प्रेम का पूल ... शिक्षाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani

 प्रेम का पूल ... शिक्षाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani  

दो भाईयों की ये कहानी हैं। दोनों में बड़ा ही प्यार था। लोग उनके प्यार की और उनके संप की उदाहरण दिया करते थे। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ की पास पास के खेत में रहने वाले ये दो भाई आपस में झगड़ पड़े।


शिक्षाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani



 40 वर्षों में अगल-बगल खेती करनेवाले, मशीनरी साझा करनेवाले, बिना किसी रोक-टोक के आवश्यकतानुसार श्रम और सामान का व्यापार करनेवाले इन भाईयो में यह पहली गंभीर दरार थी।


इस दरार ने दोनो के बीच के लंबे सहयोग और प्रेम को खत्म कर दिया।


 यह एक छोटी सी गलतफहमी से शुरू हुआ और यह एक बड़े अंतर में बदल गया। अंत में यह कटु शब्दों के आदान-प्रदान में तब्दील हो गया और इसके बाद हफ्तों तक मौन रहा।


 एक सुबह बड़े भाई के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।दरवाजा खोलने पर उसने एक बढ़ई(कारपेंटर) को टूलबॉक्स के साथ पाया।


 "मैं कुछ दिनों से काम की तलाश में हूँ,शायद आपके पास इधर-उधर कुछ छोटे-छोटे काम होंगे। क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूं?" उसने कहा।


 "हाँ,मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है। इस नाले के पार उस खेत को देखो। वह मेरा पड़ोसी है, वास्तव में, वह मेरा छोटा भाई है।


 पिछले हफ्ते इस नाले की जगह एक घास का मैदान था। लेकिन वो एक बुलडोजर लाया और ये नाला बना कर नदी के तट तक ले गया।  अब हमारे बीच एक नाला है।


 खैर, हो सकता है उसने मुझे चिढाने के लिए ऐसा किया हो, लेकिन मैं उसके लिए एक बेहतर तरीका अपनाऊंगा। छोटा होकर वो इतना कर सकता है फिर मैं तो उससे बड़ा हु,मैं उससे एक कदम आगे रहूंगा।


 खलिहान के पास लकड़ी के उस ढेर को देखो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए एक बाड़ बनाओ - एक 8 फुट ऊंची बाड़ - ताकि मुझे अब उसे या उसकी जगह को देखने की जरूरत न पड़े।" बड़े भाई ने कहा।


 स्थिति को समझकर बढ़ई बोला - मुझे कीलें और गड्ढा खोदने वाला यंत्र दिखाओ और मैं वह काम कर सकूँगा जो तुम्हें भाता है।


 बड़े भाई को जरूरी काम के लिए शहर जाना था, इसलिए उन्होंने बढ़ई को सामग्री तैयार करने में मदद की और फिर वह शहर के लिए रवाना हो गए।


 बढ़ई ने दिन भर नापने, काटने, कील ठोंकने का कठिन परिश्रम किया।


 सूर्यास्त के समय तक जब बड़ा भाई शहर से लौटा तो बढ़ई ने अभी-अभी अपना काम समाप्त किया था।


  बढ़ई का काम देख बड़े भाई की आंखें खुलीं की खुली रह गई। उसने जो देखा उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था।


वहां पर कोई भी दीवार नहीं बनाई गई थी।दीवार की जगह उस कारीगर ने वहां एक पुल खड़ा कर दिया था - नाले के एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने वाला पुल!


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नाले के दूसरी तरफ खड़ा छोटा भाई भी यह देख रहा था। उस पुल को देख उसका दिल पिघल गया। उसको अपने किए पर पछतावा होने लगा।


उसने कहां - मैंने जो कुछ कहा और किया है, उसके बावजूद आपने इस पुल का निर्माण करवाया! आपने सच में अपने बड़े भाई होने का सबूत दे दिया और मैं मूरख छोटे भाई होने का फर्ज ना निभा सका।


 दोनों भाई पुल के दोनों छोर पर खड़े थे, और फिर वे बीच में उस पुल के जरिए मिल गए, एक दूसरे का हाथ थाम लिया। इस तरह से बढ़ई के बनाए पुल ने उन दोनों भाइयों के बीच खुदे नफरत के नाले को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।


  वे पीछे मुड़े और देखा कि बढ़ई अपना टूलबॉक्स अपने कंधे पर उठा रहा है। बड़े भाई ने उसे कहां - अभी जाओ मत! कुछ दिन ठहरो। मेरे पास तुम्हारे लिए और भी बहुत सी परियोजनाएँ हैं," बड़े भाई ने कहा।


  बढ़ई ने कहा, "मैं रुकना पसंद करूंगा," लेकिन, मेरे पास बनाने के लिए कई और पुल हैं।


दोस्तों, संबंधों में नफरत के नाले खोदना बहुत आसान है लेकिन समझदारी के,प्रेम के पुल बनाना उतना ही कठिन है। जीवन में जब भी मौका मिले तो नफरत से अलग होने वाले अपनों के बीच, बढ़ई बनकर पुल बनाने का काम जरूर कीजिएगा।


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