मां से नफरत : कहानी जिसे हर बच्चे को पढ़नी चाहिए
मुझे बहुत दुख हुआ जब मेरी माँ ने मुझे स्कूली शिक्षा के लिए मेरी मौसी के घर भेजकर मुझे मेरे पिता से अलग कर दिया ।
मैं छह साल की थी और मुझे पढ़ाई से जैसे नफरत सी थी। अपने छोटे से शहर में, मैं स्कूल से भाग जाया करती थी। मैंने शिक्षकों को काफी परेशान किया था। घर पर ट्यूशन टीचर्स बार-बार बदलते रहते थे क्योंकि या तो वे मेरे साथ टिक नहीं पाते थे या मैं नहीं रह टिक पाती थी। या तो उनकी छड़ियां मुझे मारते मारते टूट जाती या मैं लगातार रोटी रहती।
मेरे पिता मुझसे ज्यादा ही लाड करते थे, इसलिए उन्हें मुझे रोते हुए देखना नापसंद था। उन्होंने मुझे ना पढ़कर भी अपने पास रखने का मन बना लिया था और मेरी मां से कहा कि वह मुझे पढ़ाई के लिए परेशान न करें।
हालाँकि, मेरी माँ एक जिद्दी महिला थीं जो इतनी जल्दी मेरा सामने हार नहीं मानना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने गुप्त रूप से मुझे मेरी मौसी के घर भेजने की योजना बनाई, जो एक अलग शहर में रहती थी। मुझे एक कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला मिल गया जहाँ नियम बहुत सख्त थे। मेरे पास स्कूल से भागने का कोई रास्ता नहीं था।
शुरू में मुझे इससे नफरत थी। मुझे अपने पिता की बहुत याद आती थी और जब भी वह मुझसे मिलने आते थे तो मैं उनकी बांहों में सिसकने लगती थी। यह हम दोनों के लिए कठिन समय था। मेरी माँ की पत्थर दिल महिला होने के कारण निंदा की गई।
हालाँकि, यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। वहाँ कुछ जादू सा काम किया और मैं किताबों के प्रति जिज्ञासु और मोहित हो गई। तभी से कक्षा में प्रथम रैंक प्राप्त करना मेरा एकमात्र लक्ष्य बन गया।
मेरी मां के प्रयास मेरे लिए छुपे हुए आशीर्वाद साबित हुए। अब मैं बचपन में इतने कठोर कदम उठाने के लिए अपनी मां की आभारी हूं!
दोस्तों कहते है पूत कपूत हो सकते है पर माता कभी कुमाता नही होती इसी कहावत को साबित करती ये नफरत नामक छोटी सी कहानी आपको जरूर पसंद आई होगी।
Credit : Anshu Bharti
