पाखंडी साधु की कहानी | Best Hindi Kahani

 पाखंडी साधु की कहानी  | Best Hindi Kahani 


एक बार शहर में पुलिस ने सभी चोरों की नाक में दम कर दिया था | सभी चोर एक के बाद एक पकड़े जा रहे थे | केवल एक चोर थोड़ी सी चालाकी से छिप गया था | तब उसके मन में एक विचार आया कि अगर वो भगवा रंग के कपड़े पहनकर साधू बन ! इस दुनिया में चोरों को भले ही जूता मारा जाता है, लेकिन अगर वही चोर भगवा वस्त्र पहन ले तो उसके पैरों की पूजा की जाती है! इस रूप में, वह चोर साधू बनकर बेफिर्क होकर घूमने लगता है।


पाखंडी साधु की कहानी  | Best Hindi Kahani


थोड़े ही दिनों बाद कुछ यू होता है,

उस नकली साधू में यानी की चोर में एक कौशल था कि वह अपने वचनों में बहुत निपुण था | वह अपने उपदेश को बहुत मनोबल से प्रस्तुत करता था | इसी कारण वह नकली साधू बड़ा मशहूर बन गया | उसके कई शिष्य उसके पीछे हो गए | अनेक लोग उसकी शिक्षाओं का पालन करने लगे | उसे बिना किसी चार्ज के भोजन मिलने लगा | लेकिन उसे संसारिक जीवन से अलग होने का दुख बना रहता था।


थोड़े और दिन बीतने बाद,


उस नकली साधू ने अपने शिष्यों के साथ जंगल में निवास किया | तभी वहाँ एक सेठ पहुँचा | सेठ को भी उस नकली साधू के वाक्यों का प्रभाव पसंद आया |साधू से मिलकर जब सेठ अपने घर पहुंचा, उसे एक विचार आया। वास्तव में, सेठ के मन में एक दुविधा थी। उसके पास बहुत सोना था, लेकिन चोरों के डर के कारण वह अपने घर में उसे रखने का साहस नहीं कर सकता था। उसने सोचा, क्यों न यह सोना साधू के आश्रम में रख दिया जाए, क्योंकि साधू को कभी कोई मोहमाया की पर्वाह नहीं होती। वे तो भगवान की भक्ति में खोए  रहते हैं। किसी को ऐसे देवता पर संदेह भी नहीं हो सकता कि उनके आश्रम में सोना रखा हो। इस तरह सोचकर, सेठ दूसरे दिन सोना लेकर पाखंडी साधू के आश्रम गया और उससे पूरी बात साझा की। फिर, पाखंडी साधू का दिल खुश हो गया। उसकी आँखों में उस सोने की पोतली को हड़पने की साजिश दिख रही थी। सेठ ने वह सोने की पोतली आश्रम के एक पेड़ के नीचे दबा दी और वहां से चला गया।


अब साधू को नींद कहाँ आनी थी? रात भर उस सोने की पोतली के बारे में सोचता रहा। उसने सोचा, अगर यह सोना मिल जाए, तो मेरा जीवन बन जाएगा। उसको सांसारिक सुख भी मिलेंगे, जो इस भगवा कपड़े ने मुझसे छीन लिया है। इस प्रकार, साधू ने कई सपने देख लिए। दूसरी ओर, सेठ सोने को आश्रम में रखकर संतुष्टि से सो रहा था।


साधू ने एक योजना बनाई। उसने सोचा, मैं इस सोने को लेकर चला जाऊं और सेठ को शक न हो, इसलिए मैं अपने घर जाने की बात कर दूं। अगले दिन, साधू सेठ के घर गया। सेठ के पास एक व्यापारी बैठा था। साधू की आगमन देखकर सेठ ख़ुशी से उछल पड़ा और कई पकवान बनाकर खिलाया। साधू सेठ से अपने जाने की बात कहता है, जिस पर सेठ दुखी होकर उसे रोकने की कोशिश करता है, लेकिन साधू कहता है, वो एक संत है, जिसकी कोई स्थानिकता नहीं है। वह लोगों को मार्गदर्शन देने के लिए घूमते हैं। इस पर साधू बाहर निकलता है और जानबूझकर सेठ के घर से एक तिनका उठा लेता है। थोड़ी देर बाद, साधू वापस आता है, जिसे देखकर सेठ पूछता है कि वह क्यों वापस आया। तब साधू कहता है, आपके घर का यह तिनका मेरी धोती में लटककर मेरे साथ चला जा रहा था, इसलिए लौटाने आया हूँ। सेठ हाथ जोड़कर कहता है, इसकी क्या जरूरत थी। तब साधू कहता है, इस संसार की किसी वस्तु पर संत का कोई हक नहीं होता। फिर अपनी बातों से सेठ को मोहित कर देता है और चला जाता है। 

ये सारी घटना सेठ का व्यापारी दोस्त भी बड़ी बारीकी से देख रहा था। साधु के जाने के बाद व्यापारी सेठ से पूछता है यह बाबा कौन थे? सेठ अपने दोस्त व्यापारी को सारी बात बताता है जिसे सुनने के बाद व्यापारी जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसने लगता है। सेठ व्यापारी से हंसने का कारण पूछता है तब व्यापारि  समझाता है कि यह कोई बाबा नहीं हो सकता यह जरूर कोई ठग होगा जो तुम्हें लूटकर ले गया।


ढोंगी साधु के बातों के जाल में फंसे सेठ को उसकी बातों पर विश्वास नहीं होता। व्यापारी कहता है कि अगर तुम्हें मेरी बातों पर भरोसा नहीं है तो जाओ जाकर देखो जहां तुमने सोना गाड़ा है वहां तुम्हें अब कुछ नहीं मिलने वाला। सेठ और व्यापारी उसी जगह जाते हैं जहां सेठ ने सोना दबाया था। खुदाई करने पर वहां कुछ नहीं मिलता जिसे देखकर सेठ छाती पीट कर रोने लगता है। व्यापारी सेठ को समझाता है कि अभी विलाप करने का समय नहीं है जल्द से जल्द हमें पुलिस को बताना चाहिए क्योंकि अभी भी साधु ज्यादा दूर नहीं गया होगा उसे पकड़ा जा सकता है।

इसके बाद, सेठ और व्यापारी ने पुलिस को बताया और पुलिस ने पाखंडी साधू को पकड़ लिया। इसके बाद सबको पता चला कि यह कोई सिद्ध बाबा नहीं था, वरन महान चोर जिसने अपनी बातों का जादू चलाकर लोगों को ठगा था। वह भगवा वस्त्र पहन कर घूम रहा  था, ताकि पुलिस से बच सके।


सोने की पोटली मिलने के बाद, सेठ की आत्मा में सुख की ज्योति जली। सेठ व्यापारी से पूछता है कि उसको कैसे पता चला कि साधू पाखंडी था? व्यापारी ने कहा - "साधू ने बार-बार अपनी तारीफ की। संत कितने महान होते हैं, यह सिर्फ उनके द्वारा नहीं कहना चाहिए। वास्तविक संत को तो उसकी कोई स्थानिकता नहीं होती। उसे उसकी महानता का दिखावा करने की आवश्यकता नहीं होती।" इस तरह साधू ने अपनी चाल से कई लोगों को ठग लिया।


इस उदाहरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें आवश्यकता है कि हम साधुओं और बाबाओं की प्रत्येक बात पर यकीन नहीं करें, बल्कि हमें उनके शब्दों की परीक्षा करनी चाहिए। व्यापारी ने सही समय पर सही निर्णय लिया और सेठ को उस धोखाधड़ी साधू की पहचान करवाई।

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