कर्म बड़ा या भगवान ? शिक्षाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani

 कर्म बड़ा या भगवान ?  शिक्षाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani 


एक गांव में दो पड़ोसी थे जो बचपन के अच्छे मित्र भी थे जिनका नाम रमण और हरिलाल था। दोनो स्वभाव से काफी भिन्न थे। 


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रमण बहुत धार्मिक था और भगवान को बहुत मानता था वही हरिलाल कर्म में विश्वास रखनेवाला  बहुत मेहनती व्यक्ति था। दोनो की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। एक बार दोनों ने मिलकर अपनी परिस्थितियां बदलने के लिए भागीदारी में थोड़ी जमीन खरीदी। उनका विचार था की इस जमीन में वह अच्छी फ़सल ऊगा कर उसको बेचेंगे और अच्छा धन कमाएंगे।


अब समय था फसल पाने के लिए खेत में मेहनत करने का। मेहनती हरिलाल खेत में काफी ईमानदारी से मेहनत करता लेकिन रमण खेत से दूर ही रहता और मंदिर में जाकर भगवान से अच्छी फसल की उपज मिले इसलिए पूजा - प्रार्थना करता । समय बीतता गया और कुछ समय बाद खेत की फसल पक कर अच्छे से तैयार हो गयी।


इस फसल को दोनों ने व्यापारी को बेच दि जिसके बदले उन्हें व्यापारी से काफी पैसे मिले। अब बारी थी पैसों के बंटवारे की तो घर आकर हरिलाल ने रमण से विनती की की इस धन का ज्यादा हिस्सा उसे दिया जाए क्योंकि उसी ने खेत में ज्यादा मेहनत की है।


इस बात से असहमति दर्शाते हुए रमण बोला नहीं धन का तुमसे ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए क्योकि मैंने भगवान से इसकी प्रार्थना की तभी हमको इतनी अच्छी फ़सल हुई। मेरी भक्ति और भगवान के बिना ये संभव नहीं होता। दोनो ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुए थे। वह दोनों इस बात को आपस में नहीं सुलझा सके।  धन के बॅटवारे के लिए दोनों गांव के सरपंच के पास पहुंचे।


सरपंच ने दोनों की सारी बात सुनी और उन्हें पता चला कि असली हकदार हरिलाल है फिर भी रमण की गलतफहमी दूर करने के लिए सरपंच ने  दोनों को ही एक – एक बोरा चावल का दिया जिसमें काफी ज्यादा कंकड़ मिले हुए थे। सरपंच ने दोनों से कहा की कल सवेरे 7 बजे तक तुम दोनों को इसमें से चावल और कंकड़ अलग करके लाने है। कल तुम दोनो के चावल देख कर ही में फैसला करूँगा की इस धन का बड़ा हिस्सा किसको मिलना चाहिए?


रमण और हरिलाल चावल की बोरी लेकर अपने घर चले गए। मेहनती हरिलाल ने रात भर बिना सोए चावल और कंकड़ को अलग किया। लेकिन रमण चावल की बोरी को लेकर मंदिर में गया और भगवान से चावल में से कंकड़ अलग करने की प्रार्थना करके सो गया।


अगले दिन सुबह हरिलाल जितने चावल और कंकड़ अलग कर सका उसको ले जाकर सरपंच के पास गया। जिसे देखकर सरपंच खुश हुआ। रमण वैसी की वैसी बोरी को ले जाकर सरपंच के पास पहुंच गया।


सरपंच ने रमण से कहा की दिखाओ तुमने कितने चावल साफ़ किये हैं? रमण ने कहा की मुझे अपने भगवान पर पूरा भरोसा है की उन्होंने सारे चावल साफ़ कर दिए होंग! जब उसकी चावल की बोरी को खोला गया तो उसमे चावल और कंकड़ वैसे के वैसे ही थे।


सरपंच ने रमण को समझाया की भगवान भी तभी सहायता करते हैं जब तुम मेहनत करते हो। सरपंच ने धन का ज्यादा हिस्सा हरिलाल को दिया। इस घटना के बाद रमण को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वो भी हरिलाल की तरह खेत में मेहनत करने लगा और अबकी बार उनकी फ़सल पहले से भी अच्छी हुई।


महत्वपूर्ण सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें कभी भी सब कुछ भगवान  भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए।भगवान हमेशा उसका साथ देते है जो कर्म करना नही छोड़ता इसलिए हमें किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी मेहनत करनी ही चाहिए।

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