कहानी : बदली हुई सास | emotional kahani
उमा आज सुबह से ही बड़ी तेजी से अपना काम निपटा रही थी उसके पीछे की वजह भी काफी खास थी। उसको पूरे 3 साल बाद अपने मायके जाने का मौका जो मिला था! काम करते वक्त वह काफी रिलैक्स थी क्योंकि सासू मां ने उससे कहा था कि कुछ दिनों तक दीपा जो की उसकी ननंद थी, नहीं आने वाली है।
उसकी यह एक ननंद 100 के बराबर थी। उमा शादी करके जब घर आई थी तब दीपा को अपनी बहन की तरह प्यार करती थी क्योंकि उसे खुद की कोई बहन नहीं थी लेकिन कुछ ही हफ्तों में ही उसे ये पता चल गया था उसकी ननंद किसी जेलर से कम नहीं है!
हाला के दीपा का ब्याह हो चुका था लेकिन उसे अपने ससुराल वालों की किसी भी प्रकार की चिंता नहीं थी। उसे जब जी करता था वह अपने मायके चली आती और मायके वालों पर अपना हुकम चलाती, खासकर अपनी भाभी पर। वही डिसाइड करती थी वहां पर क्या खाना पकेगा? कोई घूमने जाएगा कि नहीं, या जाएगा तो कहां जाएगा! दीपा ही थी जो हर बार उमा को किसी ना किसी बहाने से अपने मायके जाने से रोक लेती थी।
लेकिन आज का दिन कुछ अलग था क्योंकि मां के कहने पर दीपा के पति ने उसके मायके जाने का इंतजाम कर दिया था। ट्रेन की भी टिकट बुक हो चुकी थी। सारा काम खत्म करने के बाद उमा अपने पति के साथ अपना सामान लेकर घर के बाहर निकले ही थे की सामने से दीपा आती हुई दिखाई दी।
दीपा जिसके मुंह पर बड़ी सी स्माइल और आंखों में चमक थी वहीं दूसरी तरफ उमा की आंखों में उसको देखकर पानी आ गया था जो बस आंसू के रूप में छलक ना बाकी था। भैया भाभी के पास आ कर दीपाने कहा," क्यों भैया, कहां चले अपनी पत्नी के साथ सैर सपाटा करने के लिए? अपनी बहन को भूल गए क्या?"
दीपक ने कहा,"कही सेर सपाटा करने नहीं तुम्हारी भाभी को मायके छोड़ने जा रहा हूं!"
"अच्छा मैं आई और भाभी जाएगी? क्या आपकी पत्नी को मेरा आना पसंद नहीं है?" दीपा ने भाई भाभी को टोंट मारते हुए कहा।
मन में उदासी और आंखों में नमी लिए उमा पलटकर घर के अंदर जाने लगी क्योंकि उसने मान लिया था कि इस बार भी दीपा की वजह से उसके मायके जाना कैंसिल हो जाएगा लेकिन तभी सामने से उसकी सांस आई और बोली,"तुम दोनों अभी तक रेलवे स्टेशन नहीं गए! क्या गाड़ी के पीछे दौड़ते हुए जाओगे?"
दीपा बीच में टपकते हुए बोली,"यह क्या कह रही हो मां? मैं आई हूं और आप भाभी को मायके भेज रही हो। क्या अब आपको मैं इतनी खटकने लगी हू?"
मां ने दीपा को डांटते हुए कहा," तेरा क्या है बेटा, तेरे लिए ये माइका थोड़ी ही है? यह तो तेरे लिए एक प्रवास स्थल है जहां तू जब जी चाहे, जब अपने ससुराल में बोरियत महसूस करें आ जाती है! लेकिन वह बेचारी तो ऐसा नहीं करती। बल्कि वह तो जब जाना चाहिए तब भी अपने मायके नहीं जाती इसलिए उसका अभी मायके जाना बहुत जरूरी है। मैं तेरे या मेरे या किसी और की वजह से उसका इस बार मायके जाना बिल्कुल रद्द नहीं होने दूंगी।
पहले यह बता तू तो कुछ दिनों के लिए नहीं आने वाली थी ना फिर कैसे आ गई?"
"मैंने तो ऐसे ही कह दिया था, मैं देखना चाहती थी कि मेरे ना आने से भैया खुश होता है कि मुझे बुलाता है?"दीपा ने कहां।
"हां हां क्यों नहीं, कोई बुलाये या ना बुलाए पर्यटन स्थल पर तो हर कोई जा सकता है। अबकी बार मेरी बहू को उसके पर्यटन स्थल पर यानी कि उसके मायके जाने दे। बेचारी ने सिर्फ अपने भाई की शादी देखी है और अब तो उसके भाई को बच्चा भी हो गया है उसका मुंह तक नहीं देखा उसने! उसे भी अपने हिस्से का सुख भोगने दे!"मां ने दीपा को फटकारते हुए और उमा की साइड लेते हुए कहां।
अपनी सांस के मुंह से अपने लिए ऐसे शब्द सुनकर उमा की आंखें छलक गई। उसने अपनि सास को गले से लगा लिया।
सास ने कहा," बहुत हो गया प्यार.. जल्दी जाओ वरना ट्रेन छूट जाएगी"
अपनी मां का बदला हुआ रूप देखकर दीपा बहुत हैरान थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही मां है जो उसका हर कहां मानती थी और हमेशा उसका पक्ष लेती थी चाहे बहू सही हो या गलत।
वहीं मां अपने मन में अपनी उस दोस्त को धन्यवाद दे रही थी जो कुछ दिनों पहले उसके घर आई थी और कुछ दिन रही थी और जाते जाते उसकी आंखें खोल गई थी। सहेली ने उन्हें बताया था कि वह अपनी बेटी का मोह छोड़ दे वरना अपने बहू और बेटे के मन में अपनी इज्जत खो देगी। बिना सोचे समझे बिना अच्छे बुरे का विचार किए हर फैसला सिर्फ अपनी बेटी के हिसाब से लेना सही नहीं है।
रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बे में बैठी उमा के चेहरे पर एक बहुत प्यारी मुस्कान थी जिसे देख कर दीपक को महसूस हुआ कि यह वह प्यारी मुस्कान है जिसे उसने 3 सालों से देखी नहीं थी!
सच ही तो है मायका महिलाओं के लिए पर्यटन स्थल ही तो होता है, जहां वह अपने ससुराल की सारी चिंताएं ,टेंशन भूल कर कुछ दिन आराम से रह सकती है।
