आज की कहानी जिसका टाइटल है ' बहू या नौकरानी...एक दर्दभरी कहानी ' आपको कुछ जानी पहचानी लग सकती हैं क्योंकि ये कहानी एक ऐसी औरत की है जिसे उसके परिवार और पति के घर में ही किसी नौकरानी की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ता है। जानी पहचानी इसलिए क्योंकि हमारे देश में यही कहानी हर दूसरी महिला की है इसलिए एकबार इस कहानी को पूरा पढ़े।
बहू या नौकरानी...एक दर्दभरी कहानी | very emotional story
पूरे 4 साल बाद हेमंत कैनेडा से लौटा था। कैनेडा में एक ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनानेवाली कंपनी के लिए हेमंत काम करता था। हेमंत अपने देश अपने घर लौटकर काफी खुश था।
एयरपोर्ट पर उतरे ही हेमंत की नजरे अपने परिवार वालो को खोजने लगीं। जल्दी ही उसे अपने मां बाप,भाई भाभी ,बड़ी बेहन और खुदकी 3 साल की बच्ची भी एयरपोर्ट पर खड़े नजर आई लेकिन उसकी नजरे शोभा को खोज रही थी। वो सोचने लगा ये शोभा मुझे मिलने आई क्यों नहीं और ऊपर से उसने हमारी छोटी सी बच्ची को भी यहां भेज दिया!
अश्विन एयरपोर्ट पर सबसे हसी खुशी मिला। फिर उसने शोभा के बारे में पूछा तो उसकी दीदी बोल पड़ी..,"भाई वो घर पर ही है , तुम्हारे लिए खाना तैयार कर रही है। वह तो आज ही तुम्हारे आने की खुशी में काम करने लगी है वरना वो कोई काम करती कहा है?"
अश्विन ने अपनी बेटी को प्यार से उठा लिया लेकिन उसकी बेटी उसे देख कर रोने लगी।" लाओ मुझे दो बच्ची को वह तुम्हें काफी दिनों बाद देख रही है ना इसलिए पहचान नहीं पा रही होगी।" कहते हुए दीदी ने बच्ची को अपने पास ले लिया।
सभी टैक्सी में बैठकर अपने घर की तरफ रवाना हुए। अश्विन अपने परिवार से मिलकर खुश था लेकिन ये बात की शोभा उसे एयरपोर्ट पर मिलने नहीं आई उसे काफ़ी परेशान कर रही थी। वो सोचने लगा," कया खाना बनाना इतना ज्यादा जरूरी था? मुझसे मिलने से भी ज्यादा और वो भी तब जब मैं 4 साल बाद वापिस आया हूं!"
इन्ही खयालों में घर तक का आधा रास्ता बीत गया। अब उसकी बच्ची उसे देखकर रो नही रही थी इसलिए अश्विन उसके साथ खेलने लगा। बाकी का आधा रास्ता भी खत्म हुआ और सब घर पहुंच गए।
गाड़ी की आवाज सुन शोभा बालकनी में आकर खड़ी होगाई और अश्विन की तरफ देखने लगी। अश्विन भी जैसे ही गाड़ी से उतरा उसने पहले दरवाजे की तरफ और बाद में बालकनी की तरफ नजरें घुमाई जैसे वह सुबह को ही देखना चाहता हों। अश्विन से नजरें मिलते ही शोभा के चेहरे पर मुस्कान झलक पड़ी अश्विन भी उसे देखकर हल्के से मुस्कुरा दिया।सभी घर के अंदर गए, शोभा सबके लिए पानी लेकर आई और सभी को पानी देने के बाद फिर से किचन में चली गई चाय बनाने के लिए। थोड़ी देर तक सभी परिवार वालों से बातें करने के बाद अश्विन शोभा को बुलाने लगा। मां ने उसे बीच में टोकते हुए कहा," रहने दो उसे किचन में! थोड़ा काम कर लेने दो बाद में अपने आप आ जाएगी। तुम बैठो यहां मेरे पास वैसे भी कहां ज्यादा काम करती है वह!"
अश्विन यही बात दूसरी बार शोभा के बारे में सुन रहा था। अब उसने सोचा कि मेरे परिवार वाले मुझसे झूठ थोड़ी बोलेंगे, हर दिन नहीं होता होगा उसको इतना काम आज थोड़ा सा है करने देते हैं। मैं बाद में उससे बात कर लूंगा।
अश्विन अपने परिवार वालों से बातचीत में मगन हो गया। एक के बाद एक रिश्तेदार और पड़ोसी अश्विन को मिलने आते रहे और शोभा को किचन से बाहर निकलने का समय ही नहीं मिला। सभी के लिए चाय बनाना नाश्ता बनाना यही करते-करते शाम हो गई। शाम होते ही अकेली शोभा इस बड़े से परिवार का खाना बनाने में जुट गई। 2 घंटे बाद सभी परिवार वाले खाना खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे सिवा शोभा के।
अश्विन चाहता था कि शोभा भी उसके साथ बैठकर खाना खाए लेकिन फिर मां ने कहा अगर वह भी खाना खाने बैठ जाएगी तो सबको परोसेगा कौन? सभी के खाना खाने के बाद शोभा ने अकेले खाना खाया।
रात को सोने के वक्त अश्विन और शोभा अच्छे से मिल पाए। अश्विन शोभा के साथ काफी बातें करना चाहता था लेकिन वह उसके चेहरे पर थकान और नींद अच्छे से देख सकता इसलिए उसने शोभा को परेशान ना करने का फैसला किया और उसे सोने दिया। शोभा सोने ही वाली थी कि उसकी छोटी बच्ची रोने लगी तो शोभा तुरंत उठ कर उससे दूध पिलाने के लिए चली गई।
अश्विन कब सो गया उसे पता ही नहीं चला। जब सुबह बच्ची की रोने की आवाज आने लगे तो अश्विन उठा और शोभा को पुकारने लगा। जब शोभा पास नही दिखी तो उसने बच्ची को चुप कराया और फिर से सुला दिया। अश्विन बाद में शोभा को देखने लगा तो शोभा उसे फिर से किचन में मिली जो सुबह सुबह ही जल्दी उठकर घरवालों के चाय नाश्ते की तैयारी में लग गई थी।
अब अश्विन सोचने लगा," मां और दीदी तो कहती थी की शोभा ज्यादा काम नहीं करती लेकिन जो मैं देख रहा हूं वो तो कुछ और ही है!" अश्विन अब सब समझ गया था पर वो अपनी मां को ऐसा नही बोल सकता था की शोभा से ज्यादा काम ना कराया करो इसलिए अब उसने खुद ही शोभा की मदद करना शुरू कर दिया था।
अश्विन के हाथ बटाने से शोभा को थोड़ा अच्छा लगने लगा था। पहले जहा उसका चेहरा थकान से उतरा रहता था अब उस पर थोड़ी थोड़ी चमक आने लगी थी । अश्विन ने कुछ दिनों में ही ये मेहसूस कर लिया था की शोभा अब वो शोभा नही रही थी जिसे अश्विन शादी करके लाया था, वो तो कोई और थी.. जो तोते की तरह बोलती थी, और ये शोभा तो बिलकुल चुप है,गुमसुम है। ऐसा लगता है जैसे किसी के दबाव में हो। किसी डर की वजह से सहमी हुई हो।"
अश्विन शोभा को उसके काम में और ज्यादा मदद करने लगा। अश्विन का ऐसा व्यवहार अब घरवालों को खटकने लगा। घर के सभी बड़ो और उसकी दीदी ने मिल के अश्विन को समझाया, "तुम अपनी बीबी की मदद करते हो उससे हमे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन तुम्हें भी एक हद तक ही ऐसा करना चाहिए। जब तक कोई तुम्हे ऐसा करता न देख रहा हो तब तक सब ठीक है लेकिन जब कोई तुम्हे बीवी के होते हुए बर्तन धोते देखे तो वो अच्छा थोड़ेही लगता है। और सोचो आगे चलकर शोभा को तुम्हारे हेल्प की आदत पड़ गई तो तुम्हारा अपना काम में ध्यान लगाना मुश्किल हो जायेगा।"
अश्विन हमेशा से ही अपने परिवार वालों की बात मानता आया था। जिस तरह से सब ने अश्विन को समझाया था, अश्विन भी उनकी बातों में आ गया। अब अश्विन शोभा की मदद करने से कतराता था। कभी कभार वह बच्ची के लिए दूध गर्म कर लिया करता उससे ज्यादा कुछ नहीं।
घरवालों ने अश्विन को विदेश जाने से मना कर दिया और कहां के यहीं पर कुछ काम कर लो। अश्विन ने अब घर से ही ब्यूटी प्रोडक्ट्स ऑनलाइन बेचना शुरू कर दिए। उसका परिवार भी बढ़ गया अब उसे दो बेटियां और एक बेटा था। दोनों बेटियां स्कूल जाने लगी थी लेकिन बेटा अभी भी छोटा था। जितना अश्विन कमाता था उतना सबके लिए काफी न था।
काफी सोच विचार करने के बाद अश्विन ने यह फैसला किया कि वह अब शोभा के साथ शहर में जाकर रहेगा। जहां पर शोभा भी काम कर पाएगी और वह घर से ही अपने ब्यूटी प्रोडक्ट्स बेचना शुरू रखेगा, इस तरह से वे अपने पैसों की तंगी को पूरा करेंगे। परिवार वालों ने भी अश्विन को इजाजत दे दी। अश्विन चाहता था कि मां भी उसके साथ रहे लेकिन मां को शहर में आना मंजूर न था मां बड़े भाई के साथ रहने लगी।
शहर में अब शोभा नौकरी करती और अश्विन घर से ही ऑनलाइन अपने प्रोडक्ट बेचता। कई साल ऐसे ही बीत गए शोभा घर का काम और बाद में बाहर का काम करके पहले से भी ज्यादा थकी थकी रहने लगी। परिवार वालों की अश्विन के दिमाग में डाली बातें अभी भी उस पर असर करती थी वह यहां पर भी शोभा का हाथ ना बटाया करता।
अश्विन अब दिन-रात अपने प्रोडक्ट बेचने में ही मशरूफ रहता। कभी-कभी शोभा उससे कहती कि मुझे अच्छा नहीं महसूस हो रहा है मुझे डॉक्टर के पास ले चलो। वो हां कह देता लेकिन अपने काम में इतना खो जाता कि कभी उसको डॉक्टर के पास ले ही नहीं जाता।
बहू या नौकरानी...एक दर्दभरी कहानी | very emotional story
शोभा तो बीमार थी लेकिन एक बार अश्विन बहुत ज्यादा बीमार हो गया। इतना बीमार हो गया कि उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। अस्पताल में अश्विन के पास सिर्फ शोभा थी और कोई नहीं। इतना बीमार होने के बाद भी उसके परिवार वाले सिर्फ उससे मिलकर वापस अपने घर चले गए थे। उसका सहारा बनने के लिए उसकी तकलीफ बांटने के लिए कोई भी उसके साथ नहीं था।
बिस्तर पर पड़े और शारीरिक तकलीफ से गुजर रहे अश्विन को अपनों का ऐसा व्यवहार बहुत तकलीफ दे रहा था। फिर वह सोचता कि उसने भी तो शोभा के साथ जिंदगी भर यही किया है। क्या वो शोभा का जीवनसाथी सिर्फ नाम नाम का ही नही था! जब साथ देने की बारी आती थी तो उसने दूसरों के बहकावे में आकर उससे किनारा कर लिया था। यहां तक की शोभा के खुद अपने मुंह से कहने के बाद भी उसकी तकलीफ को वो नजरअंदाज करता आया था।
अश्विन को अब अपना दर्द शोभा के दर्द के आगे मामूली सा लगने लगा। उसके दर्द को ना बाटकर उसने बहुत बड़ा गुनाह किया हो ऐसा उसे लगने लगा। पश्चाताप के आंसू अश्विन की आंखों से बहने लगे उसने अपनी सारी गलतियों और गुनाहों के लिए शोभा से माफी मांगी।
दोस्तों, जीवन साथी का मतलब होता है जीवन के हर उतार चढ़ाव में, जीवन के हर मोड़ में जो साथ दे। साथ होने और साथ देने में उतना ही फर्क होता है जितना सिर्फ वादा करने में और सचमुच वादा निभाने में होता है।
दोस्तों, एक पत्नी की दर्दभरी कहानी पति के दृष्टिकोण से हमने बया की हैं। इस कहानी को पढ़कर किसी भी पति या पत्नी का अपने जीवनसाथी के प्रति व्यवहार सुधर जायेगा तो इस कहानी को लिखने का उद्देश सफल हो जायेगा।पूरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद।
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