स्वार्थी साधु की कहानी | hindi moral Story
दो साधु भारत यात्रा कर रहे थे। वो कई दिनों से देश के अलग अलग धर्मस्थनों पर दर्शन लेने के बाद अब हिमालय की ओर जा रहे थे।
रास्ते में जो भी गांव पड़ते वो वहा से भिक्षा मांगते और आगे बढ़ जाते थे।
उनको किसी ने भिक्षा में बहुत स्वादिष्ट लड्डू दिए थे जो उन्होंने अपने झोला में रखे थे। उन में से एक साधु मन का थोड़ा चंचल था उसका ध्यान बार बार उस झोले की और आकर्षित हो रहा था। उसे उन लड्डुओ को खाने की बड़ी मंन्शा हो रही थी लेकिन वो ये बात दूसरे साधु को कैसे कहता क्योंकि वो जनता था की साधु का मतलब ही होता है जो किसी भी वस्तु का मोह न करे।
काफी देर चलने के बाद शांत साधु ने एक जगह पर ठहर कर थोड़ा ध्यान लगाने का तय किया। इस बात से चंचल साधु को भी उन लड्डूओ को कैसे खाया जाए ये सोचने का मौका मिल गया।
एक पेड़ के पास रुक कर उन्होंने वह झोला पेड़ पर टांग दिया और ध्यान लगाने बैठ गए। लड्डूओ के मोह में फसे चंचल साधु बिल्कुल भी ध्यान में मन नहीं लगा और काफी देर तक अपने मन से लड़ने के बाद उसने झोला उतारकर उसके अंदर के सारे लड्डू खा लिए।
जैसे ही ध्यान खत्म हुआ उन्होंने एक दूसरे का अनुभव साझा किया।
पहला साधु बोला जैसे ही मैं ध्यान में बैठा मैं ब्रह्मलोक गया ब्रह्मा जी से मिला, विष्णु लोक गया विष्णु जी से मिला और कैलाश जाकर शंकर जी से भी मिला। मुझे बहुत आनंद आया अब तुम बताओ तुमने क्या देखा?
चंचल साधु कैसे बताता की वो ध्यान में बैठा ही नही और दोनो के हिस्से के लड्डू वो अकेला ही खा गया इसलिए उसने एक मा घड़त कहानी बनाकर शांत साधु को सुनाई ।
चंचल साधु निराश होते हुए बोला - मेरे साथ अच्छा नहीं हुआ! जैसे ही मैं ध्यान में बैठा हनुमानजी मेरे सामने प्रकट हुए और उन्होंने जबरदस्ती मुझे झोला उतारकर सारे लड्डू खाने के लिए कहा तो मुझे खाने पड़े!
ये सुनकर शांत साधु बोला - तो तुमने मुझे तब क्यों नहीं बुलाया?
चंचल साधु बोला कैसे बुलाता तुम तो तीनो लोक में भ्रमण कर रहे थे।
कहानी की सिख
दोस्तो ये चंचल साधु हमारे आसपास रहने वाले उन स्वार्थी लोगो का प्रतीक है जो हमारे आसपास ही रहते है, मीठी वाणी बोलते है और मौका मिलने पर हमारा हक का भी छीन लेते है। ऐसे लोगो को पहचानिए और उनसे दूरी बना लीजिए।
