नमस्ते मित्रो, आज हम आपको जो नैतिक कहानी बताने जा रहे है उसका शीर्षक 'पाप और पुण्य' हैं। इस कहानी को पढ़कर अगर एक भी व्यक्ति बुराई का मार्ग छोड़कर अच्छाई के मार्ग को चुनता है तो इस कहानी को लिखने का उद्देश पूरा हो जाएगा।
पाप और पुण्य : नैतिक कहानी | Hindi Moral Story
किसी एक गांव में रमण नाम का एक चोर रहा करता था। वो पास के जंगलों से गुजरने वाले रास्तों पर आने जाने वाले मुसाफिरों को चाकू की नोक पर लूट लिया करता था। कभी-कभी खतरा महसूस होने पर वह उन्हें मारने से भी कातरता नहीं था।
उसका एक छोटा सा परिवार था, जिसमें उसकी पत्नी, एक बेटा एक बेटी और उसका बूढ़ा बाप रहा करता था। रमण जब चोरी डकैती करता इन सब के लिए कुछ ना कुछ तोहफे खरीद कर ले जाता था। उसका पूरा परिवार भी जानता था कि वह जो सारी चीजें और पैसे लाता है वह चोरी और डकैती के होते हैं।
1 दिन रमण ने एक बूढ़े आदमी को लूट लिया। वह बूढ़ा आदमी रमण के आगे बहुत गीड गीडा या उसने रमण से कहा कि यह पैसे वह उसकी बेटी की शादी के लिए दूसरे गांव से उधार लाया है। कृपया करके वह इन्हें ना लूटे, वरना वह अपनी बेटी की शादी नहीं करा पाएगा। लेकिन रमण को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था इसलिए रमन ने उस बूढ़े आदमी को धक्का मार दिया और उसका सारा पैसा छीन कर अपने घर लौट आया।
घर पहुंचने पर रमण के पिता ने उसे पूछा कि आज कहां से आ रहे हो? तब रमन ने उन्हें बताया कि आज उसने एक बूढ़े आदमी के पैसे लूटे है, जो अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे उधार लेकर अपने घर जा रहा था।
रमण के पिता ने उसे कहा कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। ऐसा करने से तुम्हें बहुत पाप लगेगा। तुम्हें अब चोरी चकारी और डकैती छोड़ देनी चाहिए और कोई मेहनत का काम करके पैसे कमाने चाहिए।
तब रमण अपने बाप पर गुस्सा हो गया। उसने कहा आपके मुंह से यह बातें शोभा नहीं देती क्योंकि मुझे चोरी चकारी और डकैती सिखाने वाले ही आप हैं! अब आप मुझे ज्ञान मत दीजिए।
उसके पिता ने उससे कहा कि हां बेटा मैंने ही यह पाप का रास्ता तुझे दिखाया है मगर जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यह रास्ता गलत है तो मैंने भी तो अपने बुरे काम करने छोड़ दिए। तुम भी जितनी जल्दी हो सके छोड़ दो, नहीं तो आगे जाकर बहुत पछताओगे।
लेकिन रमन ने उनकी एक न सुनी और अपना बुरा काम करना जारी रखा। कुछ दिनों बाद रमण फिर से चोरी डकैती करने के लिए जंगल के आने जाने वाले रास्तों पर छिप कर बैठ गया। वहां पर एक जोड़ा नया नया शादी करके आ रहा था। उसने उन्हें पकड़ लिया और चाकू दिखाकर सारा पैसा और जेवराज मांगने लगा। इस जोड़े ने अपने पास रखे सारे पैसे और जेवरात दे दिए मगर जब दुल्हन ने अपना मंगलसूत्र देने से मना किया तब रमन को उन पर गुस्सा आ गया और उसने दूल्हे को मार दिया और दुल्हन को बोला कि अब यह मंगलसूत्र तुम्हारे किस काम का? अब तो तुम्हारा दूल्हा भी मर गया लाओ इस मंगलसूत्र को निकाल कर मुझे दे दो।
नई नई शादी करके आई दुल्हन अपनी आंखों के सामने अपने पति को मरता हुआ देख खुद भी सदमे से मर गई। यह सब घटना जब हो रही थी तब पास के पेड़ के नीचे बैठा साधु ये सब देख रहा था।
साधु ने रमण को अपने पास बुलाया और उससे कहा कि तुम्हें इतना मूल्यवान मनुष्य जीवन मिला है और तुम इसे इतना भयंकर पाप करके व्यर्थ कर रहे हो। तुम एक इमानदारी भरा जीवन क्यों नहीं जीते?
तब रमन ने उसे कहा यह मैं अपने लिए नहीं करता! मैं अपने परिवार के लिए करता हूं। मैं जो लूट-पाट करता हूं, उससे जो मुझे पैसे मिलते हैं वह मैं सारा अपने परिवार के ऊपर खर्च कर देता हूं।
तब साधु ने रमण को कहा कि चाहे तुम अपने परिवार के लिए पाप करते हो मगर इस पाप का सारा हिसाब तुम्हें चुकाना पड़ेगा। हा अगर कोई है जो अपनी मर्जी से तुम्हारे पाप में भागीदार बनता हो तब बात अलग होगी
! रमण ने साधु की बात सुनकर तुरंत कहा हां हां क्यों नहीं? मेरा पूरा परिवार मुझसे बहुत प्रेम करता है और वह सभी जरूर मेरे पाप में भागीदार बनेंगे। आखिरकार में यह सब उनके लिए ही तो करता हूं।
साधु ने रमन से कहा कि हो सकता है यह तुम्हारा भ्रम हो, इस बात को स्पष्ट करने के लिए तुम्हें अपने परिवार से एक बार पाप की हिस्सेदारी लेने के लिए पूछ लेना चाहिए।
रमण को साधु की बात पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन उसने सोचा कि एक बार पूछने में क्या जाता है? उस दिन जब वह घर पहुंचा तो अपने सारे परिवार के लिए कुछ ना कुछ तोहफे लेकर गया। जिन्हें पाकर परिवार के सभी लोग बहुत खुश हो गए।
उसने सबसे पहले अपने पिता से पूछा कि क्या आप मेरे पापों में भागीदार होंगे? पिता ने उससे कहा कि बेटा मेरे खुद के ही इतने सारे पाप है जिनका पछतावा मैं अब तक कर रहा हूं, भला मैं तुम्हारे पाप में भागीदार कैसे बनु? और वैसे भी मैं तुमसे यह काम छोड़ने के लिए तो पहले से कह रहा हूं।
बाद में रमण अपनी पत्नी और बच्चों के पास गया। अपनी पत्नी और बच्चों से भी यही सवाल किया कि क्या वह उसके पाप के भागीदार बनेंगे? तब उसकी पत्नी और बच्चों ने उससे कहा कि आप जो कुछ भी करते हैं वह हमारे लिए नहीं करते बल्कि आप इसलिए करते हैं क्योंकि आपकी वह जिम्मेदारी है! आप अपनी जिम्मेदारी चोरी डकैती करके पूरी करो हमने ऐसा कभी नहीं कहा वो पूरी तरह आपका फैसला है, इसलिए इससे मिलने वाले पाप में हम आपके भागीदार कैसे बने?
अपने परिवार का जवाब सुनकर रमण की आंखें खुल गई। वी तुरंत जंगल में पेड़ के नीचे बैठे साधु के पास गया और सारी बात साधु को बताई और उनसे यह भी पूछा कि वह कैसे अपने पाप कम कर सकता है?
साधु ने उससे कहा अपने सारे बुरे काम तुरंत बंद कर दो और तुम्हारे पास जो कुछ है तन,मन या धन उन सब से अच्छाई के काम करना शुरू कर दो, जिससे तुम्हारा पाप धीरे-धीरे कम हो जाएगा।
उस दिन से ही रमण ने सारे बुरे काम बंद सारे बंद कर दिए और अच्छाई के कामों में लग गया।
कहानी का नैतिक पाठ
मित्रो कही आप लोग भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कुछ ऐसे काम तो नहीं कर रहे हैं जिनकी वजह से आपकी पाप की गठरी भी भारी होती जा रही हो? याद रखिए आप जो भी कर्म करते हो उससे मिलने वाला पाप आप चाहकर भी किसी के साथ नहीं बांट सकते इसीलिए रुकिए, सोचिए,समझिए और अपने कर्मों को उसी हिसाब से कीजिए ।
