मां की आत्मा.. एक भावुक कहानी | emotional kahani
आज कुछ ज्यादा ही देर होगई! वैसे तो वो महिला हर रोज साढ़े आठ बजे तक आ जाती है आज साढ़े नो बजने को आए फिर भी नही आई! बिना उसके आए दुकान बंद भी तो नहीं कर सकता उसे वचन जो दिया है! क्या नाम था उसका? इतने दिनों में उसका नाम भी नहीं पूछा मैंने!
ये सब बाते रमेश के दिमाग में चल रही थी। कुछ दिनों पहले ही तो उसने ये डेयरी शुरू की थी। उसकी ये शॉप ज्यादा बड़ी नही थी जिसमे वो दूध और बाकी मिल्क प्रोडक्ट्स रखता था।
उदघाटन के दिन ही पहली ग्राहक बन एक महिला उसके शॉप पर आई थी। उसकी गोदमे एक छोटा सा लेकिन बहुत ही प्यारा बच्चा था.. उसने एक दूध की बोतल ली और रमेश से बोली," भैया अभी मेरे पास सिर्फ 10 रुपए है, बाकी के आपको कल दु तो चलेगा?"
रमेश ने एक बार उसकी तरफ देखा। गरीब थी बिचारी! गले में मंगलसूत्र नहीं, माथे पर सिंदूर नहीं शायद पति मर गया होगा बिचारी का। रमेश ने अंदाजा लगाया। पुरानी मैली साड़ी को कई जगह रफ्फू किया हुआ था, माथे से पसीने की बूंदे बह रही थी। फिर उसकी नजर उस मासूम बच्चे पर गई जिस के मेले चेहरे पर एक निष्पाप हंसी थी और अभी अभी आए 2 दांत उस हंसी को चार चांद लगा रहे थे।
रमेश ने उस महिला की तरफ देखा और बोला," कोई बात नहीं बहन आप मुझे बाद में पैसे दे देना।" बड़े समाधान के साथ महिला ने रमेश की तरफ देखा और बोली," भैया मैं जरूर आपको कल पैसे दे दूंगी। यही पास में ही उस दूसरी गली में छोटा सा घर है, वही रहती हूं मैं.."
रमेश मुस्कुराते हुए बोला," कोई बात नहीं बहन! कल पैसे ना हो तो भी चलेगा जब आपके पास होंगे तब दे देना।" फिर वह महिला वहां से चली गई।
अगले दिन वह महिला पैसे लेकर डेयरी पर आई और पैसे रमेश को देने लगी। रमेश ने पैसे लेने से मना किया और बोला," नहीं बहन, मैं यह पैसे नहीं ले सकता क्योंकि कल आपने मेरी बोहनी की थी और कल मुझे 2000 का फायदा हुआ! आप मेरे लिए बहुत लकी साबित हुई इसलिए यह पैसे मैं नहीं ले सकता।"
रमेश कि कहीं इस बात से उस महिला को बहुत ज्यादा खुशी हुई क्योंकि इतने सालों बाद किसी ने पहली बार उसको लकी कहा था,वरना पति के मौत के बाद तो उसके ससुराल वालों ने उसे पनौती कहकर घर से ही निकाल दिया था!
"भैया रात को कितने बजे तक आपकी यह शॉप खुली रखते हैं?" महिला ने रमेश से पूछा। "8:00 बजे बंद कर देता हूं बहन।" रमेश ने कहां।
रमेश का जवाब सुनकर महिला का चेहरा उदास हो गया। रमेश को यह समझते देर नहीं लगी उसने पूछा कोई समस्या है बहन?
"अपने बच्चे और अपना पेट पालने के लिए मैं दो घरों में झाड़ू बर्तन का काम करती हूं। यह सब काम करके रात को 8:30 बजे घर लौट पाती हु। तब तक यहां आसपास के सभी दुकान बंद हो जाते हैं और लाचारी से मुझे अपने बच्चे को भूखे पेट ही बहला-फुसलाकर सुलाना पड़ता है। वह बोल नहीं सकता ना.. उसी का फायदा उठाती हूं!" कहते हुए उस महिला का गला भर आया।
महिला की बातें सुन रमेश को बहुत बुरा लगा फिर वह बोला," आप चिंता मत कीजिए बहन। बिना आपको दूध की बोतल दिए यह शॉप बंद नहीं होगी... लेकिन मेरी एक शर्त है!"
अपने आंसू पोछते हुए महिला ने रमेश की ओर देखा और पूछा," क्या शर्त है?" रमेश बोला," आप मुझे दूध के पैसे नहीं देंगी।" यह सुन उस महिला की आंखें फिर छलक गई लेकिन इस बार आंसू दुख के नहीं खुशी के थे। उसे ऐसा लग रहा था जैसे इंसान के रूप में भगवान उसकी मदद करने आ गए हो। उस दिन से हर दिन साढ़े 8 बजे वो डेयरी पर आकर दूध की बोतल लेकर जाति।
धीरे धीरे 5 महीने बीत गए और धीरे धीरे महिला बीमार होने लगी। ज्यादा काम और चिंता की वजह से उसका शरीर दिन ब दिन सूखता जा रहा था।
ऐसे ही एक दिन रमेश अपने दुकान का सारा काम खत्म कर इस महिला के आने का इंतजार कर रहा था। साढ़े 9 बजे वो महिला आई ..आज उसका चेहरा कुछ ज्यादा ही बेजान नजर आ रहा था। बीमारी के कारण आंखो के नीचे काले घेरे और ज्यादा बढ़े हुए नजर आ रहे थे। रमेश ने तुरंत फ्रिज खोल कर दुधकी बोतल निकाल उसे दी। फ्रिज बंद करने के लिए रमेश मुड़ते हुए बोला की बहन आज कुछ ज्यादा ही देर कर दी.. वो घुमा तब तक वो महिला दूध की बोतल लेकर जा चुकी थी। उसने सोचा आज ज्यादा देर हो गई इसलिए वो जल्दी चली गई होगी.. बेचारी का बच्चा रोता होगा भूख से। रमेश ने दुकान बंद की और घर चला गया।
अगले दिन ठीक 8 बजे वो महिला शॉप पर आई और आकार बिना कुछ बोले खड़ी हो गई। हमेशा की तरह रमेशने उसे दूध की बोतल दी । कोई चीज नीचे गिरी तो उसे उठाने के लिए रमेश नीचे झुका, वो चीज उठाई और सामने देखा तो वो महिला वहा नही थी। रमेश को आज पता नही क्यों उस महिला में काफी बदलाव नजर आया था। उसे वो बड़ी कमजोर सी नजर आई।
अगले दिन फिर 8 बजे वो महिला उसके शॉप पर आई । आज रमेश ने उसका चेहरा बड़े गौर से देखा। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था .. मानो उसके चेहरे का तेज कब का जा चुका हो!उसने सोचा बेचारी गरीब महिला करे भी तो क्या? ना किसी का सहारा ना अच्छी आमदनी जरूर पैसों की कमी की वजह से बीमार होते हुए भी दवाई नहीं कराई होगी।
रमेश जल्दी से अपनी शॉप बंद कर अपने घर गया। घर जाकर उसने ये सारी बात अपनी पत्नी को बताई। उसकी पत्नी भी उसकी ही तरह भले स्वभाव की थी उसे भी उस महिला की परिस्थिति पर दुख हुआ, वो रमेश से बोली," ऐसा करते है कल उस महिला के घर चलते है और उसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा आते है।" रमेश को अपनी पत्नी की बात सुन उसपर गर्व हुआ क्योंकि उसके विचार भी उसी की तरह दूसरो के प्रति परोपकार के थे।
अगले दिन सुबह दोनो उस महिला के घर जाने को रवाना हुए। रमेश को उसका पता ठीक से याद था। जब वे उस छोटी सी गली में पहुंचे तब वहा एक छोटा सा मकान था जिसके आसपास दूर दूर तक और किसी का घर नही था।
जैसे जैसे वे उस मकान की तरफ बढ़ते जा रहे थे वहां एक बदबू तेज होती जा रही थी। दोनो उस मकान तक पहुंचे और दरवाजा खटखटाया ही था की वो खुल गया और वो बदबू असहनीय रूप से बढ़ गई फिर भी दोनो अपने नाक पर कपड़ा रख उस अंधेरे मकान में घुसे जहां बच्चे के खेलने की आवाज आ रही थी!
रमेश ने किसी तरह स्विच ढूंढकर मकान की लाइट जलाई और सामने जो दृश्य दोनों ने देखा वह देखकर दोनों की आंखें फटी की फटी रह गई।
उस कमरे में उस मासूम बच्चे की मां मरी हुई पड़ी थी! उसे देख कर लग रहा था कि वह तीन-चार दिन पहले ही अपना देह त्याग चुकी है क्योंकि धीरे-धीरे उसका शरीर सड़ने लगा था। निर्जीव पड़े उस शरीर की आंखें देख कर लग रहा था जैसे रो-रोकर सूख चुकी हो। निर्जीव होते हुए भी उस महिला की दोनों आंखें अपने बेटे को ही देख रही थी। उसका बच्चा भी अपनी मां की आंखों में देखकर खेल रहा था जैसे उसे लग रहा हो की मां उसके साथ खेल रही है और उसका पूरा ध्यान उसी पर है। वहीं पास में ही दूध की 3- 4 खाली बोतले पड़ी हुई थी। यह दृश्य देखकर रमेश और उसकी बीवी दोनों अचंभित रह गए, दोनों के रोंगटे खड़े हो गए।
रमेश को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था की एक मरी हुई मां अपने बच्चे के लिए उसके पास से दूध लेकर जाती थी! रमेश ने और उसकी बीवी ने उस महिला का विधिवत अंतिम संस्कार किया और उस बच्चे को रमेश ने अपने बीवी के हाथों में रखा। उसने भी उस बच्चे को बड़े प्यार से लिया और दोनों ने उस बच्चे को गोद ले लिया।
रमेश को अपनी पूरी जिंदगी यह ध्यान रहा कि उस बच्चे की मां अभी भी उसके साथ है और उस पर नजर रखे हुए हैं!
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रूला दीया इस कहानी ने
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