3 गुरुओं की मोटिवेशनल कहानी | Motivational Story

 3 गुरुओं की मोटिवेशनल कहानी


एक महात्मा गुरुकुल चलाते थे। इस गुरुकुल में हजारों शिष्य उनसे शिक्षा पाने के लिए आते थे।


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इन कई सारे शिष्यों में से एक शिष्य ने एक बार अपने गुरु से सवाल किया। उसने कहा गुरु जी अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।


गुरु ने कहां हा तुम मुझसे कोई भी प्रश्न पूछ सकते हो और मैं तुम्हें उसका संतोष कारक उत्तर देने का प्रयत्न करूंगा।


शिष्य ने गुरु से पूछा कि आप बहुत ज्ञानी और विद्वान है इसमें कोई दो राय नहीं है। जिस तरह हमें आपसे ज्ञान मिलता है यानी कि आप हमारे गुरु है, मैं जानना चाहता हूं की आप के सबसे बड़े गुरु जिनसे आपको जीवन का सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान मिला वह कौन है?


गुरु ने कहां कि वैसे तो मेरे जीवन में हजारों गुरु है जिन्होंने मुझे जीवन के सफर में कुछ ना कुछ जरूर सिखाया है लेकिन  मैं मेरे तीन प्रमुख गुरुओ के बारे में तुम्हें बताना चाहूंगा।


मेरा पहला गुरु एक चोर था। एक बार में एक लंबी यात्रा से किसी गांव से गुजर रहा था। मैं काफी ज्यादा थक चुका था और किसी के घर ठहर का आराम करना चाहता था। एक गांव के पास आने पर मुझे एक आदमी दिखा तो मैंने उससे पूछा कि मुझे उसके गांव में कहीं पर आराम करने के लिए आश्रय मिलेगा कि नहीं?


उस आदमी ने अपना परिचय देते हुए मुझे कहा कि वह एक चोर है और इस गांव में ज्यादातर लोग नास्तिक है इसलिए कोई भी मुझे वहां आश्रय नहीं देगा! साथ ही उसने मुझे कहा कि अगर मैं चाहूं तो उसके घर ठहर सकता हूं।


मेरे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैं उसके साथ उसके घर चला गया। उसने मेरी अच्छे से सेवा कि मुझे खाना पीना और आराम करने के लिए बिस्तर दिया। रात होते ही वह बोला कि मैं चोरी करने जा रहा हूं, आप अपना ध्यान योग करते रहिए मैं सुबह वापस आ जाऊंगा।


सुबह जब वह वापस आया तो मैंने उससे पूछा कि उसे कुछ मिला या नहीं? उसने मुझे जवाब दिया कि आज तो मुझे कुछ नहीं मिला लेकिन जरूर आगे कुछ ना कुछ मिलेगा! भगवान ने मेरे लिए कुछ ना कुछ सोच कर रखा होगा! एक के बाद एक कई दिनों तक मैं उसके साथ रहा और उन दिनों उसे कुछ भी चोरी का सामान नहीं मिलता फिर भी वह भगवान से अपने आस लगाए रहता और यह उम्मीद बनाए रखता कि उसे जरूर आने वाले दिनों में कुछ हाथ लगेगा!



इस तरह चोर के रूप में मेरे पहले गुरु ने मुझे यह सिखाया कि हम जिस भी रास्ते को चुनकर उस पर चलने लगते हैं फिर चाहे जो हो जाए हमें उस रास्ते को और उस विश्वास को की एक दिन हमें मंजिल मिलेगी, कभी नहीं छोड़ना चाहिए। वह दिन है और आज का दिन है तब से मैंने कभी अपनी ध्यान और भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी!



मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था। एक बार में किसी जरूरी काम से काफी दूर का सफर कर जंगल से गुजर रहा था। लंबे सफर के चलते मुझे बहुत ज्यादा प्यास लगी थी इसलिए मैं वहां पर एक तालाब के पास जाकर पानी पीने लगा। उस तालाब के पास एक कुत्ता पहले से पानी पीने के लिए आया हुआ था। कुत्ता जैसे ही पानी पीने के लिए तालाब में अपना मुंह झुकता था उसे उस का ही प्रतिबिंब पानी में दिखता। उस प्रतिबिंब को वो दूसरा कुत्ता समझ कर डर जाता और पीछे हट जाता। कुछ समय पीछे रहने के बाद कुत्ता फिर से प्रयास करता और फिर से डर के पीछे हटता। काफी समय बीतने के बाद कुत्ते ने हिम्मत जुटाकर आखिरकार तालाब से पानी पी लिया और अपनी प्यास बुझा कर वहां से चला गया।



मेरे उस दूसरे गुरु ने मुझे सिखाया कि जीवन में चाहे जितनी बड़ी समस्या या मुसीबत आ जाए अगर हम उससे जूझते रहेंगे, लड़ते रहेंगे तो उसे जरूर  हराने में कामयाब भी होंगे और तभी हमें सफलता मिलेगी।


मेरा तीसरा प्रमुख गुरु एक 4 साल का छोटा बच्चा था। एक बार मैंने एक बच्चे को मोमबत्ती हाथ में लेकर चर्च की तरफ दौड़ते हुए देखा। मुझे उसे देखकर थोड़ी शरारत सूझी। मैंने उस बच्चे को रोका और उससे पूछा कि तुम यह मोमबत्ती कहां ले जा रहे हो? उसने जवाब दिया वह चर्च में इस मोमबत्ती को ले जा रहा है। मैंने बच्चे से पूछा कि यह मोमबत्ती तुमने जलाई है? बच्चे ने हां में जवाब दिया। अब मेरे घमंड भरे सवाल की बारी थी तो मैंने उसे पूछा मुझे बताओ जब तुमने इस मोमबत्ती को जलाया तो यह प्रकाश कहां से आया और उससे पहले जब मोमबत्ती जली नहीं थी तब प्रकाश कहां था?


बच्चे ने मेरे सवाल के जवाब में अपने हाथ में पकड़ी मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझा दिया और मुझसे बोला आप देख लीजिए पहले प्रकाश था और अब नहीं है आपकी आंखों के सामने वह कहां गया यह मुझे बताइए!


मेरे उस छोटे से गुरु ने मुझे उस दिन सिखाया कि आप चाहे जितने विद्वान हो आपने चाहे जितना ज्ञान प्राप्त कर लिया आप को हमेशा विनम्र रहना चाहिए कभी घमंड नहीं करना चाहिए!



दोस्तों, छोटी सी ए मोटिवेशनल कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में हमेशा सीखते रहना कितना जरूरी है चाहे फिर वह शिक्षा हमें कहीं से भी मिले, किसी से भी मिले ईससे कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है हमेशा विनम्र बने रहेंने से और कभी घमंड ना करने से।

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