सफर या मंजिल : प्रेरक कहानी | Prerak kahani

 सफर या मंजिल ? | Prerak kahani 


दो दोस्त रवि और सोम बचपन से ही साथ में पढ़े,घूमे फिरे, खेल खेले साथ में ही खाए पिए यानी कि दोनों की एकदम पक्की वाली दोस्ती। इतनी पक्की दोस्ती होते हुए भी दोनों के स्वभाव एकदम अलग। रवि एकदम शांत, सुलझा और विषय और वस्तु के हर पहलू पर ध्यान देनेवाला वही सोम एकदम विपरीत यानी की उतावला और सिर्फ रिजल्ट्स को महत्व देनेवाला।

प्रेरक कहानी



सोम हर काम को जल्द से जल्द करके उसे हटाने के बारे में और सबसे पहले नंबर पर आने के बारे में सोचता। ऐसा करने में उससे कई गलतियां भी हो जाती । रवि कभी किसी काम में जल्दबाजी नहीं करता वह हर एक काम को सोच समझकर उनके हर पहलुओं पर गौर करके ही करता, हां थोड़ी देर होती लेकिन उसके काम में कोई गलतियां नहीं होती।


एक बार दोनो दोस्त लंबी दूरी से घर को लौट रहे थे तब सोम ने कहां की वो रवि से ज्यादा तेज दौड़ता है। इस बात से रवि सहमत नही था क्योंकि दौड़ने में तो वो भी काफी तेज था। ये बहस एक शर्त  में बदल गई । दोनों ने तय किया कि वह जहां पर है वहां से उनके घर तक की दूरी अब वह दौड़कर तय करेंगे और जो सबसे पहले घर पहुंचेगा वह विनर होगा।


दोनों ने साथ में दौड़ना शुरू किया। कुछ दूर जाकर वे दोनों कंकड़ पत्थर वाले रास्ते को दौड़ने लगे। वहां पर रवि अचानक रुक गया और अपने जीते खोलने लगा। उसे ठहरा हुआ देख सोम ने मुस्कुराते हुए कहा क्या हुआ अभी से हार मान ली? रवि ने सोम से कहा बिल्कुल नहीं मैं अपने जूते में फसे कंकरो को निकाल रहा हूं ताकि आगे जाकर मुझे रेस कंप्लीट करने में कोई दिक्कत ना हो।


वो बोला मुझे छोटे-मोटे कांकरो की परवाह नहीं है। मैं किसी भी हालत में तुमसे पहले यह रेस कंप्लीट कर लूंगा। इतना कहकर सोम आगे बढ़ गया। रवि ने अपने जूतों से कंकर निकाले और अपनी रेस फिर से शुरू की। अभी आधा ही रास्ता तय हुआ था रवि दौड़ते दौड़ते सॉन्ग तक पहुंच गया उसने देखा कि सोम की रफ्तार धीमी हो चुकी है। उसे यह समझते देर न लगी कि सोम के जूतों में फंसे कंकरो की वजह से उसे दौड़ने में तकलीफ हो रही है। देखते ही देखते हैं रवि सोम से आगे निकल गया। लेकिन तभी रवि को पीछे से सोम की आवाज सुनाई दी जो उसे मदद के लिए बुला रहा था।


रवि तुरंत पीछे मुड़ा और अपने दोस्त की मदद करने के लिए उसके पास पहुंच गया। वहां जाकर रवि ने देखा कि सोम के पैरों से खून निकल रहा था और ये उन्ही छोटे-छोटे कंकरों की वजह से हुआ था जो उसके जूते में फंस चुके थे और उसने निकाले नहीं थे। रवि ने अपने दोस्त के पैरों से वह कंकर निकाले और उस को सहारा देकर घर ले गया और उसे दवाई लगाई। सुनकर काफी ज्यादा घायल हो गया था इसलिए उसे ठीक होने में काफी लंबा समय लगा। सोम को इस बात का हमेशा सोच रहा उसने सिर्फ मंजिल पर ध्यान दिया और बाकी चीजों को इग्नोर किया।


दोस्तों दुनिया में दो तरह की सोच रखने वाले लोग होते हैं। एक वह जो मंजिल को ज्यादा महत्व देते हैं और सफर पर ध्यान नहीं देते। दूसरे वह जिन्हें सफर में भी उतनी ही दिलचस्पी होती है वह सफर को भी उतना ही इंजॉय करते हैं जितना कि मंजिल को और ऐसे लोग जानते हैं कि मंजिल तक पहुंचने के लिए सफर में कई सारी चीजों पर ध्यान देना पड़ता है और आखिर में वही सही सलामत अपनी मंजिल पर पहुंचकर उसका आनंद मना पाते है।


दोस्तों एक कहानी हमने बहुत ही महत्वपूर्ण बात सिखाती है। हमें अपनी मंजिल पर जरूर फोकस करना चाहिए लेकिन उस मंजिल तक पहुंचने के सफर को अगर हम सोच समझकर तय करें उस का आनंद लेते हुए तय करें तो मंजिल पर पहुंचकर हमें ज्यादा खुशी होगी।

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