सांप और नेवले की रोचक कहानी | Rochak Kahani In Hindi

 शीर्षक की तरह ही ये कहानी काफी रोचक है। ये कहानी ना सिर्फ बच्चो को बल्कि बड़ो को भी पसंद आएगी और जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ याद दिलाएगी।


Rochak kahaniya



सांप और नेवले की रोचक कहानी | Rochak Kahani In Hindi 


 एक राज्य में एक ब्राह्मण दंपति रहा करते थे। उनकी शादी के कई साल हो जाने के बाद भी कोई संतान ना होने की वजह से ब्राह्मणी (ब्राह्मण की पत्नी) काफी दुखी रहने लगी थी।


ब्राह्मण जो लोगो को आशीर्वाद देकर उनके दुःख दर्द कुछ हद तक कम कर दिया करता वो खुद अपनी पत्नी के दुख का निवारण नही कर पा रहा था। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी का दुख कम हो इसलिए एक उपाय निकाला और एक नेवाला लाकर पत्नी को पालने के लिए दे दिया!


छोटे से नेवले को पाकर ब्राह्मणी खुश हो गई और उसे किसी बच्चे को तरह ही लाड प्यार करके पालने लगीं। नेवला भी इंसानों से इतना प्रेम पाकर उनमें घुलमिल गया। ब्राह्मण दंपती का भी संतान ना होने का दुख कम हो गया या यू कहे की नेवले को अपनाने से उनका ध्यान उस बात से हट गया।


कभी कभी भगवान हमे कुछ वस्तुओ की लिए ज्यादा इंतजार कराता है!  ऐसा ही कुछ ब्राह्मण दंपती के साथ भी हुआ क्योंकि वो अपना गम जैसे तैसे भूल ही रहे थे की अगले ही साल ब्राह्मणी ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया!


ब्राह्मण और उसकी पत्नी का सुख चार गुना हो गया। वे अब अपने बच्चे को और नेवले को साथ में ही पाल पोस कर बड़ा करने लगें। पड़ोसी उन्हे अक्सर सलाह दिया करते की नेवले को बच्चे के साथ रखना काफी खतरनाक हो सकता है क्या पता ये जानवर कब कया कर बैठे! लेकिन दंपती को नेवले पर पूरा भरोसा था क्योंकि जबसे वे उसे अपने घर लाए थे तब से लेकर उसने कभी कोई ऐसी हरकत नहीं को थी जो उसे न करनी चाहिए।


खेर ऐसे ही कुछ महीने बीत गए। एक दिन ब्राह्मणी का व्रत था इसलिए वो अपने पति को बच्चे का ध्यान रखने को कहकर मंदिर चली गई।जब ब्राह्मणी मंदिर गई थी तभी ब्राह्मण को राजा के महल से एक यज्ञ करवाने के लिए बुलावा आया।


ब्राह्मणी पूजा पाठ और भजन में इतनी खो गई थी कि उसे समय का कोई भान ही नही रहा। दूसरी तरफ ब्राह्मण अधीर हुए जा रहा था क्योंकि राजा के महल से रोज रोज तो बुलावा आता नही था और राजा से इतनी बड़ी दक्षिणा , भोजन और दागीने मिलते थे की उसके पूरे वर्ष की काम की भरपाई हो जाती थी। ब्राह्मण ऐसा मौका चूकना नहीं चाहता था पत्नी का कोई अता पता नहीं था इसलिए ब्राह्मण अपने पड़ोसी के पास गया तो वो भी गांव गए हुए थे। अंत में ब्राह्मण ने सोचा ब्राह्मणी काफी देर से मंदिर गई हुई है वो कुछ ही मिनिटों में लौटती ही होगी इसलिए वन पालतू नेवले को अपने बच्चे को सौंप कर राजा के यहां निकल गया!


नेवला अपने मालिक की बात मानकर किसी आज्ञाकारी बेटे को तरह बच्चे के पास बैठकर उसके ऊपर नजर रखने लगा! कुछ देर बाद बच्चे की पैरवी कर रहे नेवले की नजर बच्चे को तरफ तेजी से बढ़ते सांप के ऊपर पड़ती हैं और नेवला   बच्चे को कोई नुकसान ना हो इसलिए सांप पर पूरे जी जान से टूट पड़ा। 20 मिनट चली लड़ाई के बाद नेवला सांप को मारने में सफल हुआ और उसने सांप के टुकड़े टुकड़े कर दिए! सांप के खून से नेवले का मुंह और हाथ भीग गए।


आंगन में मंदिर से लौटी ब्राह्मणी और योगानुयोग तभी महल से लौटे ब्राह्मण की आहट सुन नेवला तुरंत दरवाजे के पास आया और अपने मालिक मालकिन को एक साथ देख खुशी से उछल कूद करने लगा! नेवले को खून से सना देख और उसका ऐसा व्यवहार देख ब्राह्मण दंपती को उसपर शक हुआ। उनके मन मन में अपने बच्चे के बारे में बुरे बुरे ख्याल आने लगे , उन्हे   पड़ोसियों की वो बाते भी याद आने लगी नेवला तो आखिर एक जानवर है और जानवरो का क्या भरोसा? ब्राह्मणी ऐसे विचारो के कारण रोने लगी तो ब्राह्मण का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया। उसने ना आगा देखा न पीछा आंगन में पड़ा एक डंडा लिया और नेवले को पीट पीटकर मार दिया!


इतना सब होने के बाद जब दोनो अपने घर में अपने बच्चे को देखने के लिए दौड़े तो देखकर हैरान थे की उनका बच्चा मजे से खेल रहा था और उन्हें तब बड़ा झटका लगा जब पालने से थोड़े दूर जहरी सांप के कई टुकड़े पड़े हुए दिखे। वे दोनों गुस्से से अपना आपा खोकर अपने बच्चे के रक्षक के ही भक्षक बन बैठे थे! सच्चाई का पता चलते ही दोनो पश्चाताप की आग में जलने लगे।


दोस्तो पुराने जमाने की ये रोचक कहानी हमें वही पुरानी मगर काफी महत्वपूर्ण बाटी सिखाती है की गुस्सा नही करना चाहिए या गुस्सा आ भी जाए तो उस वक्त कोई फैसला या काम नही करना चाहिए क्योंकि इतिहास गवाह है की गुस्से  से और गुस्से में लिए गए फैसलों से हमेशा अनर्थ ही होता है!


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