हृदयस्पर्शी कहानी : एक पिता की भूख | heart touching kahani
5:30 को ऑफिस खत्म होने के बाद मैं सीधा घर नहीं गया था क्योंकि मुझे मेरे दोस्त का फोन आया था जिसने मुझे राजा रानी वाड़ा पाव की शॉप के सामने मलाड में रुकने के लिए कहा था। उसे कुछ शॉपिंग करनी थी इसलिए उसने कहा था, तुम रुकना साथ में जायेंगे।हम दोनो हमेशा एक साथ की शॉपिंग करने जाते थे।
उस शॉप के पास पार्किंग के लिए पेरेलली कुछ लोहे के एंगल लगाए हुए थे। मैं उन्हीं पर चढ़कर बैठ गया और अपने दोस्त का इंतजार करने लगा।
एक 70-72 साल का बुजुर्ग आदमी, आंखों पर मोटे कांच वाले चश्मे,मेले धोती और कुर्ता पहने मेरे पास आया क्योंकि मैं लोहे के एंगल्स पर 3-4 फुट ऊंचाई पर बैठा था उसने मेरे घुटनों को छुआ और बोला,"बेटा एक वडा पाव खरीद कर दे दोगे तो बहुत अच्छा होगा..! बहुत ज्यादा भूख लगी है।"
मैंने जब उस बूढ़े आदमी की तरफ देखा तो वह मुझे रोजाना दिख रहे भिखारियों में से नहीं लगे। उन्हें देखकर ऐसा भी नहीं लग रहा था कि वह हर दिन भीख मांगते होंगे!
ऐसे अचानक किसी बुजुर्ग ने मेरे पैरों को हाथ लगाया तो मुझे बहुत अजीब महसूस हुआ। मैं तुरंत एंगल से कूदकर नीचे खड़ा हो गया। मैंने अपने जेब में हाथ डाला और ₹50 निकालकर उस बुजुर्ग को देते हुए कहा, "अंकल आपको भूख लगी है? तो यह लीजिए ₹50 कुछ खा लीजिए।"
बुजुर्ग ने कहा," नहीं बेटा पैसे मत दो, बस एक वडा पाव लाकर दे दो उतना बस है मेरे लिए।"
"ठीक है, मैं ला कर देता हूं, आप यहीं बैठीये" कहकर मैं राजारानी वड़ा पाव की दुकान में गया और एक वडापाव खरीद कर लाया और बुजुर्ग को खाने के लिए दिया। बुजुर्ग नीचे बैठकर वडा पाव खाने लगे। मेरी तरफ देख कर वह बोले ऊपर मत बैठो गिर जाओगे। यहां बैठो मेरे पास कोई साथ बैठेगा तो मुझे भी दो निवाले अच्छे से खा जायेंगे। मैं उनका कहना टाल नहीं पाया और उनके साथ ही बैठ गया। फिर मैंने ऐसे ही उनसे सवाल करना शुरू किया कहां से आए हैं? कहां जाएंगे? किससे मिलने आए हैं? वगेरह वगेरह।
मैं? मैं नागपुर से आया हूं। एक छोटे से गांव में रहता हूं। यहां मुंबई में मेरा तुम्हारे जितनि उम्र का एक बेटा है। एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर है उससे मिलने आया हूं। 2 साल पहले उसकी शादी हुई, लव मैरिज। बहू पढ़ी-लिखी है, नए विचारों वाली। उसे सास ससुर यानी कि हम पति पत्नी गवार लगते हैं इसलिए हमारे साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगता! इसलिए बेटा अब अलग रहता है, यही मुंबई में 2 सालों से।
परसों मेरे इस मोबाइल पर उसका फोन आया था। कह रहा था अमेरिका में नौकरी मिली है उसे। बीवी को लेकर जा रहा है अमेरिका, 10 साल के लिए! यहां मुंबई में था तो 6 महीने में एक बार आता था, हम बूढ़े बूढ़ी को मिलने के लिए। अब इतने दूर परदेश जा रहा है एक बार मिलने के लिए आओ बोला तो अब समय नहीं बचा है, परसों फ्लाइट में बैठकर जाना है कहता है।
अब 10 साल के लिए जा रहा है। पता नही तब तक हम जिएंगे या मरेंगे....इसलिए सोचा खुद ही जाकर उसे मिल लेता हूं। कल शाम से एयरपोर्ट को ढूंढ रहा हूं लेकिन यहां के लोग कहते हैं कि इस एरिया में एयरपोर्ट है ही नहीं!" बुजुर्ग ने एड्रेस वाली चिट्ठी मेरे हाथ में देते हुए कहा।
उनकी बात सुनकर मैंने कहा," लोग सच कह रहे हैं। एयरपोर्ट यहां नहीं है सांताक्रुज में है।"
बुजुर्ग ने मेरी तरफ देखकर कहां लेकिन परसों जब बेटे का फोन आया था तो उसने यही पता लिखवाया था मुझे। लगता है यह फोन भी खराब हो गया है। फोन ही नहीं आ रहा है बेटे का। मैंने बताया था उसको कि मैं उससे मिलने आ रहा हूं मुंबई।" कहते हुए बुजुर्ग ने मोबाइल मुझे देखने के लिए दिया।
अब मेरे एक हाथ में चिट्ठी और एक हाथ में मोबाइल था। मैंने मोबाइल का बटन दबा कर देखें मोबाइल अच्छे से चल रहा था और मोबाइल में नेटवर्क भी पूरी तरह से आ रहा था। मैंने उनसे पूछा," आपने नहीं लगा के देखा फोन, बेटे को?"
"मुझे कहां लगाना आता है बेटा फोन? कोई फोन करता है तो उठा लेता हूं बस।" उन्होंने कहा।
मैंने रिसिव्ड कॉल में जाकर कर आखरी आए नंबर पर कॉल किया दो रिंग्स बजने के बाद कॉल कट कर दिया गया।
फिर मैंने एड्रेस की चिट्ठी खोलकर देखी। उसमें जहां हम बैठे थे वहीं का एड्रेस था, यानी कि जानबूझकर गलत एड्रेस दिया गया था!
मैं समझ चुका था कि गलत पता देकर लड़का अपने मां-बाप को टाल रहा था और अब वह उनका फोन भी नहीं उठा रहा था। मुझे यह भी मालूम पड़ चुका था कि वह जिस प्लेन में सवार हो चुका था वह प्लेन कभी भी उसके मां-बाप के दिशा में उड़ने वाला नहीं था!
तब तक मेरा दोस्त वहां आ गया और बोला चलो शॉपिंग करने चलते हैं। मैंने उसे 2 मिनट रुकने के लिए कहा और मैं बुजुर्ग की तरफ देखकर सोच में पड़ गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने बेटे के तरफ से होने वाली धोखेबाजी को यह बुजुर्ग समझ नहीं पा रहे थे या फिर खुद का बच्चा उनके साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है यह वो स्वीकार नहीं कर पा रहे थे!
मैं बुजुर्ग से बोला," अब तक तो आपका बेटा जिस प्लेन में बैठा है वह उड़ चुका होगा। मुझे नहीं लगता कि अब आपकी उससे मुलाकात हो पाएगी इसलिए अच्छा यही होगा आप वापस अपने घर लौट जाए और आंटी भी आपका इंतजार करती होगी।"
मेरी बात सुनते ही अगले ही क्षण उनकी आंखें भर आई। आंसू भरी आंखों से वह मेरी तरफ देखने लगे! घर जाने के लिए भाड़े के पैसे देते हुए मैंने उनके हाथों पर हाथ रखा और पूछा,"अंकल मैं कब से आपके हाथों में यह डब्बा देख रहा हूं। क्या है इस डब्बे में?"
"मोतीचूर के लड्डू है मेरे बेटे के पसंद के, उसके मां ने भेजे है उसके लिए खुद बना कर .....!!!!" बुजुर्ग ने कहा।
किसी खंजर से मेरे दिल को चीर कर मेरे अंतः करन को लहूलुहान कर दिया हो ऐसी मेरी हालत हो गई। मैं निशब्द होकर बुजुर्ग की तरफ देखता रहा और वहीं बैठा रहा।
"ये भाई चल ना, देर हो रही है।" मेरे दोस्त की आवाज कानों में पड़ी तो मैं होश में आया और ऐसे ही उस भीड़ में उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
घर पहुंच कर आधी रात तक मैं सो नहीं पाया। रह-रहकर एक ही सवाल मेरे मन में उठ रहा था। एक वडा पाव की भीख मांगने वाला वह बेचारा आदमी, भूख से बेहाल होने के बावजूद भी अपने साथ लाए उस मोतीचूर के लड्डूओ में से एक लड्डू खुद नहीं खा सकता था क्या? अपने बेटे से इतना प्यार???
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बहुत badiya
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कहानी
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