कहानी : सब्ज़ी खानेवाला शेर | Hindi kahani for kids
एक बार एक घने जंगल में एक सिंह रहता था। वह अभी-अभी किशोरावस्था (जवान) में आया था । यह सिंह बाकी के सिंहो से काफी अलग था। क्योंकि इसे दूसरे प्राणियों को मारकर खाना अच्छा नहीं लगता था।
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| Kahani for kids |
सिंह को दो मित्र थे एक था चीता और दूसरा था मगरमच्छ। सिंह को इनके साथ खेलने में काफी मजा आता था मगर जब यह दोनों अपने से कमजोर और छोटे प्राणियों को मार कर खाते तब उसको अच्छा नहीं लगता था।शेर अपने आप को फल और सब्जियां खाकर भी सरवाइव करना सिखा लिया था।
जब जब सिंह के दोनों मित्र चीता और मगरमच्छ उसको फल और सब्जियां खाते देखते तो उस पर बहुत हंसते थे। वे दोनों सिंह को हमेशा छोटे और कमजोर जानवर का शिकार करके उसे खाने के लिए कहते थे। मगर सिंह उनकी बात नहीं मानता था।
एक बार मगरमच्छ और चीता सिंह के पास चले गए। उसका बहुत ज्यादा मजाक उड़ाने लगे कि वह तो किसी काम का नहीं है और वह घास फूस खा कर अपना जीवन बिता रहा है। वह अपनी प्रजाति के नाम पर एक बहुत बड़ा कलंक है। वे दोनों उसका तब तक मजाक उड़ाते रहे जब तक वह बेचारा रोने नहीं लगा।
बेचारा सिंह अपने दोनों दोस्तों से खुश नहीं था और ना ही अपने आप से।
एक दिन उसने तय किया कि वह अब छोटे और कमजोर प्राणियों का शिकार करके यह साबित कर देगा कि वह भी अपनी प्रजाति के बाकी के शेरों की तरह एक सच्चा शेर है। और ऐसा कर देने के बाद उसके दोस्त भी उसका मजाक नहीं उड़ाएंगे।
फिर उस दिन शिकार करने के लिए निकल पड़ा। कई घंटों तक इधर-उधर छोटे जानवरों की तलाश करता रहा मगर उसे कोई भी नजर नहीं आया। आखिरकार 3 घंटे बाद उसको एक खरगोश दिखा। खरगोश के पास जाकर उसको खाने के लिए जब उसने मुंह खोला तो उसने देखा कि खरगोश बिल्कुल भी अपनी जगह से हिल नहीं रहा है।
सिंह ने थोड़ी देर के लिए उसको खाने का विचार साइड रखते हुए खरगोश को ध्यान से देखा। खरगोश को पैर में चोट लगी हुई थी और वह सो भी रहा था इसी वजह से सिंह के करीब आने पर भी वह अपनी जगह से नहीं हिला।
शेर ने थोड़ा करीब जाकर खरगोश को अपने पांव से थोड़ा सा हीलाया। जैसे ही खरगोश की आंख खुली वो शेर को अपने पास देख कर डर के मारे भागने की कोशिश करने लगा। पैर में चोट लगने की वजह से बहुत ज्यादा तेज भाग नहीं पा रहा था । उसको मन में ख्याल आया कि आज उसका आखिरी दिन है क्योंकि वह शेर से तेज तो कभी भी भाग नहीं पाएगा।
खरगोश ने भागते भागते अपने पीछे देखा तो शेर वही अपनी जगह पर खड़ा था वह खरगोश का पीछा नहीं कर रहा था। खरगोश को ये देखकर बड़ा अचरज हुआ उसने भागना बंद कर दिया! और शेर को पूछा तुम मुझे मार कर नहीं खाओगे क्या?
शेर ने जवाब दिया मैं छोटे और कमजोर प्राणियों को नहीं मारता मुझे अच्छा नहीं लगता! खरगोश खुश हो गया उसने सोचा इस शेर के साथ मुझे कोई खतरा नहीं है। खरगोश ने शेर के पास जाकर उसे कहा क्या हम दोस्त बन सकते हैं?
शेर ने मन ही मन सोचा मैं अपने दोस्तों की वजह से अपना स्वभाव बदल दु इससे अच्छा है मैं अपने स्वभाव की वजह से अपने दोस्त ही बदल देता हूं। और शेर ने खरगोश से दोस्ती कर ली।
कहानी की सीख (moral of the story)
दोस्तों अगर हम बाकी लोगों से अलग है तो उसमें कोई बुराई नहीं है। किसी के भी कहने से हमें अपने अंदर की अच्छी आदतों को बदलना नहीं चाहिए।
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