इंग्लिश मीडियम : सच्ची कहानी | True hindi story

 इंग्लिश मीडियम : सच्ची कहानी | True hindi story 


परसों सोलापुर पुणे हाईवे पर एक होटल में रात के खाने के लिए रुकते समय आठवीं नौवीं कक्षा की लड़की, पिता, मां उच्च वर्गीय परिवार (हाईक्लास) मेरे सामने बैठा था। तभी उनकी नजर होटल के श्लोक पर पड़ी। वदनी कवड....


Sachhi kahani


 पढ़कर वे चर्चा करने लगे कि ,वद्नी कवड क्या मतलब है? नाम घ्या  फुकाचे मतलब क्या है ? what is फूंका? एक दूसरे से इस तरह के सवाल पूछने लगे, जबकि उनके साथ मौजूद छोटी सी बच्ची उसके माता-पिता की तरफ देख रही थी। लेकिन मराठी का ज्ञान  न होने के कारण( इंग्लिश मीडियम) उस श्लोक का अर्थ क्या है उनको समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने इसे समझने की काफी कोशिश की फिर बाद में हार मान कर चर्चा को रोक दिया और वह बच्ची जो कुछ नया सीखने की आशा से उनकी और देख रही थी, निराश हो गई।


     मैंने अपना खाना समाप्त किया और बिल का भुगतान करने के बाद मैं जानबूझकर उस परिवार के पास गया। मैंने अपना हाथ उस बच्ची के पेट पर रखा और कहा कौन सी कक्षा में पढ़ती हो? उसने कहा 9 स्टैंडर्ड। फिर मैंने कहा तुम जानती हो कि उस शोल्क का अर्थ क्या है? यह बात सुनते ही उसने उम्मीद से मेरी तरफ देखा।

    

मैंने वाक्य जोड़ते हुए उससे कहा......वद्नी कवड घेता नाम घ्या श्रीहरी चे ....... अर्थात भोजन करते समय निवाले को मुंह में लेते हुए श्री हरी यानी ईश्वर का नाम लेना चाहिए।


सहज हवंण होते नाम घेता फुकाचे........ मतलब यह मुफ्त का नाम लेने से आपका खाना आसानी से पच जाएगा।


जीवन करी जिवित्वा अन हे पुर्णब्रम्ह......... अर्थात हम सभी के जीने यानी की जीवित रहने के लिए सबसे आवश्यक चीज भोजन है इसलिए अन्ना को पूर्ण ब्रह्मा कहा गया है। उदरभरण नोहे जनिजे यज्ञ कर्म.......... जैसे यज्ञ में बहुत सी चीजें डाल दी जाती है वैसे ही यज्ञ में डाली जाने वाली चीजें जैसे पेट भी नहीं बनना चाहिए।


यह सुनकर उस बच्ची के चेहरे पर संतोष के भाव मुझे दिखे और उन माता-पिता के प्रश्न का उत्तर भी मिल गया था कि व्हाट इज फुक?


       हम भारतीय के रूप में पैदा हुए, हम भारत में रहते हैं। हम भारतीय के रूप में रहते हैं लेकिन यह एक वास्तविक त्रासदी है कि हम एक साधारण श्लोक का अर्थ अपने बच्चों को नहीं बता सकते। जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं वह अपने आसपास की दुनिया को देखते हैं इससे सीखने की कोशिश करते हैं। फिर माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है, कि उन्हें अच्छी चीजें दिखाइए या बुरी चीजें।


हम सभी के पास इंटरनेट है और अगर हम खोजने मैं सिर्फ 1 मिनट लगाते तो हमें जवाब मिल जाता, लेकिन हम इतना प्रयास नहीं करते! आज सही मायनों में नॉन इंग्लिश स्कूल में पढ़ने का संतोष मिला मुझे। मुझे मेरी प्राथमिक शिक्षा, मेरे पिता, मेरे स्कूल और शिक्षकों पर गर्व है।


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