एक अनोखा रिश्ता..हृदयस्पर्शी कहानी | heart touching hindi story
ऑफिस की कैंटीन में बैठकर दो लोग बातें कर रहे थे,"अरे यार ये क्या हो गया है अरुणा को, क्यों आजकल वो इतना एरोगेंट बिहेव करती है? पता नहीं क्या समझती है अपने आप को? मैंने कुछ कहा तो कहने लगी अपने काम से काम रखो। अपने कलीग साथ बात करने का यह कोई तरीका है ?" पहले आदमी ने कहा।
"अरे भाई! लगता है तुम्हें पता नहीं है की 2 महीने पहले ही तो उसका तलाक हुआ है। डिप्रेशन में होगी बेचारी ,इसलिए ऐसा बर्ताव करती है।" दूसरे आदमी ने कहां।
"बेचारी और वो? बेचारा तो उसका पति होगा अच्छा हुआ जो उससे अलग हो गया!" पहले आदमी ने अपना भड़ास निकालते हुए कहा।
इन कड़वी बातों को सुनने वाले यह दो आदमी ही नहीं थे। उनसे कुछ ही दूर, दूसरी कुर्सी पर बैठी खुद अरुणा भी इनकी नीम सी कड़वी बातों को सुन पा रही थी।
अरुणा हर दिन अपने अतीत को भुलाने की कोशिश करती। लेकिन उसके आसपास रहने वाले लोग इस तरह की बातों से उसे हमेशा अतीत में धकेल देते। कारण चाहे जो भी हो अरुणा ने अपने पति से अलग होने में ही अपनी और उसके पति की भलाई समझी थी। उससे ज्यादा तो उसका पति तलाक चाहता था। ऐसा नहीं है कि अरुणा ने अपनी शादी बचाने का प्रयत्न नहीं किया था। लेकिन अंत मे उसको भी मानना पड़ा की इस शादी में वह दोनों किसी कैदी की तरह रह रहे थे इसलिए उसे तोड़कर दोनों का आजाद होना ही बेहतर होगा।
रिश्ता चाहे अच्छा टूटे या बुरा दर्द तो होता ही है और इसी दर्द से अरुणा गुजर रही थी इसलिए स्वाभाविक है की उसके व्यवहार में थोड़ा बदलाव तो होना ही था। लेकिन हर किसी को यह खुशनसीबी नहीं मिलती कि उसके आसपास के लोग उसको अच्छे से समझ पाए।
अरुणा के ऑफिस के लोग और खासकर उसकी बॉस भी कुछ इसी तरह के लोगों में से थे। उसे सिर्फ काम से मतलब था किसी भी एंप्लोई की पर्सनल लाइफ से वो हमेशा दूर ही रहती थी।
खराब मन और समय के चलते अरुणा उस तरह से परफॉर्म नहीं कर पा रही थी जैसे वह पहले करती थी और इस से उसकी बॉस काफी नाराज थी। उसी नाराजगी को दर्शाने के लिए बॉस ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया था। बॉस उसे दिखा रही थी कि कैसे उसके परफॉर्मेंस का ग्राफ पिछले 2 महीनों के दौरान 40 परसेंट से गिर गया है।
बीच में ही अरुणा के मोबाइल पर मां का फोन आता है। बॉस के ऑफिस में होने के कारण अरुणा उसे साइलेंट पर कर देती है और फोन उठाती नहीं है.. अरुणा देख पाती है कि इस मोबाइल की वजह से बॉस का मूड खराब हो रहा है।
अरुणा ने उनसे अपनी तकलीफ बतानी चाहि,"मैडम मेरे जिंदगी में कुछ...."
बॉस बीच में ही बोल पड़ी,"हां हां मुझे पता है तुम्हारा तलाक हुआ है। लेकिन तुम भी अच्छी तरह से जानती हो मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि कोई अपनी पर्सनल लाइफ को प्रोफेशनल लाइफ में लेकर आए।"
बॉस अपनी बात पूरी कर पाए उससे पहले ही अरुणा का मोबाइल फिर से बजा और इस बार शायद जरूरी काम हो सकता है सोचकर अरुणा ने फोन रिसीव कर लिया। मैडम से एक्सक्यूज मि कहते हुए साइड में जाकर धीमी आवाज में मां से कहने लगी," मां में बॉस के साथ मीटिंग में हूं। 10 मिनट में आपको कॉल करती हूं।"
तभी मां दूसरी तरफ से बड़ी मुशिक से बोल पाई ,"मुझे सांस लेने में..."
अरुणा को यह समझते देर नहीं लगी कि बीपी की दवाई नहीं खाई होगी इसलिए अब उनका बीपी लो हो गया होगा और सांस लेने में तकलीफ हो रही होगी।
पहले ही गुस्से में बैठी बॉस अरुणा को अपने अनप्रोफेशनल बर्ताव के लिए खरी खोटी सुना रही थी और उपरसे ऐसी परिस्थिति की अरुणा को इस मीटिंग को तुरंत छोड़कर जाना पड़े!
अरुणा ने वही किया जो उसे करना चाहिए था । वो अपने बॉस को सॉरी बोल कर तुरंत मां की हेल्प करने दौड़ पड़ी ये जानते हुए भी की शायद इसके परिणाम स्वरूप उसकी नोकरी भी जा सकती है।
टैक्सी में तेजी से घर की तरफ जा रही अरुणा के दिमाग में कई विचार चल रहे थे जैसे की - कही मां को कुछ हो तो नही जायेगा?
मेरे पहोचने तक वो सरवाइव कर पाएगी या नही? ऐसे वक्त में ये सुभाष कहां चला गया होगा?"
वो सुभाष को दो तीन बार फोन कर चुकी थी ताकि अगर वो नजदीक हो तो मैं तक पहले पहिचक कर उन्हे दवाई खिला सके लेकिन वो फोन नहीं उठा रहा था।
फिर वो मन ही मन भगवान से मां की सलामती के लिए प्रार्थना करने लगती है ।
25 मिनट बाद वो घर पहुंचती है तो दौड़ी दौड़ी घर के अंदर जाति है। मां लगभग अधमरी सी एक एक सांस के लिए तड़प रही थी।
अर्चना उन्हें पानी और दवाई पिलाती है और बेड पर आराम से लेटाती है और उनके पास बैठकर उनके हाथ और पैर दबाती है जिससे उन्हें थोड़ा आराम मिले। आधा घंटा बीतने के बाद मां को अब अच्छा महसूस होने लगाता है। मां अरुणा की और एकटक देख रही थी उनके आंखो में आंसू थे। अरुणा ने उनके आंसू पोछे और उन्हें रोने के लिए मना किया।
मां ने कांपती हुई आवाज में कहा," अरुणा आज तुम नहीं आती तो शायद में..."
अरुणा ने उनके मुंह पर हाथ रखते हु कहा," कैसे नही आती? मां तकलीफ में हो और बहु ना आए ऐसे हो सकता है भला!"
"अरुणा तुम बिल्कुल नहीं बदली। तुम अभी भी वैसी ही हो जैसे पहले थी। मैं सोचती थी तलाक के बाद सब बदल जाएगा।" मां ने अपने मन की बात अरुणा को बताई।
अरुणा ने कहां,"मैं बदल जाऊंगी ऐसा कभी मत सोचना मां क्योंकि मेरा तलाक आपके बेटे से हुआ है आप से नहीं। और हां जब भी जरूरत पड़े आपके एक कॉल पर मैं हमेशा आपके लिए हाजिर रहूंगी।"
तब तक सुभाष भी ऑफिस से घर लौट आया था। मां को बेड पर और साथ में अरुणा को देख सुभाष जल्दी से दौड़कर उनके पास आया। मां को क्या हुआ उसके बारे में पूछने लगा। अरुणा ने सारी बात सुभाष को बताई और मां को खाना खिला कर दवाई देने के लिए कह कर जाने लगी।
सुभाष ने अरुणा से कहा," शुक्रिया तुमने मां के लिए इतना कुछ किया।"
अरुणा जाते-जाते सुभाष से कह गई ,"कुछ रिश्तो के नाम नहीं होते लेकिन कुछ रिश्ते दिल से भी निभाए जाते हैं।"
