स्त्री पुरुष के समानता की कहानी | parivarik kahani
छाया, टिफिन रेडी हुआ कि नहीं? कितना टाइम, मुझे देर हो रही है, मेरी घड़ी, रुमाल, वॉलेट कहां है? आनंद जोर जोर से चिल्ला रहा था...
हेमा जी बड़ी बड़ी आंखें करके अपने बेटे यानी अनिल की तरफ देख रही थी। अनिल हंसकर बोला अरे मम्मी काम ऑन.. मेरी तरफ एसे घूरकर मत देखो... मैं अब छोटा थोड़ी हूं! दो बच्चे हैं मेरे...
हेमाजी गुस्से से बोली, हां लेकिन तेरा बर्ताव तो बच्चों जैसा ही है। आनंद फिर हस दिया और बोला मम्मी आप भी ना... हेमा जी काफी लंबे समय से यह सब देख रही थी। उनको लगने लगा था कि शायद उनसे अनिल का पालन पोषण करने में कोई कमी रह गई है।
वह सोचते सोचते भूतकाल में गुम हो गई... घर मतलब जैल.. घर की महिला की रत्ती भर भी कीमत नहीं! यह सब देखते देखते अनिल बढ़ा हुआ। जैसे-जैसे बढ़ा हुआ मैंने उसे क्या कुछ नहीं सिखाया? खुद के काम खुद ही करना चाहिए। कभी अकेला रहना पड़े तो कुछ साधारण सा खाना पकाना आना चाहिए। अपने से छोटे बड़े सब को मान देना चाहिए खासकर महिलाओं को.. फिर भी ये क्यों इस तरह से बर्ताव करता है? छाया को तो कभी भी कुछ भी बोल देता है... घर की लक्ष्मी है वह। मैं अब क्या करूं इसका?
अपने ऐसे इन विचारों में वो खोई हुई थी कि तभी उनकी बचपन की सहेली चित्रा आई। चित्रा उनकी सिर्फ नाम की दोस्त नहीं थी.. पक्की वाली दोस्त थी। हेमा का चेहरा देखकर ही चित्रा ने भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है! चित्रा तुरंत बोली हेमा कल पूरा दिन तुम मेरे यहां आओगे, ठीक है? हमने काफी समय से एक दूसरे से ठीक से बातें नहीं की है..
छाया ने भी उनका पक्ष लेते हुए कहा आंटी जी ले जाइए मम्मी जी को अपने साथ बाबा को गए हुए 3 महीने हो गए हैं..लेकिन मम्मी जी घर से बाहर ही नहीं गई। मम्मी जी आप सचमुच थोड़ा बाहर हो आइए.. आपको सच में अच्छा लगेगा। आंटीजी आज आप यहां रुकेंगे क्या? हम बनाते हैं ना एक बढ़िया सा प्लान... चित्रा तुरंत तैयार हो गई।
शाम को बढ़िया सा पाव भाजी बनाने के बाद सारा काम खत्म करके छाया भी सबके साथ पत्ते खेलने के लिए बैठी। चित्रा आंटी छाया को बोली.. अब तू भी कुछ शुरू कर। इतनी अच्छी खासी पढ़ी लिखी है, घर में मत पड़ी रह। घर के काम कितना भी कर लो किसी को उनकी कीमत नहीं होती। छाया अपने आंखों के आंसू छुपाते हुए, चेहरे पर झूठी मुस्कान के साथ हा बोली। हेमा जी ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.. चित्र तूने मेरे मन की बात कह दी। छाया बेटा तुम सच में कुछ सोचो..
तब तक आनंद ऑफिस से लौट आया। छाया तुरंत उठ कर उसे पानी देने के लिए गई। सबको पांव गर्म करके देते देते उसे थोड़ी देर लग गई। चित्र आंटी ने अनिल को हंसते-हंसते कहा छाया को तुम अब पाव गर्म करके दे दो.. आंटी ने कहा था इसलिए अनिल ने पांव गर्म करके दे दिया। फिर से गपशप शुरू हुई। आज पिताजी के जाने के बाद पहली बार मां इतनी खुश है यह देखकर दिल खुश हुआ।
चित्रा आंटी को जल्दी जाना था इसलिए जल्दी-जल्दी जैसे तैसे काम खत्म करके छाया बाहर आई... देर हो रही थी लेकिन मां को इतना ज्यादा खुश देख कर आज मैं सबके लिए कॉफी बनाउगा बोल कर अनिल अंदर गया। छाया उसे ही देख रही थी। थोड़ी जल्दबाजी में काम करने की वजह से किचन मैं थोड़ी सी गन्दगी रह गई थी। अनिल छाया पर जोर से चिल्लाया..क्या है ये? एक काम ठीक से नही करती। पूरा दिन तो घर में ही रहती है, फिर भी यह हाल है..उसने सबके सामने ऐसा बोला था इसलिए छाया रोते-रोते अंदर गई।
हेमाजी को उसपर काफी गुस्सा आया। बस कर अब उसपर हुकुम चलाना.. क्या मैंने तुझे यह सब सिखाया है? क्या फर्क है तुझ में और तेरे बाप में? उसको बोलने से पहले वह जो काम हररोज करती है ना, वह मुझे तू करके दिखा.. उतने ही उत्साह से जितना वह करती है.. उतना ही अच्छे से जितना वह करती है.. और बिना यह कहे कि मैं थक गया हूं या मुझे कंटाला आ रहा है... जो मैंने सहा है वह मेरी बहू को ना सहना पड़े इसलिए मैंने तुझे काफी कुछ सिखाया... लेकिन तू अपने खानदान की परंपरा ही आगे बढ़ा रहा है!
ममता के इस सफर में मैं कहीं पर कम पड़ गई चित्रा। आप कुछ बातें सिखाओ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता..बुजुर्गों के व्यवहार से जो बच्चे सीखते हैं उसी का अनुसरण करते हैं इस बात का जीता जागता उदाहरण है मेरा बेटा अनिल। इसका अनुकरण इसके बच्चे करेंगे.. यही डर है मुझे अब। लेकिन अपनी ममता की राह को अब बदलने वाली हूं। सांस के रूप में मेरी बहू से मुझे जो प्यार मिला है, मैं उसको संभाल कर रखने वाली हूं। मां का अलग सा रूप देखकर अनिल को अजीब सा लगा।
बहुत दिनों बाद मन हल्का हुआ था उनका आज। सब बोलकर एकदम खाली.. चित्र आंटी ने सहारा दिया था.. उनका हाथ पकड़ कर। हेमा जी बोली मन पर काबू थोड़ा हल्का हुआ.. थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा है अब। बहुत देर हो गई है मां, सो जाओ आप.. अनिल बोला।
सच में देर हो गई है चित्र आंटी ने हंसकर कहा। यह सब मुझे बहुत पहले ही कर देना चाहिए था। छाया बेटा, जरा बाहर आना। हेमा जी की आवाज सुन छाया बहार आई। छाया तुम शादी के बाद नौकरी करना चाहती थी ना? लेकिन पुरुष प्रधान हमारे इस घर में महिलाओं को हमेशा कम ही लेखा गया।
इसको मैं बदल सकूं इसलिए मैंने अपनी परवरिश के दौरान काफी कोशिश की लेकिन कहीं कमी रह गई या कारण खानदान का असर!
लेकिन अब बहुत हुआ मैं यह सब अब बदल कर रख दूंगी। तुम नौकरी करो तुम आगे पढ़कर पीएचडी करना चाहती थी ना वह भी करो! मैं तुम्हारे साथ खड़ी हूं और रही बात घर के कामों की तो जब तुम नौकरी करोगी तो सब अपने काम खुद करेंगे। छाया ने हेमा जी के पैर छुए और बोली मम्मी जी अब आप सो जाइए। मैंने आपकी सारी बातें सुनी लेकिन आप सो जाइए नहीं तो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी...
अगले दिन का सवेरा एक नया प्रकाश लेकर आने वाला था इसी विचार के साथ छाया को नींद आई। सुबह उठने में थोड़ी देर हो गई.. काफी कुछ बदलाव नजर आ रहा था। रविवार था फिर भी सुबह उठकर अनिल घर के काम कर रहा था। मां से उसने वादा किया कि वह अब फिर कभी इस तरह से नहीं बर्ताव करेगा। उसने अपनी गलती मान ली थी!
साल भर में ही पूरे घर की कायापलट हो गई थी। सभी लोग स्वयंशिस्त का पालन कर रहे थे। छाया ने अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करके घर के पास ही अपना ऑफिस खोल लिया था। हर व्यक्ति अपनी जवाबदारी निभा रहा था.. इसलिए घर के हर छोटे-मोटे कामों का महत्व सबको समझ में आया। अपना इस तरह का बदला हुआ घर देखकर हेमा जी को अलग दिन सुकून मिला और इस बात की संतुष्टि भी की ममता की राह में वह कहीं पर कम नहीं पड़ी!
