गौतम बुद्ध और आलसी आदमी की कहानी | Buddha story in Hindi
गौतम बुद्ध अपने ध्यान में बैठे थे कि वहां पर एक आदमी आया। ये आदमीअपने आलसीपने से बहुत ज्यादा परेशान था। आलसी आदमी गौतम बुध से बोला - महात्मा जी मेरी मदद कीजिए, मैं अपने आलस्य से बहुत ज्यादा परेशान हूं। आपही कोई उपाय बताइए जिससे मैं आलसीपन से छुटकारा पा सकूं।
गौतम बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा - पहले मुझे यह बताओ कि तुम्हें क्यों लगता है कि तुम आलसी हो?
आलसी आदमी बोला - सिर्फ मुझे नहीं, मेरे परिवार वालों को और मेरे आसपास के सभी लोगों को ऐसा लगता है कि मैं आलसी हूं।
गौतम बुद्ध ने फिर उससे पूछा - क्या तुम जानते हो आलस्य होता क्या है?
आलसी व्यक्ति बोला - नहीं मैं नहीं जानता किंतु मैं इतना जरुर जानता हूं कि आलस्य बहुत बुरी चीज है, इसकी वजह से मुझे बहुत नुकसान हुआ है जीवन में।
गौतम बुध बोले जिस परेशानी से तुम छुटकारा पाना चाहते हो पहले उसके बारे में पूरी जानकारी ले लोगे तो उससे छुटकारा पाना आसान हो जाएगा।
आलसी व्यक्ति बोला - भगवान,इतनी बुद्धि तो मुझ में नहीं है, आप ही मुझे इस समस्या के बारे में जानकारी दीजिए।
गौतम बुध बोले - आलस्य एक मानसिक अवस्था है, एक विचार है, जिसे जाने अनजाने में हम खुद ही जन्म देते हैं। आलस्य दो मूलभूत कारणों की वजह से ही जन्म लेता है। एक हैं शारीरिक और दूसरा मानसिक़।
शारीरिक कारणों में पहला कारण है 'गलत तरह का भोजन।' हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर को भोजन से ऊर्जा मिलती है और यह ऊर्जा सजीव चीजों से मिले तो अच्छी यानी कि प्राकृतिक रूप से जो हमें भोजन की वस्तुएं प्राप्त होती है उनसे अगर यह ऊर्जा मिले तो हमारा शरीर इससे अच्छी ऊर्जा प्राप्त करता है।
इससे उलट यदि हम निर्जीव वस्तुओं से ऊर्जा प्राप्त करते हैं तो यह हमें आलस्य की ओर ले कर जाती है।
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दूसरा कारण हमारी 'शारीरिक गतिविधिया' भी हमें आलस्य के चंगुल में फंसा सकती है। गौतम बुद्ध ने आलसी व्यक्ति को अपने शिष्यों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देखो इनके चलने, फिरने, बैठने के तरीकों में तुम्हें कुछ अलग नजर आ रहा है?
जब आलसी व्यक्ति कुछ समझ नहीं पाया तब गौतम बुद्ध ने उससे कहा - मेरे शिष्य जब भी बैठते हैं तो वे रीड की हड्डी को एकदम सीधा रखते हुए बैठते हैं। चलते हैं तो उनके दोनों पैरों के बीच अच्छे से संतुलन बना रहता है और जब वह सोते हैं तो उनका शरीर एकदम शिथिल रहता है ऐसा करने से उन्हें रात्रि में एकदम सही तरीके से नींद आती है।
आलसी व्यक्ति बोला - लेकिन नींद तो आलस्य का की एक स्वरूप है।
बुद्ध बोले - हां अगर उसे ज्यादा मात्रा में लिया जाए तो ।
बुद्ध ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा - नींद कम मात्रा में लोगे तो तुम्हें अगले दिन थकान महसूस होगी और ऐसा करने से ज्यादा आलस्य शरीर में आएगा। नींद ज्यादा लोगे तब भी यही परिणाम होगा इसीलिए नींद को ना ज्यादा ना कम एकदम सही मात्रा में लेना अति आवश्यक है।
आलसी व्यक्ति बोला हां यह तो मैंने भी अनुभव किया है।
बुद्ध बोले अब मानसिक कारणों के बारे में जान लो
मानसिक कारणों में सबसे पहले हैं 'हमारी पुरानी गलत धारणाएं।' अक्सर ऐसा होता है कि हम पहले जिन कामों में असफल हो चुके हैं हमारे अंदर ऐसी भावनाएं बन जाती है कि हम उस काम में हमेशा असफल होते रहेंगे जिस वजह से हमें उस काम को करने में आलस आता है।
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ऐसी धारणाओं से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय यह है कि हमें अपने मन को यह समझाना चाहिए कि पिछली बार हम जब उस काम में असफल हुए थे तो हम उसके बारे में जितना जानते थे अब हम उस काम के बारे में उससे ज्यादा जानते हैं क्योंकि असफल होने के बाद हम उससे काफी कुछ सीखे भी है।
बुद्ध बोले - दूसरा कारण है 'आलसी और कामचोर लोगों की संगत।' कई बार ऐसा होता है कि हम आलसी नहीं होते मगर जिनके साथ हम रहते हैं हम उन जैसे बनने लगते हैं । इससे छुटकारा पाने का उपाय बहुत सरल है कामचोर और अलसी व्यक्तियों से दूर रहो। ऐसे व्यक्तियों की संगत में रहो जो अपने काम को बड़ी लगन से करते हैं और तुम्हें कुछ सिखा पाए।
गौतम बुद्ध ने तीसरा कारण बताते हुए कहा - यह कारण आलस्य के लिए सबसे बड़ा कारण है, 'काम को कल पर टालते रहना' यह कारण इतना शक्तिशाली है कि किसी भी व्यक्ति को बर्बाद कर सकता है। इससे बचने का सबसे आसान उपाय यह है कि जो काम जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी कर दिया जाए।
गौतम बुद्ध ने आलसी व्यक्ति से एक सवाल पूछा - मान लो तुम किसी रेगिस्तान में फस गए हो और तुम्हें प्यास लगी है तो तुम क्या करोगे?
अलसी व्यक्ति बोला - मैं जल्दी ही रेगिस्तान के आस पास कोई गांव की तलाश करूंगा या ऐसी जगह की तलाश करूंगा जहां पर मुझे पानी मिल सके।
गौतम बुद्ध बोले - अगर तुम्हें काफी देर ढूंढने पर भी पानी ना मिले तब तुम क्या करोगे?
आलसी व्यक्ति बोला - मैं तब भी अपनी तलाश जारी रखूंगा क्योंकि ऐसी परिस्थिति में मेरे पास कोई और दूसरा विकल्प तो होगा ही नहीं।
गौतम बुद्ध बोले - बिल्कुल सही और यही है मानसिक स्तर पर आलस्य का चौथा कारण 'किसी भी निश्चित लक्ष्य का ना होना' यह भी आलस की ओर लेकर जाता है।
अब सुनो पांचवे कारण के बारे में गौतम बुद्ध बोले - सोचो, कि तुम्हारे पास काफी सारे सोने के दागिने है जो तुम्हें एक जगह से दूसरी जगह ले कर जाना है।
तुम चलते चलते थक जाते हो और किसी पेड़ के नीचे बैठ जाते हो और तभी तुम्हे दूर से तुम्हारी तरफ दौड़ कर आ रहे डाकू दिखाई देते हैं! तो क्या तब भी तुम आलस करके वहीं बैठे रहोगे? या ऐसी परिस्थिति में तुम वहां से उठकर दौड़ने लगोगे?
आलसी व्यक्ति बोला - जी मुझे वहां से दौड़ना ही पड़ेगा नहीं तो मेरी जान और सोने के दागीने दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।
बुद्ध बोले यानी कि तुम्हारे पास एक ठोस वजह होगी दौड़ने के लिए, यही है आलस्य का पांचवा कारण 'किसी भी काम के लिए ठोस वजह का ना होना।'
आलसी व्यक्ति महात्मा बुद्ध की बातों से संतुष्ट हुआ वह बोला - महात्मा जी मैं अब आलस्य के बारे में सब कुछ जान चुका हूं और अब मैं इन सभी कारणों पर काम करूंगा और अपने आलस्य को दूर भगा दूंगा।
दोस्तों, आशा करता हूं गौतम बुध और आलसी व्यक्ति की कहानी आपको अच्छी लगी होगी और इसे पढ़ने के बाद अब आप कभी भी जीवन में आलस नहीं करेंगे।
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