खुशियां : एक मार्मिक कहानी | Hindi Kahaniya

 कया आप अपने जीवन से संतुष्ट है?  या आप भी उन्ही लोगो में से है जो सोचते है की उनके जीवन में कोई खुशी आती ही नहीं! अगर आपका जवाब हां है तो आज की कहानी जिसका शीर्षक है "खुशियां : एक मार्मिक कहानी | Hindi Kahaniya " आपके विचारो को बदल देगी या फिर आपको एक अलग नजरिए से सोचने पर मजबूर कर देगी...तो चलिए पढ़ते है कहानी..


खुशियां : एक मार्मिक कहानी | Hindi Kahaniya 


ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का निर्माण किया तब वो अपने काम से काफी खुश हुए थे क्योंकि हर प्राणी अपने जीवन के दरमियान काफी खुशी से जीता था सिवाय मनुष्य के!


खुशियां : एक मार्मिक कहानी | Hindi Kahaniya



 मनुष्य अपने जीवन में कभी खुश नहीं रहता था। ब्रह्मा जी ने उसके लिए जीवन में अनगिनत खुशियां दी थी फिर भी मनुष्य उन खुशियों की कद्र नहीं करता था।


 इस समस्या के निवारण के लिए ब्रह्मा जी ने  कई   देवताओं और गुरुओं से विचार विमर्श किया।


 कोई कहता की मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। किसी ने सुझाव दिया कि मनुष्य जानबूझकर ऐसा कर रहा है इसलिए उसे दंड देना चाहिए। किसी ने कहा उसे खुशियों की अहमियत याद दिलाने की जरूरत है।


यह आखिरी वाला सुझाव ब्रह्मा जी को काफी पसंद आया। लेकिन अब सवाल यह था कि मनुष्य को खुशियों की अहमियत का एहसास कैसे कराया जाए?


फिर से सभी से सुझाव मांगे गए। सब ने सहमति से यह तय किया कि मनुष्य को जो खुशियां बेहद आसानी से मिलती है उसे कठिन तपस्या और परिश्रम के बाद मिले ऐसा कुछ किया जाए।


एक देवता ने बताया कि अगर खुशियों को मनुष्य से दूर कहीं छुपा दिया जाए तो वह खुशियों को पाने के लिए परिश्रम करेगा तब उसे खुशियों की सही अहमियत पता चलेगी।


अब सब इस बात पर विचार करने लगे की खुशियों को आखिर छुपाया कहां जाए? एक देवता ने ब्रह्मा जी को सुझाव दिया कि खुशियों को जमीन के अंदर दफना दिया जाए।


ब्रह्मा जी ने कहा कि मनुष्य बहुत ही चतुर है, वह जमीन खोदकर खुशियों को निकाल लेगा।


दूसरे देवता ने खुशियों को समुद्र के पानी में छुपाने का सुझाव दिया। ब्रह्मा जी का कहना था कि मनुष्य गोता लगाकर उन खुशियों तक पहुंच जाएगा।


आखिर ब्रह्मा जी के दिमाग में ही एक विचार आया। उन्होंने खुशियों को मनुष्य के ही अंदर छुपाने का तय किया! ब्रह्मा जी जानते थे कि मनुष्य चाहे जितना बुद्धिमान क्यों ना हो वो खुशियों को सारी दुनिया में खोजेगा लेकिन अपने अंदर कभी नहीं झांक कर देखेगा।


उस दिन से मनुष्य खुशियों की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता है। छोटी-छोटी खुशियों को भूल कर अगली और बड़ी खुशि की तलाश में वर्तमान में मिल रही छोटी खुशियों को भूल जाता है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वह बाहरी वस्तुओं में खुशियां तलाशता हैं जबकि सच्ची खुशी उसको उसी के भीतर मिलेगी इस बात को वह भूल चुका है।


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