सेठ के अच्छे कर्म..हिंदी स्टोरी | Story Hindi Story

 इस hindi story की शुरुआत होती है एक गांव में रहने वाले गरीब सेठ से! जी हां गरीब सेठ आप सोच रहे होंगे सेठ और वह भी गरीब यह दोनों विरोधाभासी शब्द एक साथ कैसे?


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सेठ के अच्छे कर्म..हिंदी स्टोरी | Story Hindi Story 


 यह सब भाग्य का खेल है दोस्तों हर इंसान के जीवन में कभी उधर कभी चढ़ाव आते हैं उसी तरह दयाराम सेठ जी किसी जमाने में बहुत अमीर हुआ करता था और वह खूब दान धर्म और पुण्य भी किया करता था लेकिन समय पलटा और वह धीरे-धीरे अपना धन खोता गया और आखिरकार आज इस हालत में पहुंच गया कि लोग उसे गरीब सेठ के नाम से जानने लगे।


लेकिन वह कहते हैं ना कि अच्छे कर्मों का फल देर सवेर ही सही मिलता जरूर है ऐसा ही कुछ इस गरीब सेठ के साथ भी होने वाला था।


जिस गांव में यह सेठ रहा करता था वहां पर एक बार राजा के लोगों ने ऐलान किया कि जिस जिस ने भी अच्छे काम किए हैं,वह अपने अच्छे काम गिनवा कर राजा से उसके बदले में जो भी राजा से इनाम लेकर जाए।


इस ऐलान को सेठ की पत्नी ने सुन लिया। सेठ की पत्नी बहुत खुश हो गई क्योंकि वह जानती थी कि अपने अच्छे दिनों में सेठ ने अनगिनत पुण्य के काम किए।


यह बात जब पत्नी ने सेठ को बताई तो सेठ भी खुश हो गया और बोला ,"अगर ऐसा है तो फिर हमें बहुत बड़ा इनाम मिलना चाहिए क्योंकि हमारे अच्छे कामों की सूची बहुत बड़ी है।"


अगले दिन सेठ सुबह-सुबह चार रोटियां बांधकर राजा की महल की तरफ चल पड़ा। सेठ के घर से राजा का महल काफी दूर था सफर लंबा था। आधे रास्ते में पहुंचने के बाद सेठ काफी थक गया। सेठ एक पेड़ की छांव के नीचे बैठकर आराम करने लगा और वहीं पर अपने साथ लाई रोटीया खाने की सोचने लगा।


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सेठ खाने की सोच ही रहा था कि तभी वहां पर उसके सामने एक गाय और उसके दो बछड़े आए। सेठ के हाथों में रोटियां देखकर गाय और उसके बछड़े उसके सामने ही आकर खड़े हो गए और उनके हाव-भाव से सेठ ने समझ लिया कि वह भूखी है और सेठ से खाना मांग रही है। अपने अच्छे दिनों में  सेठ के पास काफी गाये थी इसलिए गायों का व्यवहार सेठ अच्छे से जानता था।


सेठ की परिस्थिति भले ही अभी अच्छी नहीं थी लेकिन सेठ का स्वभाव बिल्कुल भी नहीं बदला था। वह पहले से ही परोपकारी था इसलिए उसको गाय पर दया आ गई और उसने अपने साथ बांध कर लाई रोटियों में से दो रोटियां गाय को खिला दी।


कुछ ही क्षण में दो रोटियां खाने के बाद गाय फिर से सेठ की तरफ देखने लगी तो सेठ के मन में विचार आया कि यह गाय ज्यादा भूखी लगती है। बिचारी को 2 बच्चों को दूध भी पिलाना होता है। इन दो रोटियों से उसका क्या होगा? सेठ ने उसके पास बची बाकी की दो रोटीया भी गाय को खिला दी।  पास वाले तालाब से सिर्फ पानी पीकर सेठ अपने सफर में आगे बढ़ गया।


राजा के दरबार में जब सेठ पहुंचा तो राजा ने पूरे दरबार के सामने सेठ से उसका नाम पूछा और अपने अच्छे कर्मों के बारे में बताने के लिए कहा।


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सेठ ने राजा को प्रणाम किया और अपने कामों के बारे में बताना शुरू किया। सेठ ने क,"महाराज मैंने कई भूखों को खाना खिलाया है। कई मंदिरों में दान दिया है। कई निराश्रित लोगों को आश्रय दिया है। कई तीर्थ स्थानों की यात्रा की है। सैकड़ों साधु संतों की सेवा की है।...."


और ऐसे ही दर्जनों काम बताने के बाद सेठ बोला महाराज यह है मेरे कई सारे अच्छे कर्मों में से कुछ अच्छे कर्म। इनके बदले आप जो भी इनाम देना चाहे दे दीजिए।


थोड़ी देर सोचने के बाद राजा बोला," अगर तुम्हारे कुछ और अच्छे कर्म है तो वह बताओ! क्योंकि अब तक तुमने जो मुझे बताए हैं उन्हें मैं अच्छे कर्म की श्रेणी में नहीं गिनता।"


सेठ को राजा की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। सेठ ने राजा को हाथ जोड़कर कहा,"अगर आपको मेरे बताए यह कर्म अच्छे कर्म नहीं लगते या पुण्य कर्म नहीं लगते तो मेरा बाकी के कर्मों का उल्लेख करना फिजूल होगा! आप मुझे इजाजत दीजिए मैं वापस जाता हूं।"


सेठ दरबार छोड़कर जाने लगा तब राजा के दरबारियों में से एक ने राजा के पास जाकर कुछ कहा, जिसे सुनने के बाद राजा ने सेठ को वापस दरबार में बुलाया। 


राजा बोला," तुमने अपने आज किए अच्छे काम के बारे में तो बताया ही नहीं!"


सेठ बोला ,"महाराज आज मैंने कोई अच्छा काम किया ही नहीं फिर मैं आपको कैसे बताऊं!"


राजा ने उसी दरबारी को खड़े होकर सारी घटना बताने के लिए कहा जिसने राजा को उसके बारे में बताया था।


दरबारी खड़ा हुआ और बोला," महाराज जैसे कि मैंने आपको बताया, मैं उसी गांव में रहता हूं जहां पर यह सेठ आराम करने बैठा था और मैंने वहां देखा कि कैसे इन्होंने अपना सारा खाना पास आई गाय को खिला दिया और खुद बिना खाए सिर्फ पानी पीकर भूखे रहे।"


सेठ को पता चला कि राजा किस बारे में बात कर रहा था तो सेठ ने राजा से कहा," किसी जानवर को खाना खिलाना कौन सा पुण्य का काम है? और इस बात को तो मैंने कब का भुला दिया था।"


राजा ने सेठ से कहां," मेरे महान गुरु जी के बताए अनुसार मैं भी उन्हीं कामों को पुण्य कर्म मानता हूं जिन्हें करते समय सच में निस्वार्थ भाव से किया जाए।  उसी के लिए किया जाए जिसको उसकी जरूरत हो और सबसे बड़ी बात उस काम को करने के बाद भुला दिया जाए। यही कारण है कि आज तुमने जो काम किया वह तुम्हारे किए गए आज तक के सभी कामों में सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ था। जिसके लिए तुम सच में इनाम के हकदार हो।"


राजा ने सेठ को बहुत बड़ा इनाम दिया जिसे पाकर सेठ की आर्थिक परिस्थिति फिर से पहले जैसी हो गई और सेठ और सेठानी ने अब अपना पूरा जीवन निस्वार्थ भाव से अच्छे कर्म करने में लगा दिया।


दोस्तों, कहते हैं कि दान धर्म और अच्छे कर्म एक हाथ से करो तो दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए लेकिन आजकल होता कुछ विपरीत ही है। आजकल लोग सिर्फ दिखावे के लिए दूसरे लोगों की मदद करते हैं।


अस्पतालों में दान करते हैं  तो दीवारों पर अपना नाम लिखवाते हैं। गरीबों को खाना देते हैं तो उनके साथ सेल्फी खिंचवाते हैं। अब आप ही बताइए क्या ऐसे कामों को अच्छे काम कह सकते हैं?


पूरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद! आशा करता हूं कि आज की कहानी से आप लोगों को कुछ अच्छा सीखने को मिला होगा। इस कहानी को अपने दोस्तों, परिवार वालों और अपने सहकर्मियों के साथ शेयर कीजिए ताकि उन्हें भी अच्छे कर्मों के बारे में स्पष्टता हो सके।


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