मां का आखरी खत : कहानी | Hindi Kahaniya

 मां पर लिखी कई कहानियों की तरह ये छोटी सी कहानी जिसका शीर्षक है मां का आखरी खत आपको भावुक कर देगी। इस कहानी को पढ़ने के बाद आप अगर मां से नाराज़ भी है तो ज्यादा देर तक नाराज़ नही रह पाएंगे। आइए पढ़ते है कहानी...

मां का आखरी खत : कहानी | Hindi Kahaniya


मां का आखरी खत : कहानी | Hindi Kahaniya 


रात के 12:00 बज चुके थे मां कभी दरवाजे की तरफ देखती तो कभी एक नजर घड़ी के तरफ। मां की आंखों में और चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही थी। थोड़ी ही देर में दरवाजे की घंटी बजी। माने काफी तेजी से दरवाजा खोला और सामने बेटे विक्रम और बहु मान्यता को देखकर पूछा इतनी देर क्यों हो गई? मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी।


मां मैं अब छोटा नहीं हु, तुम मेरी चिंता मत किया करो। विक्रम घर के अंदर प्रवेश करते हुए बोला। बेटा कितना भी बड़ा हो जाए मां के लिए छोटा ही रहता है। चलो छोड़ो हाथ पैर धो लो मैं तुम्हारे लिए खाना लगा देती हूं मा ने दरवाजा बंद करते हुए कहा।


माजी हम बाहर से खाना खाकर आए हैं आप खा लीजिए हम सोने जा रहे हैं बहू मान्यता ने कहा। लेकिन मैंने तो तुम लोगों की पसंद की खीर बनाई है, आओ थोड़ी-थोड़ी खा लो।


मां तुझे एक बार में समझ में नहीं आता क्या? तेरी बहू ने कहा ना हम बाहर से खाना खाकर आए हैं क्यों परेशान करती है? जा तू खीर खा ले और सोजा और हमे भीं  से  शांति से सोने दे।


मां अकेले कैसे खीर खा सकती थी? और उसे बिना खाए  नींद कैसे आ सकती थी क्योंकि बेटे के इंतजार में उसने भी कुछ नहीं खाया था। वह किचन में गई एक ग्लास पानी पिया और अपने रूम में चली गई!


सुबह 10:00 बजे विक्रम की आंखें खुली। बाजू में मान्यता अभी भी सो रही थी। विक्रम हॉल में आया तो लैपटॉप के पास रखी एक चिट्ठी पर उसके नजर पड़ी। यह चिट्ठी किसकी हो सकती है यह देखने के लिए उसने चिट्ठी खोल कर पढ़ना शुरू किया..


मेरे लाल!

तू सोच रहा होगा की एक ही घर में रहते हुए ये चिट्ठी क्यों मैं तुम्हे बोलकर भी ये बात बता सकती थी । हा, बता सकती थी अगर तू मेरी बाते सुनना चाहता तो!  किसी एक्सप्रेस गाड़ी की तरह तू आता है और कुछ ही पलों में निकल जाता है।


खैर वो सब जाने दो, कल तुम्हारा जन्मदिन था इसलिए मैंने खीर बनाई थी। सोचा कम से कम आज के दिन साथ में बैठकर खाना  खायेंगे। मगर मैं यह बात बोल गई थी कि मेरा बेटा बड़ा हो चुका है! तो अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके खाना खाकर आया चलो मुझे इस बात की खुशी ही हुई।


मेरी दवाइयां खत्म हो गई है मैंने कुछ दिनों पहले तुझे दवाई की एक चिट्ठी दी थी। अगर वक्त मिले तो वह दवाई मुझे लाकर देना, मुझे थोड़ी राहत हो जाएगी।


विक्रम को याद आया कि चार-पांच दिन पहले मां ने एक दवाई की चिट्ठी दी थी उसने अपने ऑफिस के बैग में जाकर उस चिट्ठी को तलाशा और उसे खोल कर देखा। उसमें लिखा था मुझे ऐसी दवाई लाकर दो जिससे मैं अपने बेटे को भुला सकू!


विक्रम को रियलाइज हुआकी मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। उसकी उसकी आंखें नम हो गई। वह तुरंत अपने मां के कमरे की तरफ दौड़ा। सबसे पहले उठ जाने वाली मां आज क्यों नहीं उठी थी देखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने मां को उठाने की काफी कोशिश की लेकिन मां एक गहरी नींद में सो चुकी थी विक्रम के पास फूट-फूट कर रोने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।


दोस्तों यह कहने की जरूरत नहीं है कि मां-बाप जीवन में कितने मूल्यवान है। उनके रहते हुए ही उनकी सेवा करो, उनसे प्यार करो। वह चले जाएंगे तो कुछ नहीं कर पाओगे।

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