मेरी झूठी माँ- एक भावुक कहानी | sentimental story in Hindi

 मेरी झूठी माँ - एक भावुक कहानी | sentimental story in Hindi 


ये कहानी तब शुरू हुई जब मैं बच्चा था।  मैं एक गरीब परिवार के बेटे के रूप में पैदा हुआ था।


एक भावुक कहानी | sentimental kahani | मा की कहानी


 खाने के लिए भी हमें अक्सर भोजन की कमी हो जाती थी।  जब भी खाने का समय होता, माँ अक्सर मुझे अपने हिस्से का खाना दे देती थी।  जब वह मेरे कटोरे में अपना चावल निकाल रही होती, तो वह कहती थी, "यह चावल खा लो बेटा।  मुझे भूख नहीं है"।


 वह था माँ का पहला झूठ।


 जब मैं बड़ा हो रहा था,मैंने ये देखा था कि मेरी मा दृढ़ निश्चयी हैं। हमारे घर के पास एक नदी थी उसमे कई लोग मछलियां पकड़ा करते थे। अपने खाली समय में मा मछली पकड़ने के लिए चली जाती, उसे उम्मीद थी कि उसे जो मछलिया मिलेंगी वह मुझे मेरे विकास के लिए थोड़ा सा पौष्टिक भोजन दे सकती है।


 मछलीया पकड़ने के बाद, वह मछलियों से एक ताजा मछली का सूप बनाती थी, जिससे मेरी भूख बढ़ जाती थी।  जब मैं सूप खा रहा होता, तो माँ मेरे पास बैठ जाती और बचा हुआ मछली का मांस खाती, जो अभी भी उस मछली की हड्डी पर चिपका होता जिसे मैंने खाया नहीं होता।


जब में उन्हें अपनी थाली में से मछली खाने को केहता तो वो कहती उसे ऐसे ही हड्डियों पर चिपका मांस ही पसंद हैं।


 वह था माँ का दूसरा झूठ।


फिर, जब मैं जूनियर हाई स्कूल में था, मेरी पढ़ाई के लिए पैसे देने के लिए, माँ ने एक छोटी कंपनी में काम करना शुरू किया।

इस काम से उसे हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ पैसे मिलने लगे।  फिर सर्दीया आई, एक रात मै अपनी नींद से उठा और अपनी माँ को देखा जो अभी भी जाग रही थी, एक छोटी सी मोमबत्ती की रोशनी में कंपनी से कुछ काम घर लाकर करती थी।  मैंने कहा, "माँ, सो जाओ, देर हो चुकी है, कल सुबह तुम्हें  काम पर भी जाना है।"  माँ मुस्कुराई और बोली, "सो जाओ, बेटे।  मैं बिल्कुल थकी नहीं हूं और वैसे भी मुझे काफी देर से नींद आती है।"


 वह था माँ का तीसरा झूठ। 


मेरी अंतिम परीक्षा के समय, माँ ने मेरे साथ चलने के लिए अपने काम से छुट्टी माँगी।  जब दिन चढा और सूरज की तपिश बढ़ने लगी थी, तो कई घंटों तक तेज धूप में मेरी दृढ़ माँ ने सूरज की चमकती गर्मी में मेरा इंतजार किया।


 जैसे ही घंटी बजी, जिसने संकेत दिया कि अंतिम परीक्षा समाप्त हो गई है, माँ ने तुरंत मेरा स्वागत किया और मुझे एक ठंडी बोतल में एक गिलास लस्सी पिलाई जो उसने पहले से मेरे लिए तैयार की थी।


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 बहुत गाढ़ी लस्सी लेकिन मेरी माँ के प्यार से ज्यादा  गाढ़ी नहीं ! अपनी माँ को पसीने से लथपथ देखकर मैंने तुरंत उसे अपना गिलास दिया और उसे भी पीने के लिए कहा।  माँ ने कहा “पियो बेटा। मुझे बिल्कुल प्यास नहीं है"।


वह था माँ का चौथा झूठ।


 बीमारी के कारण मेरे पिता की मृत्यु के बाद, मेरी गरीब माँ को एकल माता-पिता के रूप में अपनी भूमिका निभानी पड़ी।  अपनी पूर्व नौकरी पर रहकर, उसे हमारी जरूरतों को अकेले ही पूरा करना था।


 हमारे परिवार का जीवन अधिक जटिल था।  बिना कष्ट के दिन नहीं।  हमारे परिवार की हालत बद से बदतर होती देख एक सज्जन आदमी था जो मेरे घर के पास रहता था, वो हमारी मदद के लिए आया, वो छोटी या बड़ी समस्याओं मे हमेशा हमारा साथ देता।


 हमारे बगल में रहने वाले हमारे अन्य पड़ोसियों ने देखा कि हमारे परिवार का जीवन कितना दुर्भाग्यपूर्ण था, वे अक्सर मेरी माँ को फिर से शादी करने की सलाह देते थे।  लेकिन माँ, जो जिद्दी थी, उसने उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया, उसने कहा, "मुझे प्यार की ज़रूरत नहीं है।"


 वह था माँ का पाँचवाँ झूठ।


जब मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर नौकरी पा ली, तो मेरी बूढ़ी माँ के सेवानिवृत्त होने का समय आ गया था।  लेकिन वह ऐसा नहीं चाहती थी।  वह हर सुबह ईमानदारी से बाजार जाती ताकि सब्जी बेचकर अपनी जरूरतों को पूरा कर सके।


 मैं, जो दूसरे शहर में काम करता था, अक्सर उसकी ज़रूरतों को पूरा करने में उसकी मदद करने के लिए उसे कुछ पैसे भेजता था, लेकिन वह पैसे न लेने की जिद्द करती। वो मुझे पैसे भी वापस भेज दिया करती।  मा कहती "मेरे पास पर्याप्त पैसे है।"


 वह माँ का छठा झूठ था।


 स्नातक की डिग्री से स्नातक होने के बाद, मैंने फिर अपनी पढ़ाई मास्टर डिग्री तक जारी रखी।  मैंने डिग्री ली, जिसे एक कंपनी द्वारा स्कॉलरशिप के माध्यम से अमेरिका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से वित्त पोषित किया गया था।  मैंने आखिरकार एक बड़ी कंपनी में काम किया। काफी उच्च वेतन पाया, मैंने अपनी मां को अमेरिका में अपने जीवन का आनंद लेने के लिए ले जाने का इरादा जाहिर किया।  लेकिन मेरी प्यारी माँ अपने बेटे को परेशान नहीं करना चाहती थी, उसने मुझसे कहा "मुझे इसकी आदत नहीं है,में वहा नहीं रह पाऊंगी,मेरा मन नहीं लगेगा वहां।"


 वह था माँ का सातवाँ झूठ।


वृद्धावस्था में प्रवेश करने के बाद, माँ को पेट का कैंसर हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।  मैं, जो मीलों दूर और समुद्र के उस पार रहता था, सीधे अपनी प्यारी माँ से मिलने घर गया।


 ऑपरेशन के बाद वह बिस्तर पर कमजोरी के कारण लेटी हुई थी।  माँ, जो इतनी बूढ़ी लग रही थी, गहरी तड़प से मुझे देख रही थी।  उसने अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरने की कोशिश की लेकिन बीमारी के कारण वो ऐसा कर नहीं पा रही थी।


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 देखते ही स्पष्ट हो गया था कि बीमारी ने मेरी मां के शरीर को कैसे तोड़ दिया, इस लिए वह इतनी कमजोर और पतली लग रही थी।  मैंने अपने चेहरे पर बहते आँसुओं के साथ अपनी माँ को देखा।  माँ को उस हालत में देखकर मेरा दिल आहत हुआ, इतना कि मै बता भी नहीं सकता।  लेकिन माँ ने अपनी पूरी ताकत से कहा, "रो मत, मेरे बच्चे।  मुझे दर्द नहीं हो रहा है।''


 वह था मा का आंठवा झूठ।


अपने जीवन का ये आखरी झूठ बोलने के बाद मा ने हमेशा के लिए अपनी आंखे बंद कर ली।

मेरी मा और उसके सभी झूठ हमेशा मेरे दिल में रहेंगे।


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