Best story in hindi | kavi kalidas aur raja vikramaditya ki kahani

 सुंदरता बड़ी या गुण ?

दोस्तों, आज की यह कहानी बड़ी ही मजेदार और रोचक है आप इसे पढेंगे तो आपको जरूर मजा आएगा. तो आइए आपका ज्यादा टाइम ना लेते हुए शुरू करते हैं आज की यह बेहतरीन हिंदी कहानी.

Kalidas aur vikramaditya ki kahani


 गर्मी का मौसम था, दिन का तीसरा पहर चल रहा था, गर्मी तो घटने की बजाय बढ़ती जा रही थी. चारों तरफ से ऐसा लग रहा था कि आग निकल रही है! सभी जीव जंतु गर्मी से परेशान थे और पेड़ पौधे भी झुलस गए थे.


  उज्जैन के महाप्रतापी महाराजा विक्रमादित्य और उनके महाज्ञानी महाकवि कालिदास दरबार में बैठे थे. बाकी के सब  नवरत्न अपने अपने घर जा चुके थे. महाराजा विक्रमादित्य अपनी  न्यायप्रियता अपने जस्टिस के लिए और अपनी बहादुरी के लिए हमारे इतिहास में प्रसिद्ध है.


 उनके जस्टिस की कहानियां आज भी बहुत लोकप्रिय है. महाराजा विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास गर्मी से परेशान बैठे थे. दोनों के शरीर  पसीने से लथपथ हो गए थे. पहाड़ के बड़े बड़े पंखे जले जा रहे थे उस समय में बिजली के पंखे नहीं होते थे. हाथ में पकड़कर चलाने वाले पंखे सेवक लोग चलाते थे फिर भी उन्हें पसीने  से सुखाने के लिए तोलीओ से अपने शरीर को बार-बार पोछना पड़ रहा था.  प्यास के मारे बार बार गला सुखा जा रहा था. दोनों के पास एक एक मिट्टी की सुराही रखी थी प्यास बुझाने के लिए.थोड़ी थोड़ी  देर में  बार-बार प्यास बुझाने के लिए उन्हें पानी पीना  पड़ता था.


महाराजा विक्रमादित्य बहुत ही सुंदर आदमी थे. वो जितने सुंदर थे उतने ही कवि कालिदास कुरुप थे ! गर्मी और पसीने ने महाकवि कालिदास की शक्ल को और भी बुरा बना दिया था लेकिन महाराजा विक्रमादित्य के सुंदर मुंह पर पसीने के बूंदे मोतियों की तरह लग रही थी. महाराजा विक्रमादित्य का महाकवि कालिदास के लिए दोस्ती का व्यवहार था, दोनों में मीठी मीठी नोकझोंक चला करती थी. वे एक दूसरे को मूर्ख बनाने के  मौके खोजा करते थे.


  महाराजा विक्रमादित्य  किसी भी मौके को हाथ से जाने नहीं देते थे पर महाकवि कालिदास जी से उन्हें हमेशा ही करारा जवाब मिलता था. लेकिन  फिर भी वे सदा खुश होते थे . पहले राजा विक्रमादित्य ही कालिदास को छेड़ा करते थे और कालिदास भी उनका जरूर जवाब दिया करते थे. कभी-कभी तो मूर्ख बना के छोड़ दिया करते थे!


 विक्रमादित्य का ध्यान महाकवि कालिदास के चेहरे के ऊपर गया. वो उनका मजाक उड़ाने लगे बोले "महाकवि इसमें तो कोई संदेह नहीं है आप बहुत बड़े विद्वान हैं ,बहुत चतुर है और गुनी है लेकिन भगवान ने आपको सुंदर रूप भी दिया होता तो कितनी अच्छी बात होती!" कालिदास ने कहा "महाराज इस बात का जवाब मै आज नहीं कल दूंगा."


 महाकवि कालिदास महल से निकलकर सीधे सोनार के यहां गए और रातों-रात मे  शुद्ध सोने की एक सुराइ तैयार की. अगले दिन दरबार शुरू होने से पहले महाकवि कालिदास पहुंचे और उन्होंने विक्रमादित्य की मिट्टी की बनाए हुए सुराइ को  निकाल दिया और उसकी जगह सुंदर सोने की सुराई रख दी.


 कुछ समय बाद पहरेदार ने लंबी गुहार लगाई - राजा के राजा  महाराजा विक्रमादित्य पधार रहे हैं! महाराज विक्रमादित्य अपने बॉडीगार्ड के साथ पधारे. नवरत्न और सभी  सभासद सब लोगों ने महाराज का स्वागत किया.


 उनके सिहासन पर  बिराजमान  होते ही  सब ने अपना अपना आसन ग्रहण किया. कल के समान आज भी बहुत तेज गर्मी थी बड़े-बड़े कलटनसे  हवा दी जा रही थी लेकिन  गर्मी इतनी थी कि फिर भी हवा नहीं लग रही थी. अपना दरबार शुरू करने से पहले महाराज को   प्यास लगी. उनके सुराइ से एक गिलास पानी डालकर एक सेवक ने गिलास भरा, गिलास को होठों पर लगाते ही महाराज उस सैनिक पर बरस पड़े. क्या सुराई में उबला हुआ पानी रखा हुआ था ? उस सेवक की डर के मारे चुप्पी बंद हो गई. 


तब कवि कालिदास ने तीर के तेजी से  आकर सूराई से कपड़ा उठाया तो सोने की सूराइ की  चमक को देखकर  सभी हैरान रह गए ! अरे कितनी सुंदर सुराई है सभी उस सुराई का गुणगान करने लग गए. कोई शुद्ध सोने की तारीफ करता तो कोई उसकी बनावट की तारीफ करता. सारे दरबारी सोने की सुरई की तारीफ पर तारीफ किए जा रहे थे.


 महाराजा विक्रमादित्य एक सांस में बोले" हद हो गई, पानी भी कोई  सोने की सुराइ में रखा जाता है! कहां गई मिट्टी की सुराइ? यह सोने की सुरई किस मूर्ख ने रख दी?" पास ही में खड़े महाकवि कालिदास ने कहा, "महाराज वह मूर्ख में ही हूं." महाकवि आप? इतनी  मूर्खता का काम आपने किया! महाराज ने आश्चर्य से कहा. महाकवि कालिदास बोलेक,"हां, महाराज मैंने सोने की सुराई वहां पर इसलिए रख दी है कि आपको सुंदर चीजें बहुत पसंद है. कल आपने मेरी भद्दी शकल के बारे में ऐसा ही कहा था कि वह सुंदर होनी चाहिए थी. तो कल मैंने मिट्टी की सुराही उठा ली और उसकी जगह सोने की सुराही रख दी." अब वह यह कह कर चुप हो गए.          


महाकवि कालिदास की बात महाराज विक्रमादित्य को समझ में आ गई. उन्होंने महाकवि से माफी मांगी.


 दरबारियों में कानाफूसी होने लगी, सभी को इस बारे में कुछ नहीं पता था. थोड़ी देर में महाराज की परमिशन लेकर महाकवि ने सारी बात दरबारियों को बताइ ,सब जोर जोर से हंसने लगे.


 सीख:  

 1 ) जरूरत के समय गुण ही काम आते हैं सुंदरता काम नहीं आती.


2) हमें किसी भी व्यक्ति या किसी भी वस्तु को उसके बाहरी रूप से कभी नहीं आंकना चाहिए. हो सकता है अच्छे दिखने वाली,सुंदर दिखने वाली चीज कुछ काम ना आए और भद्दी दिखने वाली चीज बहुत काम की हो!


3)" नेवर जज ए बुक बाय इट्स कवर" यह कहानी इस कहावत को भी अच्छी तरह से दर्शाती है.

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