कहानी भगवान का दोस्त | Hindi Moral Story

 संतोष एक मिडलेक्लास फैमिली का आदमी था।संतोष अपने नाम से काफी विपरीत स्वभाव का था क्योंकी उसे हमेशा लगता था कि भगवान ने उसका और हर मिडलकलास व्यक्ति का साथ कभी नहीं दिया और उन्हें हमेशा हर एक वस्तु के लिए जरूरत से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। संतोष अक्सर ही श्रीमंत लोगो का ऐशोआरम और उनके पास कीमती चीजे देख कर विचलित हो जाया करता था और उसके मन में भगवान के खिलाफ और भावना प्रबल हो जाती थी। 


भगवान का दोस्त - कहानी
www.hindi-kahaniya.in


1 दिन संतोष अपना काम खत्म करके अपने घर की ओर जा रहा था रास्ते में एक मंदिर आया इस मंदिर के बाहर एक छोटा सा लड़का, 8-10 साल का होगा, नंगे पैर धूप में गुब्बारे बेच रहा था। उसके हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज से साफ पता चल रहा था की कड़ी धूप में तपते हुए रस्ते पर उसके पैर जल रहे हैं, बावजूद इसके वह उसी जगह पर पैर बदल बदल कर गुब्बारे बेचने में लगा हुआ था।


 संतोष को उसकी परिस्थिति के बारे में यह अंदाजा लगाने में, कि वह दो वक्त की रोटी कमाने के लिए इतनी जल्दी सेहत कर रहा है, जरा सा भी वक्त नहीं लगा। इतनी ज्यादा लाचारी में भी ना ही यह बच्चा भीख मांग रहा है , नाही अपने पैरों को बचाने के लिए जूते चप्पल चुरा रहा है यह सोच कर उस बच्चे के प्रति उसको आदर की भावना आई। संतोष दौड़ा-दौड़ा नजदीकी जूतों की दुकान में गया और वहां से उस बच्चे के लिए नए जूते खरीद कर उस बच्चे के पास आया और उससे नए जूते पहनने के लिए कहा।


नए जूते देखकर उस मासूम बच्चे के आंखों पर और चेहरे पर एक अजब सी चमक आ गई। बच्चे ने संतोष से वह जूते दिए और उन्हें तुरंत पहन लिए और मुस्कुराते हुए संतोष को धन्यवाद कहां और साथ में उससेएक सवाल पूछा कि," क्या मैं आपसे एक सवाल कर सकता हूं अगर आप उसका सच सच जवाब दे तो?" "हां हां पूछो मैं जरूर जवाब दूंगा।", संतोष कहा।


बच्चा बोला, "आप भगवान है ना?" संतोष के चेहरे के हाव-भाव बदल गए उसने तुरंत कहा,"नहीं नहीं मैं भगवान नहीं और ना ही बनना चाहता हूं।"

"तब तो आप जरूर भगवान के बहुत अच्छे मित्र होंगे तभी तो मेरी प्रार्थना, जो मैं कई दिनों से भगवान को कर रहा था कि भगवान मुझे जूते दिला दो क्योंकि मेरे पैर बहुत जलते हैं उन्होंने सुन ली और आपको जूते लेकर मेरे पास भेज दिया।"


मासूम बच्चे की यह बात सुनकर संतोष का मन गेहरे विचार में डूब गया उसने सोचा सच ही तो है मेरे मन में अचानक इस बच्चे की मदद करने का विचार अपने आप तो आया नहीं होगा शायद भगवान ने ही इस बच्चे की मदद करने के लिए मेरे दिमाग में यह विचार डाला। और वैसे भी हम कितने भी चीजें इकट्ठा कर ले उन्हें हम साथ में लेकर तो जा नहीं सकते भगवान ने हमें दो रास्ते दिए हैं या तो

 1) इकट्ठा करो और उन्हें यहीं छोड़ कर जाओ या

 2) जरूरतमंदों को बांट दो।

इस छोटे से प्रसंग ने संतोष को जैसे आत्मज्ञान दे दिया उसने उस मासूम बच्चे की तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला हां मैं भगवान का ही मित्र हूं और उन्होंने ही मुझे भेजा है तुम्हें यह जूते देने के लिए! और वहां से अपने चेहरे पर बहुत बड़ी मुस्कुराहट लेकर अपने घर की ओर चल दिया।


कहानी कि सीख  :- गहरी बात


दोस्तों यह कहानी हमें सिखाती है कि इस वस्तुवादी(materialistic) दुनिया में सब कुछ नाशवंत हैं और हम यह भूल जाते हैं कि हम जब दुनिया छोड़कर जाएंगे तो अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं जाने वाले इसीलिए हमें जितना मिलता है उसमें हमें खुश रहना चाहिए और हम जितना दूसरों की मदद कर सकते हैं हमें करनी चाहिए।

Best hindi kahani sangrah 2022👇

Kahani sangrah


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने