ईमानदार माजी ... एक दिल को छू जाने वाली इमोशनल कहानी| emotional story
डॉक्टर रवि ओपीडी के काम में व्यस्त थे। वो हर दिन 100 से भी ज्यादा बीमार बच्चों (पेशेंट्स) को रोजाना मिलते थे। वो इस काम को किसी मशीन की तरह हर दिन किया करते।
उनके सहायक ने उनके चेंबर में आकर उन्हें बताया," दो औरते एक बच्चे को लेकर आई है,बच्चा सांस भी बड़ी मुश्किल से ले पा रहा है।आप कहे तो उन्हे अंदर भेजूं?"
डॉक्टर ने हां में सर हिलाया। एक बूढ़ी औरत और एक जवान औरत डॉक्टर के चेंबर में आई। बूढ़ी औरत ने अपने हाथों में एक डेढ़ साल का बच्चा पकड़ रखा था। दोनों के मटमैले कपड़े और शारीरिक हालात देखकर डॉक्टर ने उनकी आर्थिक परिस्थिति को समझ लिया।
डॉक्टर ने इशारे से दोनों को अपने टेबल के पास वाली खुरचीयो पर बैठ ने को कहा। डॉक्टर ने पूछा," बताइए मा जी क्या हुआ है बच्चे को?"
माजी बोली," 3 दिनों से मेरे बच्चे को जुकाम हो रखा है और आज तो बड़ी मुश्किल से सांसे ले पा रहा है। साहेब देखिए जरा बड़ी तकलीफ में है मेरा लाल।"
डॉक्टर ने बच्चे पर ढके मेले कपड़े के टुकड़े को हटाकर देखा तो एक कुपोषण के कारण बहुत ही कमजोर, बिल्कुल हड़पिंजर सा छोटा बच्चा डॉक्टर को दिखा। बच्चे की आधी आंखे खुली थी, हाथ और पैर के नाखून भी सफेद पड़ चुके थे फेफड़ों में तरल भरने की वजह से सांस लेने में तकलीफ ये सभी लक्षण निमोनिया के थे।
डॉक्टर ने माजी से कहा," देखिए माजी, बच्चे की हालत बहुत गंभीर है। उसे तुरंत शहर के बड़े सरकारी अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ेगा। हो सकता है वहां पर उसे स्वास के मशीन की जरूरत पड़े, वह मेरे पास नहीं है लेकिन उस अस्पताल में है। आप इसे तुरंत वहां पर ले जाइए।"
माजी ने थोड़ा हिचकी चाहते हुए कहा,"हमें तो लगा था हम दवाई लेंगे और घर वापस लौट जाएंगे इसलिए हम घर से सिर्फ ₹300 लेकर चले थे जिसमें से ₹80 तो भाड़ा में ही खर्च हो गए हैं अब कैसे.."
डॉक्टर ने पहले ही उनको देखकर अंदाजा लगा लिया था उनकी समस्या क्या हो सकती है।"आप चिंता मत कीजिए माजी! जहां मैं आपको भेज रहा हूं, वह सरकारी दवाखाना है और वहां पर गरीब लोगों का अच्छे से इलाज किया जाता है। आप ज्यादा मत सोचिए और यह लीजिए... आप तुरंत जितनी जल्दी हो सके उस दवाखाने पहुचिए।" डॉक्टर ने अपने जेब से ₹500 निकाल कर माझी की तरफ पढ़ाते हुए कहा।
माजी ने डॉक्टर से पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा," मैं आपसे यह पैसे नहीं ले सकती। उल्टा मुझे आपको पैसे देने चाहिए.. आप फिकर मत कीजिए। हम अभी बस स्टेशन पर जाते हैं, वहां पर किसी से संदेशा भिजवाते हैं। इस बच्चे का बाप कुछ ना कुछ करके पैसों का इंतजाम कर लेगा।"
डॉक्टर को मांजी का ऐसा व्यवहार देखकर काफी अचरज हुआ क्योंकि उन्होंने कई ऐसे लोगों को देखा था.. जो किसी भी बहाने से पैसे छीनने को तैयार रहते हैं और यह गांव की गरीब माजी है जिन्हें इन पैसों की इतनी सख्त जरूरत है फिर भी पैसे लेने से मना कर रही है!
"देखिए माजी समझने की कोशिश कीजिए! बच्चे की हालत बहुत गंभीर है। आप बस स्टॉप तक जायेंगी, संदेशा भिजवाएंगी। बच्चे का बाप कहीं से पैसों का इंतजाम करेगा इन सब में काफी देर हो जाएगी और आपका बच्चा इस स्थिति में नहीं है कि ज्यादा देर बर्दाश्त कर सके। हो सकता है थोड़े ही सही आपसे बाहर से कुछ दवाएं या इंजेक्शंस मंगवाए जाए तब आपको इन पैसों की जरूरत पड़ सकती है अब ज्यादा सोचने में समय ना गवाइए। और भी पैसों की जरूरत पड़े तो हिचकी चाहिएगा नहीं मेरे पास आ जाइएगा" डॉक्टर ने कहा।
दोनों ही औरतें पैसा लेना नहीं चाहती थी लेकिन उनकी मजबूरी थी या फिर बच्चे की बिगड़ती हालत उन्होंने बेमन से पैसे ले लिए और अस्पताल की तरफ रवाना हो गए।
डॉक्टर रवि फिर से अपनी उसी मशीनी दिनचर्या में लग गए। 3 दिन बाद उनका सहायक फिर से उनके चेंबर में आया और डॉक्टर से कहने लगा,"सर एक बूढ़ी औरत आपसे मिलना चाहती है।"
डॉक्टर ने कहा,"तो तुमने उन्हें नहीं बताया कि मैं बच्चों का डॉक्टर हूं।"
सहायक ने कहा," नहीं सर आप समझे नहीं! आपको याद होगा कुछ दिनों पहले दो औरते एक बच्चे को लेकर आपके पास आई थी। बच्चे की हालत बहुत खराब थी उन्हीं दो औरतों में से एक है।"
डॉक्टर रवि अपने रोज के बिजी शेड्यूल के चलते इस बात को कब का भुला चुके थे। सहायक के बताने पर उन्हें याद आ गया और उन्हें लगा कि शायद उन्हें और पैसों की जरूरत पड़ी होगी इसलिए आई होंगी। उन्होंने उस माजी को अंदर भेजने के लिए कहा।
मा जी चेंबर में आई डॉक्टर ने उनसे बच्चे का हालचाल पूछा। माझी ने अपने हाथ में रखे 500 के नोट को डॉक्टर के सामने बढ़ाते हुए कहा,"यह लीजिए साहब आपके रुपैये। इसमें से ₹1 भी दवाइयों के लिए इस्तेमाल नहीं हुआ। अस्पताल में पहुंचते ही बच्चे ने दम तोड़ दिया था! उस दिन तो हम लाश लेकर घर चले गए थे और आज जब अंतिम संस्कार हो गया है तो आपके पैसा लौटाने आ गई हु।"
बूढ़ी मां जी की बात सुनकर डॉक्टर अचंभित रह गए। वह सोचने लगे कि क्या इस कलयुग में भी ऐसे लोग अभी भी जिंदा है। और शायद यही लोग हैं जिनकी वजह से धरती मां इतना पाप होने के बावजूद सब को मजबूती से थामे हुई है।
डॉक्टर ने माजी से कहा,"माजी आपको यह थोड़े से पैसे लौटाने के लिए धक्का खाते हुए इतना दूर आने की आवश्यकता नहीं थी। और मैं कहां देख रहा था कि आपने पैसे दवाइयों में खर्च किए या नहीं।"
"आप नहीं देख रहे थे लेकिन मेरा भगवान तो देख रहा था!" माझी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा और पैसे डॉक्टर के टेबल पर रख कर चली गई।
झुकी हुई पीठ के साथ चलती बूढ़ी माजी को देखकर डॉक्टर के दिल में फिर खयाल आया
' पढ़े-लिखे भ्रष्टाचारी लोग जो ईमानदारी की बातें करते हैं उनका बोझा गांव देहात के इन अनपढ़ लेकिन सच्चे ईमानदार लोग उठाते हैं इसलिए वो झुक गए है!'
दोस्तों, इमानदारी पर दिल छुने वाली यह कहानी हमें सिखाती है की पेट भरे होने पर भगवान की भक्ति और ज्ञान की बाते जैसे कोई भी कर सकता है वैसे ही पैसों के होने पर ईमानदारी की बातें करना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तब है जब आपके पास सभी चीज वस्तुओं की कमी हो और फिर भी आप अपनि नैतिकता पर अड़े रहे।

Aɴᴜ
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