मायका ससुराल एक समान : हृदयस्पर्शी कहानी | Heart Touching Kahani

 मायका ससुराल एक समान :  हृदयस्पर्शी कहानी | Heart Touching Kahani 


मायका ससुराल एक समान :  हृदयस्पर्शी कहानी| Heart Touching Kahani



शादी होने के बाद लड़कियों का मायके वालों की मदद करना ससुराल वालों को पसंद नहीं आता । शादी होने के बाद लड़की को ससुराल और मायका दोनों परिवार का और जिम्मेदारियों का विचार करना पड़ता है। सोनल का रिश्ता तय हुआ, और घर की बड़ी बेटी होने के कारण वो अच्छी पढ़ाई करके नौकरी कर रही थी। घर में वही सबसे बड़ी होने के कारण मायके कि जिम्मेदारी भी उसकी थी! भाई था उसका लेकिन काफी छोटा था अभी।


उसके माँ बाप के लिए  इतने बच्चों की पढ़ाई और घर  चलाना मतलब आसान नहीं था। उसके पिताजी प्राइवेट जॉब करते थे। और माँ भी घरों के काम करके जितना हो सके उतने काम करके अपने घर की मदद करती थी। सोनल की शादी तय करने का वक्त आया तभी उसके 2 बेहने और भाई पढ़ाई कर रहे थे। उसकी शादी नीलेश के साथ तय हुई तभी उसने स्पष्ट बताया था कि शादी होने के बाद भी मुझे मायके की थोड़ी आर्थिक मदद करनी पड़ेगी, छोटे भाइयों की पढ़ाई होनी अभी बाकी है और पिताजी भी बहुत बीमार रहते हैं उनका भी हॉस्पिटल और दवाइयों का खर्चा करना इतना आसान बात नहीं थी। सोनल थी तब तक मां पिताजी को टेंशन नहीं था। वह मन से करती थी सब कुछ उसे पता था हालातों के बारे में। 


उसके भाई बहिन उनके पैरों पर खड़े हो और उनकी पढ़ाई भी हो जाए तो साड़ी समस्याये ।  पर तब तक मुझे भी मदद करनी चाहिए इसलिए वह जिम्मेदारी निभा रही थी।  सोनल ने शादी के पहले ही निलेश और उसके परिवार के लोगों से यह बात कर क्लियर कर दी थी।


 तभी ससुराल वालों ने बोला कि हमें कोई एतराज नहीं है तुम नौकरी करती हो और उसे तुम अपने मायके वालों की मदद कर सकती हो। निलेश ने तो बोला कि सोनल मैं भी तुम्हारे साथ हूं तुम नौकरी करके मायके वालों की मदद कर सकती हो। मेरी तरफ से भी कोई एतराज नहीं है। कभी लगे तो मैं भी तुम्हारे भाइयों को और मायके वालों की मदद करूंगा। यह मेरा भी तो कर्तव्य है। हमारे दोनों फैमिली शादी के बाद मेरे लिए समान होगी। ऐसे में दोनों परिवार की जिम्मेदारी निभाना मेरी भी होगी। तुम टेंशन मत लो नीलेश के ये बोल सोनल को बहुत अच्छे लगे। 


मेरे होने वाले पति की सोच कितनी अच्छी है, कितना सोचते हैं मेरे मायके के लोगों के लिए। वह भावुक हो गई उनके विचार सुनकर। थोड़े दिन बाद उनकी सगाई हो गई। सोनल के मायके वालों ने सोनल की शादी सभी की उपस्थिति  मे की। हमारी बेटी को इतना अच्छा जीवनसाथी मिला यह देखकर सोनल के पिताजी खुश हो गए। सोनल ने शादी के पहले ही घरवालों को नीलेश  के विचार बता दिए थे। उस वजह से घरवालों को लगता था कि सोनल नीलेश के साथ सुखी संसार कर सकती है, उसके ससुराल वाले भी अच्छे हैं। 


शादी होने के बाद सोनल घर और नौकरी की जिम्मेदारी अच्छे से निभा रही थी। इतना ही नहीं नीलेश के आने जाने वाले मेहमानो का भी आदर सम्मान अच्छे से करती थी। हर एक जिम्मेदारी वो अच्छे से निभा रही थी। ससुराल और मायका दोनों फैमिली को वह समान ही मानती थी। ससुराल के लोगों को तो उसने अपना बना लिया था। सब अच्छा चल रहा था, पर नया नया हीं सब अच्छा था.... बाद में उनका असली रूप नीलेश और उसके घर वालों का स्वभाव सोनल के सामने आया। वह कहावत है ना, हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग होते है, ऐसे लोग थे वह। सोनल ससुराल वालों को भी पैसे देती थी, बचत भी करती थी, खर्च भी करती थी, उसे भी समझता था अपना ही घर है यह। उसे सभी बातों की और जिम्मेदारियों का एहसास था। इसीलिए खुद पर पैसे खर्च नहीं करती थी। ससुराल और खुद का सब करके वह थोड़ी मदद अपने भाइयों के लिए करती थी। उनकी पढ़ाई चालू थी पढ़ाई मतलब थोड़े पैसे तो चाहिए ही ना। पर यह नीलेश को भी पसंद नहीं था। और उसके मायके वालों को  सोनल मदद करती थी इसलिए नीलेश चिल्लाता  था। ये वही आदमी था जिसने खुद ने शादी के पहले बोला था कि वक्त आने पर मैं भी मदद करूँगा! उसकी मदद की अपेक्षा सोनल को नहीं थी। उसने के उसको कभी वैसा बोला ही नहीं। पैसे भी मांगे नहीं। उल्टा उसके  ससुराल वाले बोलते थे। तभी सोनल की मां से बोली , सोनल तुम्हारी भी गृहस्ती है, तुम्हारे पास से पैसे मांगने के लिए अच्छा नहीं लगता पर परिस्थिति ही वैसे आ गई थी। उसकी मां को बहुत बुरा लगता था। उसकी दो नंबरकी बहनने पार्ट टाइम जॉब करने की शुरुआत की इसलिए अब उसका अपने मायके वालों को पैसे देना सास को बिल्कुल पसंद नहीं था। 


वह तो सभी को बताती थी कि सोनल जॉब करती है, सभी पैसे मायके  मे देती है,  ऐसी आधी सच बाते सोनल को अच्छा नहीं लगता था। पर करे तो भी क्या? उसे भी पता था कि अपने मायके की परिस्थिति  ठीक नहीं है। थोड़ी बहुत मदद की तो क्या हुआ? मुझे कहां जिंदगी भर मदद करनी है भला! आज ना कल भाई की पढ़ाई पूरी होकर तो वो अच्छी नौकरी करेगा, मां बाप की जिम्मेदारी अच्छे से निभाया  और बहने तो अपने ससुराल चली जाएगी। ऐसा सोनल उसके मन को समझा रही थी।


 वो किसी भी प्रकार की नेगेटिव बातों का भी विचार ना करते हुए सिर्फ दोनों फैमिली का भला चाहती थी। इतना ही नहीं सोनल नीलेश  के माता-पिता का हॉस्पिटल और मेडिसिन का खर्चा उठाती थी। निलेश तो कभी पूछता भी नहीं था। सब सोनल ही देखती थी। उसे हमेशा उसकी सास  बोलती थी, किया तो क्या हुआ वह उसका कर्तव्य है। पर ऐसे नहीं बोलती थी कि मायके की मदद करना भी एक कर्तव्य है यह मात्र भूल गई थी। दोनों साइड का विचार वह करती ही नहीं थी।


 कई दिनों बाद सोनल के पिताजी उनको छोड़कर चले गए। तब भी वह हारी नहीं। सब मैनेज कर रही थी। सोनल मायके वालों की मदद अभी भी करती है यह सब पता चला तब नीलेश ने उसे बहुत डांटा। सास ससुर ने भी डांट लगाई। तभी सोनल शांत ना रह पाई वह भी पढ़ी हुई और नौकरी करने वाली लड़की थी। नीलेश से ज्यादा कमाने वाली, दोनों परिवार की आर्थिक समस्या वह संभालती थी। उस दिन उसे भी उनके बोलने का गुस्सा आया।


 सोनल बोली, अगर लड़की ने ससुराल की मदद की तो चलेगा और मायके की मदद की वह क्यों नहीं चलता? ऐसा क्यों ? मेरे मायके वाले हमें मदद मत करो ऐसा बोलते हैं क्योंकि वह मेरे गृहस्ती का विचार करते हैं। मैं मदद करती हूं मेरे फैमिली के लिए और मेरे भाइयों के लिए। मेरी जिम्मेदारी है और मैं निभा रही हूं। 


इसमें क्या गलत कर रही हूं भला? जिस माता-पिता ने मुझे इतना कष्ट करके पढ़ाया, बड़ा किया, आज मैं उनकी वजह से ही इतनी बड़ी पोस्ट पर हूं। अच्छा खासा कमा रही हूं। तो मायके में जरूरत होने पर थोड़े दिन मैंने आर्थिक मदद की तो क्या हुआ? और हां मैं आपका भी सब करती हूं हमारी गृहस्ती और भविष्य इसका विचार करके बचत भी जमा कर रही हूं। यह सब बातें सोनल की सुनकर उसके ससुराल वाले उसे कुछ भी नहीं बोल पाए। 


कुछ दीनो बाद में सोनल की सास बहुत बीमार हुई। उनकी बेटी उनको पैसे चाहिए थे तो खुद ने आधे पैसे भरने  के लिए तैयार हुई तब सोनल बोली। दीदी हम दोनों है ना। नीलेश और मैं देखते हैं पैसों का  आप चिंता मत करो। 


नहीं भाभी मेरा भी कर्तव्य है मां है वह मेरी। मां बाप के लिए  लड़का और लड़की दोनों ही  समान होते हैं। दोनों को साथ में बड़ा करते हैं। पढ़ाई, नौकरी उनकी ही वजह से पूरी होती है। तो ऐसे वक्त में मायके में लड़की ने मदद की तो क्या होगा? मैं भी जॉब करती हूं मेरी भी सेविंग हैं। अर्थात सोनल भी ऐसे ही विचारों की थी। 


अपनी बहन की बातें सुनकर नीलेश और उसके मां बाप का सिर शर्म से झुक गया। वह बोली शादी होने के बाद भी मायका लड़की के लिए पराए नहीं होता है। लड़की ने कभी तो मायके की भी जिम्मेदारी ली या अपने माता-पिता के लिए कुछ किया तो कुछ बिगड़ नहीं जाता। यही बात सोनल कितने दिनों से बोल रही थी। तभी उसके सास को ये बात अच्छी नहीं लगता थी। यही बात बेटी ने बोली और उसने की हुई मदद यह सब देखकर हमने सोनल के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया उससे उसकी सास को पछतावा होने लगा। 


निलेश को भी बहुत बुरा लगा। दोनों ने सोनल से माफी मांगी क्योंकि उनको भी समझ में आया कि शादी होने के बाद भी लड़की की मायके की जिम्मेदारी, कर्तव्य भुला नहीं जाता वह खुद के पैर पर खड़ी होगी, नौकरी कर रही होगी और मायके की परिस्थिति अच्छी नहीं होगी, मायके में भी कभी भी मदद की जरूरत होगी तो मदद देनी चाहिए । ऐसे वक्त लड़की ने मदद करना यह उसका कर्तव्य होता है। 


उसके लिए दोनों परिवार समान होते है। इन सब में सिर्फ उसको ससुराल वालों ने समझ के उसका साथ देना चाहिए यही उनकी  अपेक्षा रहती है। शादी हो गई इसलिए मायका उसके लिए महत्व का नहीं ऐसा भी नहीं है ना। लड़की की ससुराल के प्रति जिम्मेदार होती है वैसे ही मायके की  जिम्मेदारी भी होती है।


दोस्तो, मायका और ससुराल दोनों एक समान होते हैं यह संदेश देने वाली हृदयस्पर्शी कहानी आपको कैसी लगी?


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