दोस्तों भारत में भांति भांति के लोग रहते हैं और उससे भी विभिन्न तरह के त्योहार भारत में मनाए जाते हैं, हाल ही में जन्माष्टमी गई है और अब गणेश चतुर्थी आई है इसलिए आज की कहानी में हम गणेश जी के बारे में ऐसी विशेष छोटी-छोटी कहानियां जानेंगे जिनको हम अपनी अगली पीढ़ी को सुना कर अपनी परंपराओं के बारे में सच्चा ज्ञान उनको दे सके।
गणेश उत्सव में गणपति की मूर्ति की स्थापना हो रही थी। एक छोटा सा बालक अपने पिता के साथ यह घटना पहली बार देख रहा था। क्योंकि उसने आज से पहले कभी भी ऐसा कुछ नहीं देखा था उसके मन में काफी सारे सवाल थे।
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गणपति की मूर्ति को देखकर जो सबसे पहले बच्चे ने अपने पिता से सवाल पूछा वो ये था कि पापा यहां पर इतनी बड़ी हाथी की मूर्ति क्यों लाई गई है? और इस हाथी के तो हाथ पैर है, दूसरे हाथियों की तरह चार पैर क्यों नहीं है? पिता ने बच्चे को बड़े प्यार से समझाते हुए कहा कि," नहीं बेटा यह हाथी नहीं है हालांकि यह हाथी जैसे दिखते हैं मगर यह भगवान श्री गणेश की मूर्ति है।"
बच्चे ने फिर अपने पिता से पूछा कि," यह भगवान हाथी की तरफ क्यों दिखते हैं? बाकी भगवान तो अलग दिखते हैं।" बाप ने बेटे को समझाते हुए कहा पुरानो में जो कहानी है उसके हिसाब से शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काटने के बाद गुस्सा शांत होने पर अपनी भूल को सुधारते हुए एक हाथी का सिर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया था इसलिए वे ऐसे दिखते हैं।
लेकिन इसको अगर हम दूसरी तरह से देखें तो हाथी बहुत समझदार और इमोशनल प्राणी है।इंसानों के दिमाग से ज्यादा हाथी के दिमाग में 3 गुना न्यूरॉन्स होते हैं। हाथी कई अलग-अलग इंसानी भाषाएं समझ सकता है और कई तरह के टूल्स भी इस्तेमाल कर सकता है इसके अलावा ऐसी कई सारी अच्छी-अच्छी खूबियां हाथी में होती है इसीलिए हाथी जैसे दीखकर गणेश जी इन सब खूबियों का प्रतीक है।
बच्चे को यह सारी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा लेकिन उसके सवाल अभी खत्म नहीं हुए थे, गणेश जी के पेट की तरफ इशारा करके कहां कि पापा क्या गणेश जी बहुत ज्यादा खाते हैं? पापा थोड़े से मुस्कुराए और इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि, "गणेश जी को मोदक बहुत पसंद है मगर उनका पेट ढेर सारे मोदक खाने की वजह से बड़ा नहीं है उनका पेट इस बात का प्रतीक है कि वो क्रोध, मोह, माया और ऐसे कई विकार जो लोगों को विनाश की ओर ले कर जाते हैं उन्हें पचाने में कितने सक्षम हैं।"
बच्चे तो बच्चे होते हैं वह कब क्या पूछ लेंगे कोई नहीं जानता गणेश जी की मूर्ति को ध्यान से देख रहे बच्चे ने अपने पिता से पूछा, "पिता जी गणेश जी कितने मुस्कुरा रहे हैं क्या इन्हें कभी गुस्सा नहीं आता?"
बच्चे के प्रश्न का संतोषजनक उत्तर देना पिता का काम होता है पिता ने बच्चे को उत्तर देते हुए कहा कि," नहीं बेटा, चाहे इंसान हो राक्षस हो या भगवान गुस्सा तो सबको आता है।ये कहानी सुनो तुम्हे सब समझ में आ जाएगा।"
एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक यानी कि चूहे पर बैठकर कहीं पर जा रहे थे। गणेश जी तो इतने बड़े हैं और उनका वाहन मूषक बहुत छोटा है यह देख कर चंद्र उन पर हंसने लगा तब गणेश जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को गायब हो जाने का श्राप दे दिया। अपनी गलती का एहसास हो जाने पर चंद्र ने सच्चे मन से गणपति के चरणों में गिरकर उनसे माफी मांग ली। श्राप को वापस तो नहीं लिया जा सकता था मगर गणपति जी ने उसका एक उपाय निकालते हुए चंद्र को कहा कि तुम गायब जरूर हो जाओगे लेकिन धीरे-धीरे करके तुम फिर से दिखने लगोगे। गणपति जी इस बात का भी प्रतीक है कि जिसको गुस्सा करना आता है उसे माफ करना भी आना चाहिए।
गणपति जी के बारे में इतनी अच्छी और लॉजिकल बातें सुनकर बच्चे को बहुत मजा आ रहा था और उसका अपनी परंपराओं पर भी विश्वास पक्का होता जा रहा था लेकिन फिर भी एक सवाल उसके मन में था जो उसने अपने पापा से पूछ लिया।
बच्चे ने पूछा," पापा गणपति जी का एक दांत छोटा और एक दांत बड़ा क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर में पापा ने एक और कहानी सुनाइ...
कौरव और पांडवों का युद्ध खत्म होने के बाद महाभारत लिखने का काम महर्षि व्यास को दिया गया था। महर्षि व्यास ब्रह्मांड के सबसे बड़े महाकवि थे इसलिए उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो उनके काव्य को एकदम सही तरीके से समझ सके और जितनी गति से वह बोलेंगे उतनी गति से लिख पाए। सबको पता था कि यह काम गणपति जी से बेहतर कोई नहीं कर पाएगा इसलिए सबने गणपति जी को इस काम के लिए विनती की। गणपति जी एक शर्त पर यह काम करने के लिए राजी हो गए कि महर्षि व्यास रुकेंगे नहीं! महर्षि व्यास ने भी उनसे उलट शर्त लगाई कि अगर वह उनके किसी भी कविता का अर्थ नहीं समझ पाए तो वह लिखेंगे नहीं दोनों राजी हुए और महाकाव्य लिखना शुरू हुआ।
ब्रह्मांड के सबसे बड़े महाकवी और बुद्धि के देवता में जब शर्त लगी हो दृश्य क्या होगा आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं! महर्षि निरंतर बोलते गए और गणेश जी निरंतर लिखते गए लेकिन एक समय ऐसा आया उनकी लेखिका (pen) टूट गई मगर यह तो बुद्धि के देवता गणेश जी थे ऐसे ही हार थोड़ी मानते,उन्होंने एक क्षण भी विचार न किया और तुरंत अपना एक दांत तोड़ कर उससे पूरा महाकाव्य लिख डाला। महर्षि व्यास ने उन्हें प्रसन्न होकर एक दंत का नाम दिया। उनका टूटा हुआ एक दांत इस बात का प्रतीक है कि कैसे किसी भी बड़े से बड़े विघ्न को वह अपने बुद्धि से दूर करते हैं।
दोस्तो आशा करता हूं आपको गणेश जी के बारे में लिखी मेरी यह पोस्ट पसंद आएगी। हम डीजे में गाने चलाकर गणपति जी के आगे नहीं नाचेंगे तो चलेगा, हम लाउडस्पीकर में जोर-जोर से उनकी जय-जयकार नहीं करेंगे तो भी चलेगा लेकिन हमें अपनी परंपरा को अपने आने वाली पीढ़ी तक सही तरीके से पहुंचाना होगा इसी में गणपति जी की सच्ची भक्ति होगी।
