एक बार एक साधु और उनका शिष्य कड़ी तपस्या के बाद देश भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते करते साधु और उनका शिष्य एक गांव जा पहोचे। इस गांव में एक सेठ रहता था इसके पास धनधान्य की कोई कमी नहीं थी फिर भी ये सेठ हमेशा ज्यादा धन और धान्य पाने की लालच करता रहता।
साधु और उनका शिष्य यहां पर भ्रमण करते करते पहोचे और सेठ से विनती करते हुए कहा कि सेठ उन दोनों को एक रात के लिए आश्रय दे।
सेठ ने दोनों को देखा और मन ही मन सोचा कि, "यह दोनों गरीब लगते हैं इनसे मुझे कोई लाभ नहीं होगा" ऐसा सोचकर सेठ ने उन दोनों को मेहमानों के कमरे में ना भेज कर अपने खाली पड़ी घर के तहखाने में रहने के लिए जगह दी। तपस्वी साधु के पास दिव्य शक्तिया थी उन्होंने शेठ के मन की बात जान ली।
साधु और उनका शिष्य जब सेठ द्वारा दिखाई गई जगह पर रहने गए तब साधु ने देखा कि तहखाने की एक दीवार में छेद बना हुआ है तो साधु ने तुरंत उस दीवार को अपनी शक्ति से सही कर दिया । शिष्य ये सब देख रहा था उसे साधु का ऎसा करना सही नहीं लगा मगर वह कुछ नहीं बोला।
अगले दिन दोनों सुबह होते ही वहां से निकल पड़े पूरा दिन उस गांव में भ्रमण किया और जब फिर से अंधेरा होने लगा तब वे दोनों इस बार एक गरीब परिवार के घर गए। इस परिवार में पति, पत्नी उनका एक बच्चा और उनके पास एक बकरी थी। उनसे जब दोनोंने रात भर के लिए आश्रय मांगा तो गरीब परिवार ने उनका अच्छे से स्वागत किया उनके पास जो भी खाने के लिए था वह भी उनको खिलाया और सोने के लिए बिस्तर बिछा दिया।
अगले दिन सुबह साधु और उनका शिष्य जब नींद से उठे तब उन्होंने देखा की गरीब पति पत्नी और उनका बच्चा बकरी के पास बैठ कर रो रहे थे क्योंकि उनकी बकरी मर चुकी थी। साधु और उनका शिष्य उनको दिलासा देकर वहां से चले गए।
साधु और शिष्य जब उनके घर से थोड़ी दूर गए तब शिष्य ने साधु से कहा,"गुरु जी आपने अच्छा नहीं किया!
आपने उस लालची सेठ जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी उसके तहखाने की छोटे से छेद को भी सही कर दिया। और दूसरी तरफ उदार और बड़े दिल वाले उस गरीब परिवार जिन्होंने हमारी इतनी अच्छी खातिर दारी की आपने उनकी बकरी को ऐसे ही मर जाने दिया।"
तब गुरु ने शिष्य को समझाते हुए कहा," देखो बेटा हमेशा जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। उस सेठ के तहखाने में जिस दीवार में छेद था उस दीवार के पीछे एक बहुत बड़ा खजाना था। क्योंकी वह सेठ लालची था तो मैं नहीं चाहता था कि उसको यह खजाना मिले इसलिए मैंने उस दीवाल के छेद को बंद कर दिया। और कल रात को उस गरीब परिवार के घर यमदूत आए थे मेरे कहने पर उन्होंने उस परिवार के लोगों को तो कुछ नहीं किया मगर यमदूत कभी भी खाली हाथ नहीं जाते इसलिए वह उस बकरी की जान निकाल कर ले गए। अब तुम ही बताओ मैंने जो किया वह गलत था?"
शिष्य को जब सारी बात पता चली तो उसका सारा गुस्सा दूर हो गया और उसने अपने गुरु के पैर छूते हुए कहा कि गुरु जी मैं धन्य हो गया मुझे आप जैसा गुरु मिला।
दोस्तों इस कहानी की तरह ही हमें भी अपने जीवन में हमेशा यह शिकायत रहती है कि हमारे साथ कुछ भी अच्छा नहीं होता है मगर क्या पता जो हमारे साथ हो रहा है वह इसलिए हो रहा है कि उससे भी बुरा होने से टल जाए।
एक सवाल आपस
क्या आप भी यह बात मानते हैं कि अक्सर जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है ? आपका जवाब कमेंट में हम जरूर पढ़ेंगे!