जैसी करनी वैसी भरनी : बूढ़ी मां की कहानी | Hindi Kahani

    जैसी करनी वैसी भरनी : बूढ़ी मां की कहानी | Hindi Kahani 

        

जैसी करनी वैसी भरनी : बूढ़ी मां की कहानी | Hindi Kahani


सरस्वती भूख से परेशान हो गई थी। सुबह से मालती ने उसको खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया क्योंकी सुबह नाश्ते में उसने आलू के परांठे बनाए थे और अब वह भी खत्म हो गए थे। इसलिए सरस्वती दोपहर के खाने की राह देख रही थी। पर मालती ने सुबह पेटभर के नाश्ता किया था! इसलिए वो दोपहर का खाना नहीं बनाने वाली थी!



    अत्यंत भूख से परेशान हो रही सरस्वती मालती के पास गई और बोली,"बहु मुझे बहुत जोरों से भूख लगी है, खाने के लिए कुछ भी दे दे!" सरस्वती का कहना सुनकर मालती मुंह टेढ़ा  करके बोली : दिनभर सिर्फ आपको भूख ही लगती है। दूसरा तो कुछ भी काम नहीं रहता आपको। उस टेबल पर चने रखे हैं वही खाकर पानी  पीके सो जाओ!



    आज दोपहर को मैं मेरी फ्रेंड के साथ बाहर जाने वाली हूं, इसलिए खाना तो रात को ही बनाऊंगी। यह सुन के सरस्वती का मन उदास हो गया। फिर सरस्वती  धीरे से बोली,"तू कहे तो मैं खुद के लिए कुछ बनालूं?"


 मालती गुस्से से बोली, एक व्यक्ति के लिए खाना बनाओगी क्या आप? सोचकर मालती किचन में गई और उसने फ्रिज में रखे हुए बासी चावल निकाले आचार के साथ वह चावल एक थाली में परोस कर सरस्वती के आगे रखकर बोली कि खालो। ऐसा कहकर पर्स लेकर मालती घर के बाहर चली गई।


चावल फ्रिज में रखे थे तभी भी वह खराब हो गए थे। उनसे गंदी बदबू आ रही थी। सरस्वती ने गुस्से से वह चावल डस्टबिन में डाल दिए।


 इसके बाद उसने दाल चावल निकाल कर अपने लिए गरम-गरम खिचड़ी पकाई और पुदीने की चटनी के साथ खाई! और सब बर्तन घिस कर किचन साफ किया। और चुपके से अपने रूम में जाकर सो गई।

                  मालती ने भले ही खाना पकाने से मना किया था पर यह घर उसका भी था और वह खुद का खाना खुद बना सकती है। दूसरे दिन सुबह सरस्वती अपने रूम में बैठी थी उतने में उसका बेटा रमेश उधर आया और बोला , मां आजकल महंगाई बहुत बढ़ गई है मुझे घर खर्च चलाना भी बहुत कठिन हो रहा है । ऊपर से पापा की तेरवी पर भी बहुत खर्च हुआ! मां मैं सोच रहा था कि एक रूम किराए पर दिया जाए, घर का किराया आने पर घर खर्च में थोड़ी मदद होगी।


       सरस्वती बोली : बेटा तुझे जो ठीक लगेगा तू वही कर। उसके बाद रमेश गला साफ करते हुए बोला, मां तेरा रूम खाली कर दे और नीचे के छोटे रूम में शिफ्ट हो जा! उस छोटे रूम में टॉयलेट और बाथरूम नहीं है तो उसे कोई किराए पर नहीं लेगा! सरस्वती चौक गई और बोली पर वह रूम छोटा है और वो तो स्टोर रूम है। मैं उधर रहूंगी तो टॉयलेट बाथरूम कैसे जाऊंगी?


 रमेश बोला , मां तू आंगन के टॉयलेट में जाया कर, तू तो घर ही रहती है ना! जीसको हम रूम किराए पर देने वाले हैं उसको तो सारी सुख सुविधा तो चाहिए ना...... वैसे भी यह रूम भी बहुत बड़ा है पापा के जाने के बाद तुझे इतने बड़े रूम की क्या जरूरत है?


 सरस्वती कुछ क्षण शांत रही और सोचने के बाद बोली, टेरेस पर जो रूम है वह भी हम किराए पर दे सकते हैं उस रूम में सब सुख सुविधा है।


    उस पर रमेश बोला , नहीं मां वह रुम हम किराए पर नहीं दे सकते वह अपने मेहमानों के लिए रखा है! तुझे तो अच्छे से पता  है की मालती के मायके वालों का आना जाना चालू रहता है। इसलिए एक्स्ट्रा रूम मेहमानों के लिए रखना पड़ेगा! 


सरस्वती सब समझ गई थी की बेटे ने तो उसका ही रूम किराए पर देने का निर्णय लिया है क्योंकि वह बुढ़ापे में बेटे और बहू पर आश्रित थी! इसलिए रमेश ने जो कहा उस पर सरस्वती ने ज्यादा विरोध नही किया।



     उसने अपना थोड़ा सामान लिया और छोटे रूम में शिफ्ट हो गई। उधर पुराने छोटे रूम में उसका जी घुट रहा था। तब भी वहां उस रूम में दिन काट रही थी। नया किराएदार आया था सब पहले जैसा चल रहा था। घर में आए हुए किराएदार का नाम अशोक था। एक एनजीओ में काम करता था। वह हर रोज मालती और रमेश  सरस्वती के साथ कैसा सलूक करते थे वह देखता था। वह देखकर उसको बहुत बुरा लगता था।


 धीरे-धीरे सरस्वती अशोक को अपने बेटे जैसा मानने लगी। अशोक भी आते-जाते सरस्वती का हालचाल पूछा करता था और उसका ख्याल रखता था।


 रमेश और मालती को सरस्वती से कुछ लेना-देना नहीं था। मालती बचा हुआ खाना उसके थाली में रखकर जाति और बेटा तो उसके तरफ देखता भी नहीं था। सरस्वती तो पहले ही समझ चुकी थी कि उसका बेटा अब पहले जैसा नहीं रहा, वह बदल गया है।


 फिर भी वो आंखें बंद करके किसी पालतू पशु जैसी उस घर में रहती थी । क्योंकि बुढ़ापे में उसको दूसरा किसी का सहारा नहीं था। रोटी के दो टुकड़ों के लिए उसको उनके सहारे रहना पड़ रहा था, कभी-कभी सरस्वती को बहुत रोना आता था। सरस्वती अशोक को अपने मन की बाते बताने लगी।


 उनके पति की मौत बेटे की लापरवाही से हुई थी, पर वो ज्यादा नहीं बोल पा रही थी। जब पति काम पर जाते थे तब घर में हम दोनों को बहुत मान सम्मान मिलता था। जब वह काम करने में असमर्थ हो गए तब रमेश को उन्होंने घर खर्च में मदद किया कर ऐसा कहा, यह बातें रमेश के मन को बहुत लगी! जब तक पति  घर चला रहे थे रमेश अपने सब पैसे बचा लेता था। पर अब शर्म से और मजबूरी में उसको घर खर्च चलाना पड़ रहा था।


 धीरे-धीरे मां-बाप का खर्च उसको बोझ लग रहा था। लेकिन वह स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कह सकता था। इस बीच पति का स्वास्थ बहुत बिगड़ गया और वह चल बसे।


 डॉक्टर के पास जाने से पता चला कि उनको निमोनिया हुआ था। डॉक्टर  थोड़ी महंगी दवाई लिखकर देते थे ,तो  रमेश पैसे बचने चाहिए इसलिए रमेश आधी दवाई लेकर आता था। शुरू में पति का स्वास्थ्य सुधर गया था तब रमेश ने उनकी गोलियां औषधि बंद कर दी थी ।



    पति भी  इन चीजों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। लेकिन एक रात में उन्हें सांस लेने में बहुत परेशानी हुई। सरस्वती बहुत घबरा गई, और वह भाग भाग के गई और रमेश के कमरे का दरवाजा ठोकने लगी और कहने लगी कि पापा का स्वास्थ बहुत बिगड़ गया है। चल हम उन्हें डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं। उस पर रमेश बोला ,मां  मुझे अब सोने दे मुझे बहुत नींद आ रही है हम सुबह पापा को डॉक्टर के पास ले कर जाएंगे । ऐसा कह कर उसने दरवाजा बंद कर लिया था।  

     सरस्वती रात भर पति के तकिए के पास चिंतित बैठी रही। कभी छाती को तेल लगाकर मालिश कर रही थी, तो कभी बाफ (steam) दे रही थी । पर भगवान को कुछ अलग स्वीकार था। सुबह तक उनकी की मृत्यु हो गई थी।


 घर में कब्रिस्तान जैसी शांति थी। रमेश रोने का नाटक करने लगा। मालती तो ऐसे रो रही थी कि जैसे उसको वास्तव में ससुर चले गए इस बात पर बहुत दुख हो रहा हो।


 सबसे ज्यादा धक्का लगा सिर्फ सरस्वती को..... पर वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। सरस्वती के आंखों से अश्रु आ रहे थे और उसके ओट  थरथर कांप रहे थे। जैसे की वो कहना चाहती हो की अब एल रोने का नाटक क्यों कर रहे हो?मेरे पति की मौत के आप दोनों जवाबदार हो। पर वह कुछ बोल नहीं पाई। क्रियाकर्म कर दिया गया।


 सरस्वती के दिमाग में हमेशा एक बात चलती थी ,रमेश ने लापरवाही नहीं की होती तो आज मेरे पति जिंदा होते। उनकी मौत के बाद मालती और रमेश का व्यवहार बहुत बदल गया था। सरस्वती को भी उनके व्यवहार की आदत पड़ गई थी। इसलिए वह उनकी तरफ से कोई भी अपेक्षा नहीं रखती थी। पर उसका मन उसे अंदर ही अंदर उसे खाए जा रहा था, ऐसी औलाद को सबक भी नहीं सिखा सकती।


   1 दिन उनका किराएदार अशोक उसके पास आया और सरस्वती को कुछ बातें उसने समझाई। वह बातें सुनकर सरस्वती के आंखों में एक नई उम्मीद जगी। दूसरे दिन सुबह सरस्वती, मालती और रमेश के पास आइ और बोलीं :मुझे तुम दोनों से बहुत जरूरी बात करनी है। मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम दोनों को मेरे साथ रहने में प्रॉब्लम है इसलिए मैंने सोचा कि मैं वृद्धाश्रम में रहूंगी!


 सरस्वती का कहना, सुनकर मालती बहुत खुश हो गई। रमेश ने थोड़ा दुखी होने का नाटक किया फिर थोड़ी देर में सरस्वती ने उन दोनों के चेहरे के हावभाव देखें और बोली : रमेश तुझे दुखी होने की जरूरत नहीं है और मालती तुझे इतना खुश होने की जरूरत नहीं है। पहले मेरी सब बातें सुन लो। और सरस्वती  हसकर बोली : यह बातें सच्ची है की वृद्धाश्रम मैं  में रहूंगी पर मैं इस घर से कहीं नहीं जाऊंगी!!


     मैं इस घर को ही वृद्धाश्रम बनाऊंगी। अब यहां तुम्हारे जैसे स्वार्थी बेटे और बहू यहां नहीं रहेंगे।  मेरे जैसे बूढ़े लोग यहां रहेंगे, ए मेरा आखिरी निर्णय है। यह सुनकर रमेश और मालती दोनों ही चौक गए। रमेश और मालती एक दूसरे की तरफ देखने लगे, ऊन दोनों ने सोचा था कि सरस्वती घर छोड़ कर चली जाएगी तो वह दोनों खुशी से रहेंगे। उनको लगा था कि अब उनको सरस्वती की जवाबदारी लेनी नहीं पड़ेगी, उसका ख्याल नहीं रखना पड़ेगा। पर इधर तो सब उल्टा हो गया था।

     

  सरस्वती का कहना सुनकर रमेश गुस्से से बोला : मां तेरा दिमाग तो ठीक है ना? इस घर पर मेरा अधिकार है! फिर तु इस घर को कैसे वृद्धाश्रम बना सकती है?


तू भूल रहा है बेटा अभी तक ये घर मेरे ही नाम पर है। सरस्वती गुस्से से बोली। तुम दोनों ने मुझे बहुत परेशान किया है। छोटी-छोटी बातों पर मेरा अपमान किया है। बीमारी के वक्त भी मुझ पर ध्यान नहीं दिया। खाने पीने के लिए भी मुझे बहुत तरसाया। तेरे पिताजी भी मुझे छोड़ कर चले गए। अगर मैंने कठोर निर्णय नहीं लिया तो मेरा भी वही हाल होगा जो तुम्हारे पापा का हुआ था। इसलिए मैंने सोचा कि बेटे के झूठे प्यार के जाल में फंसने से अच्छा मैं अपने बारे में सोचूं।

 


   रमेश घुटनों परआकर बोलने लगा," मां मुझे माफ कर दे। हम दोनों तेरा अच्छे से ख्याल रखेंगे, तेरा कभी भी अपमान नहीं करेंगे। पर तू इस घर को  वृद्धाश्रम मत बना। मां थोड़ा सोच कर तो देख, हमारा क्या होगा?


 सरस्वती ऊंची आवाज में बोली। मैंने और तेरे पापा ने तुझे अच्छे संस्कार दिए थे। फिरभी तूने सिर्फ तेरे परिवार के बारे मे ही सोचा हमारा नहीं। फिर में तेरा कैसे सोचू? तू तेरे परिवार का सोच, मेरी चिंता मत कर और जल्द से जल्द ये घर छोड़कर चला जा क्योंकि इस घर में अब अच्छे लोग रहने आ रहे हैं। इतना कहकर सरस्वती अपने रूम में चली गई। रमेश और मालती शांत सरस्वती को जाते हुए देखते ही रह गए।

      

    सरस्वती ने अपने जैसे बूढ़े लोगों को उसके घर में आश्रय दिया। अशोक की मदद से वृद्धाश्रम अच्छे से चलने लगा।


   दोस्तों, आजकल के लड़कों ने बूढ़े लोगों के साथ गैर व्यवहार किया तो बूढ़े लोग भी कठोर निर्णय ले सकते हैं।


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