बेटी और बुआ..नई हिंदी कहानी | New Hindi Kahani
5 मिनट पहले शांत दिख रहे मम्मी पापा फोन पर बात कर खुशी से चहकने लगे। डाइनिंग रूम में नाश्ता कर रहे अपने बहू और बेटे के पास आकर बोले," कल सुधा आ रही हैं, अभी अभी फ़ोन पर बात हुई है समाधि भी साथ आएंगे। सशी तुम कल दोपहर चार बजे एयरपोर्ट चले जाना दोनो को लेने।"
इस सुधा को और कोई काम नही है क्या? जब देखो तब आ जाती है यहां पर, मै नहीं जा पाऊंगा मुझे और भी जरूरी काम है, क्या वो टैक्सी करके नहीं आ सकती यहां तक!" सशी गुस्साई आवाज में बोल पड़ा।
अपने बेटे के मुंह से अपनी बेटे के लिए ऐसे बोल सुन मां एकदम दंग रह गई," अरे! तबियत तो ठीक है ना तेरी? कैसी पागलों की तरह बात कर रहा हैं! घर में दो गाड़ियां होते हुए बहन को टैक्सी में आने के लिए कहता हैं?" मां बोली।
"रहने दो मैं खुद जाकर लेआऊंगा अपनी बेटी को, करने दो उसे अपना काम अभी सुधा का बाप जिंदा है और में नहीं चाहता की मेरे बेटी को उसके ससुराल वालों से ताने सुनने पड़े की इकलौती बेटी होते हुए भी उसे लेने गाड़ी नही भेजी या उसके स्वागत में कोई कमी रह गई।" पापा ने बेटे को अपनी नाराजगी जताते हुए कहां।
"आप दोनो समझते नही हो मम्मी पापा। वो जब भी इस घर आती है तो सारी दिनचर्या बिगाड़ देती हैं। वो तो आराम से बैठी रहती है किसी महारानी की तरह हम सब को उसकी आवभगत में लगाना पड़ता है। मेरी पत्नी का तो पूरा दिन ही दीदी और जीजाजी के आगे पीछे उनके ओरर्ड पूरे करते हुए निकल जाता है। " गुस्से से सशी बोला।
"आज क्या हो गया हैं तुझे कैसी बहकी बहकी बाते कर रहा हैं? बहन है तेरी कोई पराई तो नही है।"
" अब क्या है उसका इस घर में? शादी में दे दिया था ना हमने जितना देना था,फिर क्यों चली आती है बार बार यहां पर? और हर बार बैग भर भर कर लेकर जाति है वो अलग! आपको समझना चाहिए वो सिर्फ हमे लूटने आती है और कुछ नही!" सशी ने तंज कसते हुए कहां।
"तुझे क्या अगर वो यहां से थोड़ा कुछ ले जाती है तो ! ये सब मेरी मेहनत की कमाई है और मैं जो चाहु करू ,चाहु तो पूरा सुधा को दे दू ।" पापा गुस्से से लगभग कांपते हुए बोले।
अब सशी अपनी आवाज धीमी करते हुए बोला," मैं कहां कुछ नई बात कर रहा हू मम्मी पापा ! मैं तो वही बोल रहा हु जो मैने बरसो से बुआ के साथ होते हुए देखा है। आज अपनी बेटी के खिलाफ दो शब्द क्या सुन लिए आप तो गुस्से से लाल हो गए। जरा सोचिए जब आप बुआ के साथ ऐसा व्यवहार करते थे तब दादी को कैसे लगता होगा?
बुआ जो हम पर इतनी जान छिड़कती है आपने कभी उनके और उनके ससुराल वालों के मां सम्मान के बारे में परवाह नही की। उन्होंने कभी भी आपसे कुछ नही मांगा बल्कि हर बार वो अपने साथ कुछ ना कुछ लेकर ही आती लेकिन आपका व्यवहार कभी भी उनके साथ अच्छा नहीं रहा।
दादी ने भी आपसे कभी नहीं कहां की मेरी बेटी को पैसे दे दो या कुछ खरीद कर देदो फिर भी दादी को आपके यहां इतनी भी परवांगी नहीं थी की वो अपनी बेटी को कुछ दिनो के लिए अपने पास बुला कर रहने दे। अपनी बेटी का ऐसा अपमान वो सहन नही कर पाई इसलिए वो गांव में पुराने घर में अकेली रहने चली गई।
बुवा भी अपना अपमान सह लेती पर आपने उनके पति का भी मान नही रक्खा इसलिए उन्होंने भी हमारे घर आना जाना छोड़ दिया।
जिस तरह सुधा इस घर की बेटी है बुआ भी तो इसी घर की बेटी है। आपने दो बेटियों में फर्क कर अच्छा नही किया और रही मेरी बात तो मैं अपनी बहन से बहोत प्यार करता हूं। मैने कभी अपनी पत्नी को उसके खिलाफ गलत बोलने का हक नही दिया और वो बोलेगी भी नहीं। मैं खुद जाकर उसे लेकर आऊंगा क्योंकि..मुझे मेरी बहन पर गर्व है अपने अच्छे भाई होने पर भी। हो सके तो मेरे इन कटु शब्दो के लिए मुझे माफ कर देना।"
इतना कह कर सशी अपने ऑफिस के निकल गया।
मां और पापा का सिर शर्म से झुक गया। थोड़ी देर की शांति के बाद पापा ने हिम्मत कर अपनी बहन को फोन लगाया। बहन के फोन उठाते ही वो फूट फुटकर रो पड़े और बोले," दीदी, हमे माफ कर दीजिए। हमने इतने साल आपके साथ जो भी दुर्व्यवहार किया उसके लिए हम सच में शर्मिंदा है। दीदी आपकी बहोत याद आ रही है आप अपने घर आजाइए हमसे मिलने , अगर आप कहे तो मैं आ जाता हु आपको लेने।"
दूसरी तरफ दीदी भी रो रही थी वो भाई के इन थोड़े से ही शब्दों से पिघल गई थी वो बोली," मैं तुमसे नाराज नहीं हूं भैय्या, में जीजाजी को सारी बात बता कर जरूर आऊंगी।"
दोस्तों बेटी तो बेटी होती है। बहन हो, बहू हो या बेटी तीनों में कोई फर्क नहीं करना चाहिए। इन्हीं से घर की शोभा होती है और इन्हीं से घर खुशियों से भरा रहता है।
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