। जुआ और शराब की बुरी लत ने उन्हें सड़क पर लाकर रख दिया था।
अपने बेटी की ऐसी दुर्दशा देखकर पंडित की पत्नी काफी दुखी होती थी और अक्सर पंडित को कहा करती थी तुम जाकर उनकी मदद कर आओ। पंडित हमेशा अपनी बीवी को यह कहकर उनकी मदद करने के लिए मना कर देता था कि अभी कुछ समय तक उनका बुरा वक्त चलना है। हम चाहे कितनी ही कोशिश कर ले जो उनके नसीब में नहीं है वह उन्हें नहीं मिल पाएगा।
पंडित की ऐसी बातों से उसकी पत्नी काफी दुखी हो जाया करती थी और मन ही मन सोचती थी कि," कैसा स्वार्थी पिता है अपनी बेटी को इतने कष्टों में देखकर भी उसकी मदद करने के लिए मना करता है। आखिर भगवान ने जो इतना सारा धन धान्य दिया है उसका क्या करेंगे? हमें कोई और औलाद भी तो है नहीं ले देकर एक यही बेटी है और उसके लिए भी कुछ नहीं करेंगे तो किसके लिए करेंगे?"
पंडित ऐसा नहीं सोचता था। ऐसा नहीं है कि पंडित अपनी पुत्री से प्रेम नहीं करता था लेकिन उसने अपनी पुत्री की कुंडली इतने अच्छे से पढ़ी थी और वह यह पहले से ही जानता था की वह चाहे किसी भी लड़के से शादी करती लेकिन उसके जीवन में यह समय आने वाला ही था और बिना इसे भुगते उसको छुटकारा नहीं मिलने वाला था।
एक दिन खाने पीने के लिए भी मोहताज हो चुके पंडित के बेटी और दामाद उसके घर पर आए। पंडित ने और उसकी बीवी ने दोनों का खूब आदर सत्कार किया और खूब अच्छा खाना खिलाया। बेटी और दामाद की पंडित से सहायता मांगने की हिम्मत ना हुई इसलिए वह बिना बोले ही वापस अपने घर को लौटने लगे।
लेकिन मां तो मां होती है पंडिताइन से रहा नहीं गया और बिना पंडित की इजाजत के उसने चोरी छुपे बूंदी के लड्डू बनाकर उसमें सोने के सिक्के रख दिए और बेटी और दामाद को दे दिए ताकि बेटी और दामाद की कुछ आर्थिक सहायता हो सके। पंडिताइन यह भी जान गई थी कि बेटी और दामाद शर्म के मारे उनसे मदद नहीं मांग रहे थे इसलिए उसने बेटी और दामाद को भी लड्डुओं में छिपे सिक्कों के बारे में कुछ नहीं बताया।
"जाहिर सी बात है कि जब वो लोग घर पर जाकर लड्डू खाएंगे तो उन्हें उसमें सोने के सिक्के मिल जाएंगे इस तरह बिना उनके मांगे ही उन तक मदद पहुंच जाएगी" सोच कर पंडिताइन मन ही मन अपने बेटी की मदद करने के लिए खुश होने लगी।
पंडित के दामाद और बेटी उन दोनों का आशीर्वाद लेकर अपने घर के तरफ रवाना हो गए। उन दिनों गाड़ियां तो होती नहीं थी घोड़ा गाड़ी या बेल गाड़ियां चलती थी। पैसे ना होते तो और चीजों की लेनदेन से भी व्यवहार होता था। बेटी और दामाद का गांव पंडित के घर से कोसों दूर था,फिर भी पैसों की कमी के चलते वह चलकर अपने गांव की तरफ निकल पड़े। थोड़े दूर ही चले थे कि पंडित की बेटी के पैर में मोच आ गई और अब उसको चलना भी मुश्किल हो गया।
पंडित के दामाद ने जब देखा कि उसकी बीवी अब बिल्कुल चलने में सक्षम नहीं है तो उसने एक टांगा अपने घर तक किराए पर ले लिया। दोनों पति पत्नी टांगे में बैठकर घर तक पहुंच गए लेकिन टांगे वाले को देने के लिए उनके पास पैसे थे नहीं इसलिए पंडिताईनने जो बूंदी के लड्डू उन्हे दिए थे वही कीराय के तौर पर उस टांगे वाले को दे दिए।
टांगेवाला बूंदी के लड्डू को लेकर वहां से चला गया। टांगेवाला अपने घर की तरफ जा रहा था तब उसे एक हलवाई की दुकान दिखी। उसने सोचा कि थोड़े से बूंदी के लड्डूओ से मेरे घर के लोगों का पेट थोड़ी भरनेवाला है! इससे अच्छा मैं इन बूंदी के लड्डूओ को बेचकर उनसे कुछ चावल खरीद लेता हूं। टांगे वाले ने बूंदी के लड्डू हलवाई को बेच दिए।
जिस गांव में वह हलवाई रहता था उसी गांव में एक आदमी ने अपने घर पर पूजा रखी थी और उसी पंडित को उस पूजा के लिए बुलवाया था। पूजा में लगने वाले प्रसाद के लिए उस आदमी ने उसी हलवाई से बूंदी के लड्डू लिए जहां पर उस टांगे वाले ने बेचे थे। हलवाई ने भी उस आदमी को टांगेवाले से खरीदे हुए लड्डू ही पहले दिए ताकि वह खराब ना हो जाए क्योंकि वह नहीं जानता था यह लड्डू कब बने हैं।
पूजा खत्म होने पर दक्षिणा और बूंदी के लड्डू लेकर जब पंडित अपने घर आया और खाना खाने बैठा तो प्रसाद में लाए बूंदी के लड्डू खाते वक्त लड्डू से सोने का सिक्का निकला! इस घटना को देखकर पंडिताइन की आंखों से आंसू बहने लगे। पंडित ने जब पंडिताइन से उसके रोने का कारण पूछा तो पंडिताइन ने पंडित को सब कुछ बताया और पंडित से उनकी बातों पर भरोसा ना करने के लिए माफी मांगी।
पंडित ने पंडिताइन के आंसू पोछे और कहा कि तुम्हारी तरह मैं भी हमारी बेटी को बहुत प्रेम करता हूं। लेकिन अगर हम उसकी अब मदद करते हैं तो दामाद हमसे हमेशा ऐसे ही मदद की अपेक्षा रखेगा और अपनी बुरी आदतों को कभी नहीं छोड़ेगा। पंडिताइन भी अब पंडित की बातों से सहमत हो गई।
दो-तीन महीने बीत गए। पंडित के दामाद और बेटी फिर से एक बार उसके घर आए और इस बार उनकी परिस्थिति पहले से बेहतर थी क्योंकि पिछली बार खाली हाथ जाने के बाद दामाद ने नया काम शुरू किया था और अपनी सारी बुरी आदतें भी छोड़ दी थी ।
दोस्तों नसीब का लिखा नहीं बदलता यह कहानी आपको कैसी लगी? क्या आप भी नसीब पर भरोसा रखते हैं या फिर आप उन लोगों में से हैं जो अपना नसीब खुद अपने हाथों से लिखना चाहते हैं?
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