जूनियर केजी से शुरू होकर ग्रेजुएशन या फिर उसके बाद भी जहां तक कोई व्यक्ति पढ़ाई करता है तब तक उसका विद्यार्थी जीवन काफी उतार-चढ़ावो से भरा हुआ होता है। इस सफर के दौरान कभी खुशियों की बौछार होती है तो कभी दुख के बादल छा जाते हैं। आज की कहानी ऐसे ही एक स्टूडेंट के संघर्ष के बारे में हैं जो काफी प्रेरणात्मक है।
अंगेठी का कोयला..प्रेरणात्मक कहानी | Students ke liye motivational kahani
अश्विन एक गरीब परिवार का बेटा था। परिवार में कोई भी सदस्य ज्यादा पढ़ा लिखा नही था इसलिए गरीबी का उनके परिवार पर हावी होना लाजमी था।
समय के साथ आश्विन के मां बाप ये बात समझ गए थे की लाख मेहनत करलो अगर आप पढ़ना लिखना नहीं जानते तो आप किसी भी काम में ज्यादा तरक्की नहीं कर सकते और तरक्की नहीं तो पैसे नही और बिना पैसों के जीवन गरीबी में ही बीतेगा।
अपने अनुभवों से मिली इस कीमती सीख के साथ अश्विन के माता पिता ने कसम ली थी कि कुछ भी हो जाए, कुछ भी करना पड़े लेकिन वह अश्विन को इतना पढ़ाएंगे कि अश्विन अपने जीवन में हर वो चीजे और सुविधाएं हासिल कर सके जिन से पढ़ाई के अभाव के कारण वह खुद वंचित रह गए।
अपने परिवार की हालत और खुद से परिवार की आकांक्षाओं के प्रति अश्विन भी भलीभांति परिचित था। पढ़ने लिखने में तो वह अच्छा था ही लेकिन वह ज्यादा प्रयास करके स्कूल में अच्छे नंबर लाता और हमेशा अव्वल रहता। अंदर से तो अश्विन का भी यही इरादा था कि वह कुछ भी करके अच्छी पढ़ाई लिखाई करें और एक बढ़िया सी नौकरी कर अपने परिवार का जीवन बदल दे।
स्कूल में हमेशा अव्वल आने वाला अश्विन सभी शिक्षकों के साथ साथ स्कूल के प्रिंसिपल का भी फेवरेट था। प्रिंसिपल उसकी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए जब जब मौका मिलता उसे प्रोत्साहित करते और जब भी उसे गाइडेंस की जरूरत पड़ती तो उसे अपने पास बुला कर अच्छे से समझाते। अश्विन भी प्रिंसिपाल की बहुत इज्जत करता था और उनकी हर बात मानता था।
व्यक्ति के विचार कितने ही अच्छे हो लेकिन समय के साथ और अपने आसपास के वातावरण और लोगों के हिसाब से उसके व्यवहार में बदलाव आता है। बारहवीं कक्षा तक अव्वल रहने वाला अश्विन अब कॉलेज में आ गया था। मां-बाप की परिस्थिति में रत्ती भर का भी बदलाव ना हुआ था फिर भी उन्होंने इधर उधर से कर्जा लेकर उसे पढ़ाना जारी रखा था।
अश्विन जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था उसके दोस्त बनते जा रहे थे और इन दोस्तों में ज्यादातर दोस्त अच्छे खासे पैसे वाले परिवार से आते थे। इन दोस्तों के शौक और व्यवहार कुछ अच्छा था नहीं, यानी कि सीधे-सीधे कहो तो अश्विन अब बुरे दोस्तों की संगत में पड़ गया था।
संगत का रंग तो हर इंसान पर चढ़ता है। अश्विन भी उसके दोस्तों की तरह बुरी आदतों का शिकार होता गया। वह अपने मां-बाप की मजबूरियों को नजरअंदाज करके उनसे पढ़ाई के नाम पर पैसे मंगवाता था और मौज शौक करता। एक दो बार उसके माता पिता को जब उसपर शक हुआ तो उन्होंने अश्विन को समझाने की कोशिश भी की थी लेकिन अश्विन ने उल्टा उनका अपमान करते हुए उनसे कह दिया था," मुझे सिखाने की कोशिश मत कीजिए.. मुझे सब पता है! मैं अच्छे से जानता हु की मुझे क्या करना है।"
अश्विन अब पढ़ने लिखने में भी ज्यादा समय ना बिताता। जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा.. अश्विन अपने कॉलेज के पहले साल में ही फेल हो गया।
हमेशा अपने स्कूल के दिनों में अव्वल आने वाला अश्विन जब फेल हो गया तो उसका अभिमान टूट गया और ना सिर्फ उसका अभिमान टूटा वो खुद भी अंदर से पूरी तरह टूट गया। वो ना अपने माता-पिता से ना अपने दोस्तों से और ना ही खुद से नजरे मिला पा रहा था।
उसने अब अपने आप को दुनिया से अलग कर लिया। अश्विन एक कमरे में ही बंद रहने लगा। वो ना बाहर निकलता, ना किसी से मिलता ना अब कॉलेज जाता!
अश्विन के माता-पिता को लगा था कि थोड़ा समय बीतने के बाद धीरे-धीरे अश्विन नॉर्मल हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2 महीने बीत गए लेकिन अश्विन अभी भी घर से बाहर ना निकलता। तब उन्हें अश्विन की चिंता होने लगी। अश्विन के माता पिता ने काफी सोचने के बाद अश्विन के लिए कुछ करने का फैसला किया। अश्विन के पापा ने यह खबर अश्विन के स्कूल के प्रिंसिपल तक पहुंचा दी ताकि वह अश्विन को समझा सके।
प्रिंसिपल ने 1 दिन अश्विन को अपने पास उनसे मिलने के लिए बुलाया। हालांकि अश्विन अब किसी भी व्यक्ति से मिलने में इंटरेस्टेड नहीं था लेकिन वह प्रिंसिपल की बात कभी नहीं ठुकराता था। बेमन से ही सही अश्विन प्रिंसिपल से मिलने के लिए उनके घर पर चला गया।
अश्विन जब प्रिंसिपल के पास पहुंचा तो प्रिंसिपल अपने घर के आंगन में अंगेठी के पास बैठे थे। प्रिंसिपल ने अश्विन को अपने पास बैठने के लिए कहा। प्रिंसिपल ने अश्विन से उसके हाल-चाल पूछे लेकिन अश्विन ने कोई जवाब नहीं दिया। प्रिंसिपल समझ गया कि अश्विन कुछ भी बात करना नहीं चाहता इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं पूछा। 15 से 20 मिनट तक दोनों में कुछ भी बात नहीं हुई और वह दोनों ऐसे ही अंगेठि के पास बैठे रहे।
कुछ सोचने के बाद प्रिंसिपल ने अंगठी से एक जलता हुआ कोयला निकाला और उसे मिट्टी में फेंक दिया। मिट्टी में पड़ा कोयला थोड़ी देर जलता रहा और बाद में पूरी तरह बुझ गया। अश्विन प्रिंसिपल की यह हरकत बड़े कौतूहल से देख रहा था उससे रहा नहीं गया और उसने प्रिंसिपल से बोला,"सर आपने यह क्या किया? कोयला अच्छा खासा अंगेठी में जल रहा था, आपने उसे बाहर मिट्टी में फेंक कर जाया कर दिया!"
प्रिंसिपल ने उस बुझे हुए कोयले को फिर से उठाया और वापिस अंगेठी में रख दिया। थोड़ी ही देर में वो कोयला फिर से जलने लगा तब प्रिंसिपल ने अश्विन से कहा,"देखा! मैने भी तुम्हें यही समझाने के लिए यहां बुलाया है। तुम भी अंगेठी का वही कोयला हो जो पहले अच्छे से जल रहा था लेकिन बाद में मिट्टी के संगत में आने से बुझ गया अब तुम्हें फिर से अंगेठि यानी पुरानी जगह वापिस आना पढ़ेगा और बस फिर तुम्हें फिर से रोशन होने से कोई नहीं रोक सकता।"
अश्विन प्रिंसिपल की बात अच्छे से समझ गया। उसने प्रिंसिपल के पैर छूकर उनको धन्यवाद कहा और एक नए संकल्प के साथ अपने घर लोट आया। अश्विन के माता पिता भी अश्विन में आया ये सकारात्मक बदलाव देखकर काफी खुश हुए। अपने सभी गलत संगतियों से दूर अश्विन अब फिर से वही पहले वाला मेहनती अश्विन बन गया और अगले साल उसी कॉलेज में जहा वो फेल हुआ था अच्छे गुणों से पास हुआ।
दोस्तों,जीवन एक नदी की तरह हैं इसमें सुख के ज्वार आते है तो दुःख के भाट भी आते है लेकिन चाहे जीवन में जो भी हो हमे भी निरंतर बहती नदी की तरह आगे बढ़ते रहना चाहिए। फेल होने में, गिरने में और कहीं पर रुक जाने में कोई बुराई नहीं है। बुराई है फिर से आगे बढ़ने का इरादा छोड़ देने में।
दोस्तों! पूरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद। आशा करता हूं कि विद्यार्थी की यह मोटिवेशनल कहानी आपको पसंद आई होगी। अगर आप ऐसे ही बेहतरीन कहानियां रोजाना पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारा Whatsapp group ज्वाइन कर सकते हैं जहां आपको हर दिन एक नई कहानी पढ़ने के लिए शेयर की जाती है।
