बचपन से हम सुनते आते है की मां बाप के चरणों में स्वर्ग होता है। उनकी सेवा से बड़ा कोई धर्म नही और कोई बड़ा पुण्य नहीं लेकिन न जाने क्यों बड़े होते ही हम ये सब भूल जाते हैं ! इस भावुक कहानी को पढ़कर शायद कुछ लोगो को वो सारी बाते याद आ जायेगी....
मां का श्राद्ध - एक भावुक कथा | Emotional Hindi Kahani
दीदी याद तो है ना कल मां का श्राद्ध है? हमने बड़ी पूजा रखी है उनके आत्मा की शांति के लिए। इसीलिए आपको सह परिवार के साथ आना ही है। रूही अपनी नंदन कोमल को फोन पर कहती है।
तभी कोमल उसकी भाभी को बोली मैं नहीं आ सकती आपको तो पता ही है कि उनको छुट्टी नहीं मिलेगी। अरे दीदी ऐसे कैसे.... मां के जमाई और बेटी उनके श्राद्ध में नहीं आएंगे तो उनको शांति कैसे मिलेगी? इसीलिए आपको आना ही पड़ेगा! बाकी मुझे कुछ भी नहीं पता। इतना बोल कर रूही ने फोन रख दिया।
इधर कोमल पुरानी यादों में खो गई। जब उसके पापा की मृत्यु हो गई थी तभी कोमल अपने मायके गई हुई थी। कोमल को मां बोली बेटा तुम्हारे पापा मुझे छोड़ कर अकेले ही चले गए। पता नहीं अब किसके आधार पर छोड़कर गए?
मां कोमल के गले लग कर रो रही थी। तब कोमल बोली यह सब लोग तो है ना भैया,भाभी और बच्चे तो चिंता क्यों करती हो?
कोमल कई दिनों तक अपनी मां के पास रह कर आई थी। लेकिन हमेशा ज्यादातर फोन पर बोलना होता था। कभी कॉल पर तो कभी वीडियो कॉल पर बोलना होता था। बेटा क्या बनाया तूने? एक दिन माँ नेवीडियो कॉल पर पूछा। मां आलू की सब्जी और रोटी बनाई है कोमल ने जवाब दिया। मां बोली अरे वाह!!! सब्जी का नाम सुनते ही मां की आंखों में एक अलग ही चमक देखने के मिली जो कोमल को दिखी।
तभी कोमल मां को बोली मां तुम्हें खाने का मन हो रहा होगा तो भाभी को बोलो बना कर दे। कोमल हंसते हुए मां से बोली। तभी मां बोली नहीं नहीं अब इस उम्र में आलू कहां पचते हैं? मैं तो ऐसे ही बोल रही थी। जब तुम्हारे पापा हुआ करते थे तब बहुत बार बनाती थी।
भाभी का तो नाम लेते ही जैसे मां की आंखों की चमक गायब सी हो गई! मां ने कॉल रख दिया। मां को क्या हो गया ऐसे क्यों बोल रही थी वह सब ठीक तो होगा ना? कोमल अपने आप से बातें कर रही थी। ऐसे बहुत बार खाने की बातों पर बातचीत होने पर मां की आंखों का भाव बदल जाता लेकिन ऐसा क्यों था वो समझ नहीं पाई! लेकिन इसके पीछे का राज उसके समझ में आया जब वह छुट्टियों में 2 दिन के लिए मायके गई थी।
1 दिन कोमल मां के कमरे में मां के साथ गपशप कर रही थी तभी, दीदी खाना खाने चलो रूही मां के कमरे में आकर कोमल को बोली।
चलो मां तुम भी खाना खा लो कोमल उठते उठते हुए बोली। अरे दीदी नहीं नहीं मां को क्यों तकलीफ देना वह यहीं पर ही खाना खा लेगी! आप चलो। रूही बोली।
लेकिन भाभी.... लेकिन वेकिंग कुछ नहीं दीदी आप चलो मां के घुटनों में दर्द होता है। इसलिए मां कमरे में ही खाना खाती है। रूही स्पष्ट रूप से बोलती है।
तो फिर भाभी मेरा भी खाना यहीं पर लाओ हम दोनों साथ में खाना खाएंगे ऐसे कोमल अपने भाभी को कहती है। इस पर रूही कुछ नहीं बोल पाई। लेकिन कोमल को साफ तरीके से समझ में आ गया कि रुही को यह सब पसंद नहीं आया। वह चुपचाप वहां से निकल गई। और थाली में पूरी सब्जी रायता आचार लेकर आई और मां के लिए खिचड़ी!!! मां यह क्या है? तुम यह सब नहीं खाने वाली हो क्या? कोमल मां को बोली।
उतने में रूही बोली अरे दीदी मां को यह सब हजम होता ही नहीं इसलिए मैं उनको खिचड़ी और दाल ही देती हूं! इतना बोल कर रूही वहां से निकल गई।
मां ने अपनी प्लेट उठाई पर मां का ध्यान कोमल की प्लेट पर ही था। यह देख कोमल सुन सी पड़ गई। उसने मां के मुंह में एक पूरी का निवाला डाला लेकिन मां ने मना कर दिया। तब कोमल ने अपनी मां की आंखों में वही भाव देखा था जो वीडियो कॉल पर देखा था। पता नहीं भाभी का डर था या लड़की के निवाले का मोह था।
तब भी कोमल ने पूरा खाना मां को खिलाया और खुद खिचड़ी खाने लगी। 2 दिन कोमल वहीं पर थी और कोमल मां को उसकी प्लेट का खाना खिलाती और खुद खिचड़ी खाती ऐसे 2 दिनों तक चला। मां के बहुत मना करने के बाद भी कोमल मात्र जिद में मां को खाना खिला ती थी।
वह बोली भैया मैं कुछ दिनों के लिए मां को अपने घर ले जाती हु। घर जाने से पहले कोमल ने अपने भाई तन्मय को पूछा वह बोला। क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? लोग क्या कहेंगे बेटा मां को तकलीफ देता होगा इसलिए मां अपनी बेटी के घर रहती है! तन्मय गुस्से में बोला। अरे बाबा सही तो बोल रहा है वह। मां बेटी के घर जाती है क्या भला? तू आराम से जा अपने घर मेरी चिंता मत कर। मैं यहां खुश हूं। बेटे की बातें सुनकर मां बोली।
कोमल ने बहुत जिद की लेकिन मां बेबस थी। कोमल उदास मन से अपने घर वापस आई। कुछ दिनों बाद खबर आई कि मां अब नहीं रही! इस खबर ने सब कुछ खत्म कर दिया था। कोमल को पता था कि मां कितनी तकलीफ से गुजरी लेकिन मां को दूसरा लड़का नहीं था बल्कि एक लड़की थी इसलिए वह कुछ नहीं कर सकती थी। कोमल अकेले ही मां के श्राद्ध में आई। आज मां के श्राद्ध में छप्पन तरह के भोग बनाए गए। सब लोग मजे से खा रहे थे। लोगों ने रूही और तन्मय की वाहवाही करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दुनिया में सबसे अच्छा बेटा और सबसे अच्छी बहू कह रहे थे उन्हे। मां के गुजर जाने के बाद इतना विचार कर रहे है तो मां जिंदा थी तब कितनी सेवा की होगी दोनों ने!
कोमल दुखी होकर मां की तस्वीर की तरफ देख रही थी । तभी दीदी चलो आप भी खाना खा लीजिए रूही कोमल को बोली। जो मां के रूम में मां की तस्वीर सीने से लगा कर रो रही थी। वह बोली नहीं भाभी मुझे नहीं खाना। लेकिन क्यों? आप नहीं खाना खाओगे तो मां की आत्मा को कैसे शांति मिलेगी? रूही कोमल को बोली।
भाभी जिस खाने के लिए मेरी मां जब जिंदा थी तब तरसती थी। उसे मरने के बाद दे रहे हो तो वो कैसे तृप्त होगी? सोच कर देखो एक बार आज आपने पकवानों का ढेर लगाया है... मां जिंदा थी तब आपने उनकी मनपसंद खाने के दो निवाले खिलाए होते तो माँ वैसे भी तृप्त हो चुकी होती! वही मां का असल मे श्राद्ध कहलाता। यह जो भी हो रहा है वह सिर्फ एक दिखावा है। इसकी वजह से मां कैसे तृप्त हो पाएगी। और जो घर से मेरी मां अतृप्त हो कर चली गई वह घर से मैं कैसे खाना खा सकती हूं भला। कोमल चीड़कर रूही से बोली।
तभी वहां पर तन्मय भी आ गया। भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती है भैया भाभी वो जब भी किसी पर पड़ती है ना तब जख्म बहुत गहराई तक और न भरने वाली होती है। आप भी तो दो बच्चों के माता-पिता हो लेकिन मैं भगवान से दुआ जरूर करूंगी कि आप जब तक जिंदा हो तब तक आप को अतृप्त ना रखें।
मां ने तो अपना वनवास भोग कर कहीं नया जन्म लिया होगा। लेकिन आपकी जिंदगी बहुत बड़ी है। कोमल यह सब बोलकर मां की तस्वीर लेकर चली गई। पीछे रूही और तन्मय की गर्दन शर्म से झुक गई।
दोस्तों, मां बाप जिंदा है तब तक उनकी सेवा करना उनकी हर इच्छा पूरी करना वही उनका असली श्राद्ध होता है। उनकी मृत्यु के बाद कितने भी छप्पन भोग बनाए सब व्यर्थ है।
अगली कहानी पढ़े
