बच्चों के लिए नैतिक कहानियां | बच्चों के लिए कहानियां सीखना | stories for kids

 

Bacchon ke liye naitik kahaniyan| three moral stories in Hindi


 
नैतिक कहानियां
कहानी 1 - दूसरों की मदद करो
कहानी 2 - ज्यादा कंजूसी मत करो
कहानी 3 - शेयरिंग इज केयरिंग



बच्चों के लिए नैतिक कहानी - चींटी और कबूतर 


आज की कहानी एक चींटी और कबूतर की है. जंगल में एक नदी थी उस नदी के किनारे पर एक पेड़ पर एक कबूतर रहा करता था.


 वहां पर रहने वाली चींटी अक्सर नदी किनारे से पानी पीया करती थी. ऐसे ही 1 दिन दोपहर में चींटी नदी के किनारे आई ताकि पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सके. उस समय कबूतर नदी के पास वाले अपने पेड़ पर ही बैठा हुआ था.



Bacchon ke liye naitik kahaniyan



कबूतर ने देखा कि पानी पीते हुए चींटी का संतुलन बिगड़ गया और वह अचानक नदी के पानी में गिर गई. चिटी को तैरना नहीं आता था इसलिए वह नदी के पानी में डूबने लगी और मदद के लिए पुकारने लगी.


 जब कबूतर ने जिस पेड़ पर बैठा था उस पेड़ से एक पत्ता तोड़कर चिटी फेंक दिया, जिस का सहारा लेकर चींटी उस नदी के पानी से बाहर आ गई और उसकी जान बच गई.जब चींटी पानी से बाहर आई तो उसने अपनी जान बचाने के बदले कबूतर को धन्यवाद कहा और दोनों अपने अपने काम के लिए चले गए.


कुछ दिन बीत गए, फिर उस जंगल में एक शिकारी आया जो अपने साथ धनुष बाण लेकर आया था जिससे वह पक्षियों को शिकार किया करता था. एक बार फिर चींटी अपनी प्यास बुझाने के लिए उस नदी के किनारे पर जा रही थी तब उसने देखा कि वह शिकारी अपने तीर से नदी के किनारे बने पेड़ पर बैठे कबूतर को निशाना बना रहा था.


 चींटी को यह समझने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी कि कबूतर की जान खतरे में है. चींटी तुरंत और शिकारी के पास थोड़ी और जब वह शिकारी तीर छोड़ने ही वाला था तभी चींटी ने उसके पैर पर काट लिया. चींटी के काटने ही शिकारी की दर्द से चीख निकल गई और उसका निशाना भी चूक गया. शिकारी की चीख सुनकर कबूतर भी सावधान हो गया और अपनी जगह से उड़ कर चला गया.


शिकारी के चले जाने के बाद कबूतर अपनी जगह वापस आया तो उसे पता चला कि उसकी जान चींटी ने बचाई है. कबूतर ने भी अपनी जान बचाने के बदले में उस चींटी का धन्यवाद किया. अब उठी और कबूतर अपनी पूरी जिंदगी भर के लिए अच्छे मित्र बन गए.


कहानी की सीख


दोस्तों, कैसी लगी एक छोटी सी कहानी? कहानी तो बहुत छोटी है मगर इसका संदेश बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण है. यह कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी में बड़े काम और किसी की की गई मदद कभी व्यर्थ नहीं होती. अच्छे कामों का फल हमेशा अच्छा ही मिलता है.इसलिए मेरे प्यारे दोस्तों जब भी मौका मिले अच्छे काम करने का तो हमें अच्छे काम करने चाहिए.



बच्चों के लिए नैतिक कहानी - कहानी एक कंजूस आदमी की


एक गांव में बाबूलाल नाम का एक बूढ़ा आदमी रहता था. उसका घर पुराना था और घर के आजू-बाजू एक साधारण सा बगीचा था. उसने अपनी जवानी में बहुत ज्यादा मेहनत करके बहुत सारा पैसा बचाया था. मगर वह कभी भी उन बचाए हुए पैसों में से जरूरत के समय या अपने आप पर खर्चा नहीं करता था.


बाबूलाल अपना सारा बचाया हुआ पैसा अपने घर के अंदर या बैंक में ना रख कर एक मटकी में भरकर अपने बगीचे में एक पेड़ के नीचे गाड़ कर रखता था ताकि वह उसे खर्चा ना करें. लेकिन उसको अपने पैसों को देखे बिना रात को नींद भी नहीं आती थी ! इसलिए वह हर रात सोने से पहले दबे पाव उस पेड़ के नीचे जहां पर उसने पैसों की मटकी गाड़ रखी थी वहां जाकर उससे निकालकर अपने सारे पैसे गिन था और फिर वापस वही पर गाड़ देता था.


1 दिन उस गांव में एक चोर आया वह चोर गांव में कई लोगों के यहां चोरी करने के बाद बाबू लाल के घर के पास आया. जब उस चोर ने बाबूलाल का घर और बगीचे की हालत देखी तो उसने सोचा कि यह तो बहुत गरीब आदमी का घर लग रहा है, यहां पर भला मुझे क्या मिलेगा? ऐसा सोचकर वह वहां से लौटने ही वाला था कि उसने देखा कि उस घर से एक बूढ़ा आदमी दबे पाव आ रहा है और पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर एक मटकी निकाल कर पैसे गिन रहा है.


इतना सारा पैसा एक साथ देख कर चोर खुश हो गया उसे तो जैसे लॉटरी लग गई. जब बाबूलाल वापस पैसे की मटकी उसी जगह पर गार्ड कर अपने घर के अंदर सोने के लिए चला गया तब उस दौर में वह मटकी वहां से निकाल ली और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया.


अगली रात को जब बाबूलाल अपना पैसे गिनने वाला नियम दोहराने आया तो उसने देखा कि उस गड्ढे में कोई मटकी नहीं थी और उसके सारे पैसे भी गायब थे. बाबूलाल के पैरों से जैसे जमीन खिसक गई वह जोर-जोर से चिल्लाने और रोने लगा. किसी ने मेरे जीवन भर की कमाई लूट ली. 


उसकी चिखे और रोने की आवाज सुनकर उसके पड़ोसी पड़ोसी उसके पास आ गए और उससे रोने का कारण पूछने लगे. जब गांव के लोगों ने उससे पूछा कि क्यों रो रहे हो तो उसने बताया कि मैं अपनी सारी बचाई हुई पूंजी यहां पर इस पेड़ के नीचे एक मटकी में दबा कर रखता था आज ना वह मटकी है ना वह पैसे.


जब लोगों ने यह बात सुनी तो सबको बड़ा आश्चर्य हुआ.उनमें से किसी एक गांव वाले ने बाबूलाल को पूछा कि तुम भला ऐसा क्यों करते थे? तुम अपने पैसों को तिजोरी में या बैंक में भी तो रख सकते थे. तब बाबूलाल ने उन्हें कहा कि मैं अपने पैसों को खर्च नहीं करना चाहता था और मैं उन्हें देखे बिना भी नहीं रह सकता था इसीलिए मैं उन्हें यहां बगीचे में गाड़ कर रखता था.


बाबूलाल का ऐसा जवाब सुनकर गांव में एक बुजुर्ग आदमी ने उसे कहा कि तुम अपने पैसों की जगह पर एक कंकरो की मटकी रखो और उसे हर रात गिन लिया करना और सोचना कि यह तुम्हारे पैसे हैं. क्योंकि जैसे यह कंकर किसी काम के नहीं है वैसे ही तुम अपने पैसों को भी किसी काम के नहीं समझते थे इसलिए उन्हें तुम खर्चा नहीं करते थे.


बाबूलाल को उस बुजुर्ग की बात सुनकर अपनी मूर्खता का एहसास हो गया. उसे यह सोच कर कि उसने अपनी बड़ी मेहनत से कमाई हुई जीवन भर की पूंजी को अपनी मूर्खता के कारण गवा दिया और भी ज्यादा दुख होने लगा.


 कहानी की सीख


दोस्तों पैसे बचाना कोई बुरी बात नहीं है. बचे हुए पैसे ही हमें मुसीबत के समय काम आते हैं. मगर जब खर्चा करने की बात आती है तब हमें पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि हम जो मेहनत करते हैं इसीलिए करते हैं कि जरूरत के समय हमें वह काम आ सके. वरना पैसे क्या है कागज़ के टुकड़े और धातु के टुकड़े ही तो है.


बच्चों के लिए नैतिक कहानी - एकता का महत्व

 यह प्यारी सी कहानी है और राजू और मम्मी की. वैसे तो राजू और मुन्नी भाई बहन थे मगर वह हमेशा लड़के रहते थे. वह हर चीज जो अपने मम्मी पापा या रिश्तेदारों से मिलती उनमें अपना अपना हिस्सा अलग कर लिया करते और तब भी एक दूसरे से लड़ते रहते थे कि मेरी चीजें ज्यादा अच्छी है, मेरी चीजें ज्यादा है.


अपने खिलौनों के विषय में भी उनका यही रवैया था. वैसे तो दोनों के पास कई सारे खिलौने थे मगर वह अपने अपने खिलौनों को एक दूसरे को हाथ भी ना लगाने देते थे. उनके माता-पिता उनके ऐसे बिहेवियर से परेशान थे और हमेशा चिंतित रहते थे कि इनको एकता के बारे में और शेयरिंग के बारे में कैसे समझाया जाए.


कुछ दिनों बाद राजू और मुन्नी के दादाजी उनके घर पर रहने आए. जब वह घर आए तो अपने साथ दो तेलिया भरकर मिठाइयां और खिलौने लाए थे. दादा जी जब राजू और मुन्नी पर कमरे में पहुंचे तो दोनों लड़ रहे थे जैसे ही उन्होंने दादाजी को देखा तो दोनों ने दादा जी के पास जाकर दादा जी के हाथ में पकड़ी हुई एक एक खिलौने और मिठाई की थैली ले ली और यह मेरी,यह मेरी ऐसा कह कर लड़ने लगे.


तब दादाजी ने उन्हें समझाते हुए कहा प्यारे बच्चों यह सारे खिलौने तुम दोनों के लिए ही है इन्हें मिल बांट के खेलो अपना अपना हिस्सा क्यों बांट रहे हो? तब राजू और मुन्नी ने एक साथ कहा एक साथ और यह वह भी इसके साथ कभी नहीं. दादाजी ने सोचा चलो बच्चे हैं सीख जाएंगे और आराम करने चले गए.


ऐसे ही कई दिन बीत गए दादा जी हर दिन देखा करते कि राजू और मुन्नी कभी भी एक साथ मिलकर नहीं खेलते थे और हमेशा लड़ते रहते थे. तब उन्होंने सोचा कि यह लोग ऐसे नहीं सीखने वाले मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.


एक दिन ऐसे ही राजू और मुन्नी अपने खिलौनों को लेकर बहस कर रहे थे के किसके पास ज्यादा खिलौने हैं?

राजू कहता मेरे पास ज्यादा है. मुन्नी कहती नहीं मेरे पास ज्यादा है. जब दादाजी उनके पास गई तो राजू और मुन्नी ने दादाजी से ही पूछा कि दादाजी आप ही बताइए किसके पास ज्यादा खिलौने हैं? दादा जी बोले वैसे तो तुम दोनों ही के पास कम खिलौने हैं मगर मेरे पास ऐसा जादू है जो तुम्हारे दोनों के खिलौने दोगुना कर सकते हैं!


दादाजी की बात सुनकर राजू और मुन्नी बहुत खुश हो गए और उत्सुक भी दादा जी कैसे हमारे खिलौने डबल कर देंगे !

दोनों ने दादा जी से कहा कि आप अपना जादू चला कर हमारे खिलौने डबल कर दीजिए. दादाजी ने दोनों को अपनी आंखें बंद करने के लिए कहा.जैसे ही दोनों ने अपनी अपनी आंखें बंद की दादाजी उनके पास गए और दोनों के खिलौनों को एक साथ मिला दिया.


जब दोनों ने अपनी अपनी आंखें खोली और अपने सारे खिलौने एक दूसरे के खिलौने में मिले हुए देखे तो दोनों गुस्सा हो गई और दादा जी से कहने लगे कि दादा जी आपने यह क्या कर दिया? तब दादाजी ने उनसे कहा बेटा अब यह तुम्हारे खिलौने मिक्स नहीं हुए बल्कि डबल हो गए हैं इन दोनों को इनमें से जो खिलोना पसंद आता है उनके साथ खेलो वापस एक साथ रख दो. तुम्हें यह पता होना चाहिए कि चीजें बांटने से कम हो जाती है और मिलने मिलाने से दोगुनी हो जाती है. एकता में कितनी बल है यह तो नहीं तुम्हारे कुल अंडों की संख्या देखकर भी पता चल रहा होगा.


राजू और मुन्नी को दादा जी की बात समझ में आ गई और उन्होंने शेयर करना भी सीख लिया अब वह दोनों तभी लड़ते भी नहीं थे.


कहानी की सीख


दोस्तों इस कहानी की सीख बड़ी सिंपल सी है. हम सालों से "शेयरिंग इज केयरिंग" जैसे कई वाक्य सुनते आते हैं जो हमें एकता का महत्व बताते है.

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