एक पिता का फैसला : अनोखी कहानी

 घर का बंटवारा चल रहा है। दाई तरफ बड़ा भाई तो बाई तरफ छोटा भाई कुर्सी पर बैठा हुआ है। बीच में उनके पिता नम आंखों के साथ सर नीचे  डालकर बेबस बैठा हुआ है।


एक पिता का फैसला : अनोखी कहानी


पहले बड़े भाई ने फिर छोटे भाई ने बारी बारी से घर की अलग-अलग चीजों पर अपना अपना हक जमाया। उन्होंने अपनी अपनी तरफ से कारण बताए कि क्यों उन्हें वह चीज मिलनी चाहिए। गांव के सरपंच ने अपनी समझदारी के हिसाब से किसी चीज को बड़े भाई को तो किसी चीज को छोटे भाई को सौंपने के लिए कहा।


जब सारी चीजों का बंटवारा हो गया तब सरपंच ने बात को आगे बढाते हुए कहा कि अब यह बताओ कि अपने पिता को अपने साथ कौन रखने वाला है? सरपंच की बात खत्म होते ही दोनों भाई बोल उठे उसमें कहना क्या है? पिताजी 6 महीने मेरे साथ और 6 महीने भाई के साथ रहेंगे।


सरपंच को और बाकी परिवार वालों को यह सुझाव सही लगा। लेकिन शांत बैठे हुए पिताजी के मन का लावा जैसे अब ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ा। वह गुस्से में खड़े हुए और चिल्लाकर सब कुछ चुप रहने के लिए कहा। उन्होंने कहा इसका फैसला मैं करूंगा। यह घर मेरा है। मेरा फैसला कान खोल कर सुनो... मैं तुम दोनों को बारी-बारी से 6 महीना अपने घर पर रखूंगा और बाकी के 6 महीना तुम अपने लिए कहीं और बंदोबस्त कर लेना!


बूढ़े पिता की ऐसी बात सुनकर सब दंग रह गए, हैरान रह गए। वह ऐसे बौचक्के रह गए जैसे कुछ नया हो गया। जो उन्होंने कभी ना सुना था, ना कभी देखा था।


दोस्तों मेरे हिसाब से इस बूढ़े पिता का फैसला बिल्कुल सही था। जो मां बाप अपने बेटों के लिए अपना खून पसीना लगाकर एक अच्छा सा घर बनाते हैं ताकि उनके बेटे आगे चलकर सुख शांति से उसमें रह सके। यहीं बेटे यह तय करने लगते हैं कि मां बाप उस घर में रहेंगे या नहीं। उन्हें ऐसा करने का कोई भी हक नहीं होता है। यह हक सिर्फ मां बाप को होना चाहिए।


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