पेड़ की छाया..निस्वार्थ प्रेम की कहानी| story of unconditional love
सोचिए अगर ना बोलने वाले जीव बोलकर हमें उनके मन की बात, उनकी फिलिंग्स, उनके विचार बता पाए तो कैसा होगा? आप सोचेंगे कि ये क्या काल्पनिक बातें कर रहे हो! वो इसलिए क्योंकि आज की कहानी ऐसी ही एक काल्पनिक कहानी है। लेकिन वह हमारे वास्तविक जीवन से इस तरह से जुड़ी हुई है और इतनी गहरी बात हमें सिखाती है कि आपको भी यह कहानी पढ़कर याद रह जाएगी।
एक गांव में अविनाश नाम का एक बच्चा रहता था। अविनाश ना पढ़ने में अच्छा था नहीं खेलकूद में, वो एक अंतर्मुखी लड़का था इसलिए उसके ना गांव में कोई मित्र थे ना ही स्कूल में।
जब इंसानों को इंसान दोस्त नहीं मिलते हैं तो वह या तो निर्जीव वस्तुओं से दोस्ती कर लेता है या तो पशु पक्षी या पेड़ों से। अविनाश के घर के सामने एक आम का पेड़ था। अविनाश अपना खाली समय इस आम के पेड़ की छाया में बिताने लगा। अविनाश या तो स्कूल में होता था, या तो इस पेड़ के पास। पेड़ के साथ खेलता था, उस पर चढ़ता था वही, उसकी छाया में आराम करता और वही सो जाता था।
अविनाश उस पेड़ को इतना पसंद करता था कि वह अपने मन की सारी बातें अब उस पेड़ को बताने लगा था। 1 दिन चमत्कार हुआ जब अविनाश अपने मन की बातें उस पेड़ को बता रहा था तब अचानक वह पेड़ बोल पड़ा!
अविनाश की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि अब ना उसे कोई सुनने वाला मिल गया था साथ ही साथ कोई ऐसा भी जो उससे बातें करें।
पेड़ ने बताया की अविनाश की इतनी घनिष्ठ मित्रता देख वो अपने आप को रोक नहीं पाया और उसे मजबूरन बोलना पड़ा। लेकिन वह अविनाश जैसे दोस्त को पाकर बेहद खुश है। पेड़ को भी अविनाश की आदत हो गई थी। पेड़ अविनाश को एक दोस्त की तरह एक बेटे की तरह दिखने लगा, उसकी फिक्र करने लगा! अविनाश की खुशी में खुश और उसके दुख में दुखी रहने लगा!
इंसानों की फितरत है वह समय के साथ बदल जाया करते हैं। समय बदला, अविनाश की उम्र बढ़ी। अब वह कॉलेज जाने लगा। उसने इस पेड़ के पास आना बंद कर दिया।
बेचारा पेड़ अविनाश को याद कर काफी दुखी रहने लगा। एक बार अविनाश को अपने पास से गुजरता देख पेड़ ने उसे आवाज लगाई और अपने पास बुलाया। पेड़ने अविनाश से कहा आओ अविनाश मेरे पास बैठो कुछ बातें करते हैं।
अविनाश ने कहा नहीं मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि मैं तुम्हारे पास बैठ सकूं और बातें कर सकूं क्योंकि अब मुझे कॉलेज जाना है और मुझे इस बात की भी टेंशन है कि कॉलेज की फीस कहां से लाऊं?
अविनाश की बातें सुन और उस को टेंशन में देखकर पेड़ बोला - देखो मेरे पास पैसे तो नहीं है, मगर हां अगर मेरे फल बेचकर तुम्हें कुछ मदद होती हो तो मेरे सारे फल तोड़ कर ले जाओ।
अविनाश को पेड़ का सुझाव पसंद आया। उसने तुरंत सारे आम तोड़ लिए और बाजार में बेचकर उसके अच्छे खासे पैसे कमाए और अपनी कॉलेज की फीस भर दी।
अविनाश फिर से अपनी जिंदगी में बिजी हो गया और एक बार फिर से पेड़ अकेला हो गया। पेड़ हर दिन अविनाश का इंतजार करता लेकिन तीन-चार साल बीत गए उसे अविनाश मिलने नहीं आया। फिर एक दिन अचानक अविनाश उसको उसके पुराने घर में आता हुआ दिख गया।
पेड़ अविनाश को देखकर काफी खुश हो गया। पेड़ ने अविनाश को अपने पास बुलाया और बोला आओ अविनाश मेरे पास बैठो। चलो कुछ बातें करते हैं।
अविनाश ने पेड़ से कहा - मैं तुम्हारे साथ नहीं बैठ सकता क्योंकि अब मेरी शादी हो गई है। हालांकि मुझे नौकरी मिल गई है लेकिन अभी मेरी तनख्वाह इतनी नहीं है कि मैं अपने इस पुराने घर को नया बना सकूं। मुझे काफी चिंता है कि मैं अपनी पत्नी को कैसे इस पुराने घर में रखूंगा?
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अविनाश को चिंता में देख फिर से पेड़ का दिल पिघल गया। पेड़ ने अविनाश से कहा तुम मेरी सारी डालिया काट कर अपने घर को नया बना लो इससे तुम्हारी समस्या सुलझ जाएगी।
अविनाश ने पेड़ की सारी डालिया काट ली और बाजार में बेचकर उसके पैसे बना लिए। वो अपने पुराने घर को भाड़े पर देकर कहीं और रहने चला गया। पेड़ फिर से एक बार अकेला हो गया।
पेड़ ने अब उम्मीद छोड़ दी कि कभी उसकी मुलाकात अविनाश से हो भी पाएगी या नहीं। पेड़ भी अब पूरी तरह से उजड़ चुका था उसकी डालियां कटने के बाद ना उसपर फूल आते थे ना पत्ते।
30 साल बीत चुके थे फिर 1 दिन पेडने एक झुके हुए, लकड़ी के सहारे चलते एक बूढ़े आदमी को अपने पास आते देखा। पेड़ ने ध्यान से देखा और उस आदमी को पहचान लिया, वह कोई और नहीं अविनाश था!
वह जब पेड़ के पास पहुंचा तो पेड़ ने उसे कहा माफ करना दोस्त अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। अविनाश ने कहा - मुझे कुछ भी नहीं चाहिए और ना ही मेरी कोई इच्छाये बची है। मुझे सिर्फ तुम्हारे पास बैठना है और तुमसे बातें करनी है। बूढ़ा अविनाश पेड़ को ऐसे चिपक गया जैसे उसे गले लगा रहा हों! जर्जर और उजाड़ हो गए उस आम के पेड़ पर नई कुंपले उग निकली!
दोस्तों, यह कहानी बड़ी ही मार्मिक है। अगर पेड़ पौधे और जानवर बोलते होतो तो बिल्कुल वह इस पेड़ पैर की तरह होते हैं। सच्चे, वफादार और निस्वार्थ। चलो यह तो कल्पना की बात है लेकिन सोचो हमारे बड़े बुजुर्ग, हमारे मां-बाप क्या इस पेड़ की तरह नहीं है? और कहीं ना कहीं हम उस अविनाश का किरदार नहीं निभा रहे हैं?
दोस्तों,अंत में यही कहूंगा कि जिंदगी की भाग दौड़ में अपनों को पीछे मत छोड़ना। पूरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद। दोस्तों मेरा नाम प्रवीण काटे है। मैं एक कंटेंट राइटर हूं अगर आप मुझसे कहानियां लिखवाना चाहते हैं तो मुझसे संपर्क(pravskate@gmail.com) कर सकते हैं।

ये OSHO की कहानी है जिसे शुरुआत में थोड़ा change कर दिया गया है ।
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